अमित पवार, बैतूल. जिले में इलाज के अभाव में उल्टी-दस्त के ग्रसित दादा और पोती की मौत हो गई. इस घटना के बाद हेल्थ सिस्टम पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. सवाल ये कि शासन-प्रशासन के नुमाइंदे बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का गुणगान तो करते हैं, लेकिन उन्हें जमीनी हकीकत के बारे पता नहीं होता. अगर उन्हें पता होता तो इलाज के अभाव में दादा-पोती दम न तोड़ते.

यह मामला आदिवासी बाहुल्य भीमपुर ब्लॉक के खैरा गांव का है. जहां 3 दिन पहले हीरा बारस्कर की उल्टी-दस्त से मौत हो गई थी. वहीं 24 घंटे बाद उसकी 8 वर्षीय पोती स्वाति बारस्कर की भी मौत हो गई. जबकि परिवार के अन्य सदस्य उल्टी-दस्त से ग्रसित हैं. मौत के बाद भी स्थानीय स्वास्थ्य अमला बेखबर है.

ग्रामीणों का आरोप है कि उप स्वास्थ्य केंद्र में ताला लगा हुआ रहता है और वहां कोई कर्मचारी नहीं आते. स्थानीय स्वास्थ्य अमले ने पीड़ित परिवार का इलाज करने या उन्हें हायर सेंटर पर रेफर करने की जहमत नहीं उठाई. आखिरकार पीड़ित परिवार को महाराष्ट्र के परतवाड़ा इलाज के लिए ले गए.

लेकिन, वहां पहुंचते ही हीरा की मौत हो गई. इधर, उपचार नहीं मिलने की वजह से हीरा की पोती ने भी घर में ही दम तोड़ दिया. परिवार में दो लोग अभी भी उल्टी-दस्त से पीड़ित हैं. लेकिन स्वास्थ्य अमला लापरवाह बना हुआ है और उनके इलाज की कोई व्यवस्था अभी तक नहीं की गई है.

जब परिवार के लोग अस्पताल पहुंचे तो स्थानीय स्वास्थ्यकर्मी परिजनों पर ही दबाव बनाते हुए नजर आए. इधर, सीएमएचओ डॉ राजेश परिहार मामले की जांचकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही है. अब देखना होगा कि क्या वाकई मामले की जांच की जाती है या मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है? सवाल यह भी है कि आखिर दादा-पोती की मौत की जिम्मेदार कौन है?

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