मुकेश मेहता, बुधनी। Chaitra Navratri 2025: मध्य प्रदेश को भारत का दिल कहा जाता है। यहां पर कई सारे धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थल मौजूद है, जहां दूर-दूर से घूमने के लिए पर्यटक आते हैं। इन्हीं में से एक है राजधानी भोपाल से करीब 70 किलोमीटर दूर स्थित सलकनपुर मंदिर, जहां की मान्यता काफी ज्यादा है। यहां देशभर से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं।
प्रकृति की गोद में बसा हुआ है मंदिर
यह मंदिर प्रकृति की गोद में बसा हुआ है। ये सीहोर जिले और बुधनी विधानसभा के विजयासन माता को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। यहां हर साल नवरात्रि के दौरान हजारों भक्तों का तांता देखने को मिलता है। इस मंदिर में बिजासन माता की एक आकर्षक मूर्ति है। इसके अलावा इस मंदिर में देवी लक्ष्मी, मां सरस्वती और भैरव देव का भी मंदिर है।
1000 फ़ीट ऊँची पहाड़ी पर है मंदिर
विंध्यवासिनी विजयासन देवी का यह पवित्र सिद्ध शक्ति पीठ देवी “दुर्गा” का है। रेहटी तहसील मुख्यालय के पास सलकनपुर गांव में एक 1000 फीट ऊंची पहाड़ी पर है। यह एक प्राचीन मंदिर हैं और कई चमत्कारी कथाएं एवं प्रसंग धार्मिक पुस्तकों में पढ़ने को मिलते हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग जिससे दो पहिया- चार पहिया वाहन से जा सकते हैं। मंदिर पहुंचने के लिए 1000 से ज्यादा सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। यहां रोपवे की सुविधा भी नागरिको के लिए उपलब्ध है। इसका रखरखाव सलकनपुर ट्रस्ट करता है।
सलकनपुर विजयासन धाम के प्राकट्य की कथा
श्रीमद् भागवत के अनुसार जब रक्तबीज नामक दैत्य से त्रस्त होकर जब देवता देवी की शरण में पहुंचे। तो देवी ने विकराल रूप धारण कर लिया। और इसी स्थान पर रक्तबीज का संहार कर उस पर विजय पाई। मां भगवती की इस विजय पर देवताओं ने जो आसन दिया, वही विजयासन धाम के नाम से विख्यात हुआ। मां का यह रूप विजयासन देवी कहलाया।
सलकनपुर मंदिर निर्माण की कथा
करीब 300 साल पहले पशुओं का व्यापार करने वाले बंजारे इस स्थान पर विश्राम और चारे के लिए रूके। अचानक ही उनके पशु गायब हो गए। बंजारे पशुओं को ढूंढने के लिए निकले, तो उनमें से एक वृद्ध बंजारे को एक कन्या मिली। कन्या के पूछने पर वृद्ध ने सारी बात कही। तब कन्या ने कहा कि आप यहां देवी के स्थान पर पूजा-अर्चना कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं।
बंजारों ने कराया था मंदिर का निर्माण
बंजारे ने कहा कि हमें नहीं पता है कि मां भगवती का स्थान कहां है। तब कन्या ने संकेत स्थान पर एक पत्थर फेंका। जिस स्थान पर पत्थर फेंका, वहां मां भगवती के दर्शन हुए। माता रानी के पूजा करते के कुछ देर बाद ही उनके खोए पशु मिल गए। मनोकामना पूरी होने पर चमत्कार से अभिभूत बंजारों ने मंदिर का निर्माण करवाया। इसके बाद पहाड़ी के नीचे ग्रामीणों का आना जाना शुरू हो गया और मनोकामनाएं पूरी होने के कारण भक्तों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है।
सलकनपुर की मान्यता: पुकार कभी खाली नहीं जाती
मां विजयासन के दरबार में दर्शनार्थियों की कोई पुकार कभी खाली नहीं जाती है। माना जाता है कि मां विजयासन देवी पहाड़ पर अपने परम दिव्य रूप में विराजमान हैं। विंध्याचल पर्वत श्रृंखला पर विराजी माता को विध्यवासिनी देवी भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार देवी विजयासन माता पार्वती का ही अवतार हैं, जिन्होंने देवताओं के आग्रह पर रक्तबीज नामक राक्षस का वध किया था और सृष्टि की रक्षा की थी। विजयासन देवी को कई लोग कुलदेवी के रूप में भी पूजते हैं।
अखंड ज्योति को मां का स्वरुप मानते हैं भक्त
गर्भगृह में लगभग 500 वर्षों से अधिक समय से एक नारियल तेल और एक घी की 2 अखंड ज्योति आज भी प्रज्वलित है। ये ज्योत साक्षात देवी रूप में हैं। इन ज्योतियों को लेकर यह भावना है कि ये सूर्य और चन्द्रमा की तरह अटल हैं। जबकि भक्त इन अखंड ज्योति को मां का स्वरूप मानकर पूजा करते हैं। मंदिर के भीतर गर्भगृह के ठीक सामने भैरव बाबा की मूर्ति है, जहां भक्त माता के दर्शनों को पूर्ण और सार्थक मानते हैं।
500 सालों से जल रही है धूनी
मंदिर में ही भैरव बाबा की मूर्ति के किनारे एक धूनी है, जो 500 सालों से अखंड जल रही है। इस जलती धूनी को स्वामी भद्रानंद और उनके शिष्यों ने प्रज्वलित किया था। तभी से इस अखंड धूनी की भस्म अर्थात राख को ही महाप्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
मंदिर समिति द्वारा महाप्रसाद के पैकेट के रूप में भक्तों को इसे न्योछावर कर दिया जाता है। मान्यता है कि इस महाप्रसाद की भस्म में समस्त रोग-दोष, विपत्तियां-कष्ट तथा पारिवारिक समस्याओं को मिटाने की अद्भुत महाशक्ति है। जिसे भक्त पूर्ण श्रद्धा से प्राप्त कर अपने निवास के पूजा घर में सदा रखते हैं।
तुलादान
मंदिर में जो भक्त अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए तुलादान कराना चाहते हैं,वे बराबर गुड़, अनाज, फल, सोना, चांदी, सिक्के या अन्य वस्तु श्रद्धा और मान्यता के अनुसार मंदिर को दान कर सकते हैं। अनेक भक्त तुलादान सामग्री खुद के घरों से व्यवस्था करके लाते हैं। जो व्यवस्था नहीं कर पाए, वे मंदिर ट्रस्ट को उसका मूल्य चुका कर सामग्री लेकर तुलादान कराकर दान कर अपनी मनोकामना पूरी कर सकते हैं।
कब लगता है मेला?
आपको बता दें कि फरवरी के महीने में सलकनपुर में माघ मेला आयोजित किया जाता है। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां विजयासन दरबार में अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद जमाल चोटी उतारने के लिए और तुलादान करने के लिए शामिल होते हैं। सलकनपुर माघ मेला एक बहुत बड़ा पशु मेला है। इस मेले में बड़ी संख्या में पशु विक्रेता- क्रेता शामिल होते हैं। इसलिए इस मेले को पशुओं की बिक्री का मेला भी कहते
कैसे पहुंचें सलकनपुर मंदिर ?
भोपाल-नसरुल्लागंज रोड पर राजा भोज एयरपोर्ट भोपाल से 70 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। ट्रेन द्वारा: बुधनी रेलवे स्टेशन से 25 कि.मी. दूरी पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए आप होशंगाबाद (38 किलोमीटर की दूरी) या भोपाल स्टेशन (70 किलोमीटर की दूरी) पर भी उतर सकते हैं। सड़क मार्ग से जाना चाहते हैं तो भोपाल से 70 किलोमीटर और होशंगाबाद से 38 किलोमीटर की दूरी पर रेहटी बुधनी रोड पर यह स्थित है।
Lalluram.Com के व्हाट्सएप चैनल को Follow करना न भूलें.
https://whatsapp.com/channel/0029Va9ikmL6RGJ8hkYEFC2H
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की बड़ी खबरें पढ़ने के लिए करें