अजयारविंद नामदेव, शहडोल। जिले के अंतिम छोर पपौंध क्षेत्र के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र निपनिया से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने एक बार फिर स्वास्थ्य व्यवस्था की हकीकत उजागर कर दी है। यहां प्रसव के बाद छुट्टी मिली महिला घंटों तक अस्पताल परिसर में एंबुलेंस का इंतजार करती रही, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही और गैर जिम्मेदारी ने उसे मजबूर कर दिया कि वह अपने नवजात के साथ ट्रैक्टर से घर लौटे। यह दृश्य न सिर्फ महिला और उसके परिजनों की बेबसी दिखाता है, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर सवाल खड़े करता है।
थके-हारे परिजनों ने ट्रैक्टर का किया इंतजाम
परिजनों का कहना है कि उन्होंने बार-बार अस्पताल स्टाफ से एंबुलेंस की मांग की, लेकिन जिम्मेदार कर्मचारियों ने उनकी गुहार को गंभीरता से नहीं लिया। किसी ने फोन मिलाने की जहमत तक नहीं उठाई। घंटों बीत जाने के बाद जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो थके-हारे परिजनों ने ट्रैक्टर का इंतजाम किया और प्रसूता व नवजात को उसी में बैठाकर घर ले गए, ग्रामीणों का कहना है कि यह कोई इकलौती घटना नहीं है, निपनिया स्वास्थ्य केंद्र में इस तरह की लापरवाही अक्सर सामने आती रहती है।
संवेदनशील स्थिति में भी लोगों को समय पर सुविधा नहीं मिल पा रही
सरकार एक ओर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य योजनाओं पर करोड़ों रुपये खर्च करने का दावा करती है। एंबुलेंस सेवा, जननी एक्सप्रेस जैसी योजनाएं कागजों पर तो गरीबों के लिए राहत का साधन बताई जाती हैं, लेकिन हकीकत में यह योजनाएं कहीं नजर नहीं आतीं। सवाल यह है कि जब प्रसूता और नवजात जैसी संवेदनशील स्थिति में भी लोगों को समय पर सुविधा नहीं मिल पा रही है, तो फिर इन योजनाओं का असली लाभ किसे मिल रहा है।
स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवालिया निशान
यह घटना प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवालिया निशान लगाती है। कागजों पर विकास की चमक दिखाने वाले अधिकारी जरा उस प्रसूता की मजबूरी देखें जो अस्पताल से घर जाने के लिए सड़क पर ट्रैक्टर में बैठने को मजबूर हुई। यह न सिर्फ शर्मनाक है बल्कि स्वास्थ्य विभाग की संवेदनहीनता का जीता-जागता सबूत भी है।
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