
शिखिल ब्यौहार, भोपाल. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सोमनाथ मंदिर और जवाहरलाल नेहरू को लेकर दिए गए बयान पर सियासत गरमा गई है. इस मामले में कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी को भारत के संविधान को पढ़ने और उसको समझने की जरूरत है. इधर, बीजेपा का कहना है कि पंडित नेहरू से लेकर के राहुल गांधी तक लगातार सनातन आस्था के विरोधी रहे.
कांग्रेस प्रवक्ता जितेंद्र मिश्रा ने कहा कि सत्ता में बैठा हुआ कोई भी व्यक्ति यदि किसी धर्म, किसी पंथ के प्रति झुकाव दर्शाता है तो यह सही नहीं है. हमारा संविधान कहता है कि हम धर्मनिरपेक्ष राज्य है, धर्मनिरपेक्षता के आधार पर काम करेंगे. कांग्रेस पार्टी का सिद्धांत है, सर्व धर्म का सम्मान. राम मंदिर पर भी बीजेपी को यह विचार व्यक्त करना चाहिए कि राम मंदिर के ताले आखिर किसने खुलवाए. राम मंदिर के लिए पहल और भगवान का चबूतरा किसने बनवाया. लेकिन कांग्रेस ने कभी भी सत्ता के लिए इस नाम का उपयोग नहीं किया. बीजेपी को इतिहास को समझने की जरूरत है.
कांग्रेस ने सनातन आस्था दूरी बनाने किया काम
इधर, बीजेपी प्रवक्ता शुभम शुक्ला ने कहा कि इतिहास गवाह है कि जब भव्य और दिव्य सोमनाथ के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी, तब देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद वहां पर गए. नेहरू स्वयं तो नहीं गए. उल्टे राष्ट्रपति के जाने पर उन्होंने आपत्ति लेने का काम किया. उसके बाद से ही एक वंशानुक्रम में कांग्रेस पार्टी के जितने भी अध्यक्ष आए. प्रधानमंत्री आए. उन सबने सनातन आस्था से दूरी बनाने का काम किया. राहुल गांधी तक यही सिलसिला लगातार चल रहा है.
कांग्रेस को माफी मांगने का…
उन्होंने कहा कि भाजपा ने 1952 में पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी के उसे संकल्प, जिसमें 370 समाप्त करने की बात की. राम मंदिर के निर्माण की बात थी. उसको आगे बढ़ते हुए आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक लगातार सनातन आस्था को आगे बढ़ने का काम किया है. राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा और शिलान्यास में प्रधानमंत्री स्वयं सम्मिलित हुए. सनातन आस्था को सम्मान देने का काम किया. हिंदू संस्कृति और हमारी सभ्यता को लगातार आगे ले जाकर वैश्विक स्तर पर उसकी ख्याति दिलाई. वहीं कांग्रेस पार्टी ऐसे अवसरों की तलाश में रहती है, जो सनातन विरोधी हो. स्वाभाविक तौर पर कांग्रेस को इतिहास का अध्ययन करते रहना चाहिए और कांग्रेस को माफी मांगने का अवसर इतिहास का अध्ययन करके ही मिलेगा.
सीएम ने कही थी ये बातें
दरअसल, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा था कि एक हजार साल की गुलामी के बाद वर्ष 1947 में देश आजाद हुआ और देश की जनता के पैसे से सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया, लेकिन एक समुदाय विशेष के वोट के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मंदिर का उद्घाटन करने से इंकार कर दिया. नेहरू जी ने वोट के लिए देश के नैतिक मूल्यों व सनातन संस्कृति को किनारे किया था. पढ़ें पूरी खबर
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