बालाघाट। कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन में जहां उद्योग धंधे चौपट हो गए और उद्योगपतियों की भी आर्थिक कमर टूट गई है. वहीं रोज कमाने खाने वालों के सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है. ऐसे लोगों की गंभीर आर्थिक स्थिति की जानकारी ना तो शासन और ना ही जनप्रतिनिधियों को है. बालाघाट जिले के सैकड़ों नाबालिग बच्चों को घरों का आर्थिक मोर्चा संभालने के लिए मजदूरी करनी पड़ रही है.
गरीब परिवारों के नाबालिग बच्चों के लिये मानो कोरोना महामारी पहाड़ जैसी मुसीबत लेकर आया है. बालाघाट जिले के कई गांवों में कोरोना लॉकडाउन में मां का काम छूट जाने के बाद बिन बाप के नाबालिगों बच्चों को पेट भरने के लिए 15 किलोमीटर तक साइकिल चलाकर ब्रेड बेचने पड़ रहे हैं.
एक बार फिर लॉकडाउन में दिल पसीजने वाली खबर सामने आई
बता दें कि कोरोना का संक्रमण थमने का नाम नहीं ले रहा है लिहाजा मजबूरी में शासन और प्रशासन को लॉकडाउन लगाना पड़ा रहा है. वहीं लॉकडाउन के साइड इफेक्ट भी सामने आने लगे हैं. एक बार फिर लॉकडाउन में दिल पसीजने वाली खबर सामने आई है. वहीं पिछले साल के लॉकडाउन में कई दुखद दृश्यों को हम शायद अभी तक भूल पाए हैं. अब इस साल भी लॉकडाउन में ऐसे दुखद दृश्य देखकर दिल पसीज उठता है.
शहर से 15 किमी दूर दो नाबालिग भाई साइकिल से बालाघाट आकर ब्रेड और पाव बेचने को मजबूर
लॉकडाउन की वजह से कई लोगों का काम छीन गया है और उनके सामने भूखों मरने की नौबत आन पड़ी है. ऐसे में शहर से 15 किमी दूर ग्राम आलेझरी के रहने वाले दो नाबालिग भाई साइकिल से बालाघाट आकर ब्रेड और पाव बेचने को मजबूर हैं. ब्रेड बेचने के बाद मुनाफे (बचत) के पैसों से जरूरत का घरेलु सामान खरीदकर घर ले जाते हैं. इन बिन बाप के बच्चों की मां पहले घरों में झाड़ू पोछा और बर्तन मांजकर घर चलाती थी, लॉकडाउन में वह काम भी छूट गया है.
ऐसे नाबालिग बच्चों का सामना आज गश्त में लगे पुलिस जवानों और कवरेज कर रहे पत्रकारों से हुआ, तो उसकी व्यथा सुनकर सबका दिल पसीज गया. सभी ने मिलकर इतने रुपये जुटाए कि इनके लिए कम से कम एक महीने की रसोई का इंतजाम हो गया है. वहीं कलेक्टर दीपक आर्य ने बताया कि जिला और पुलिस प्रशासन ऐसे सभी जरूरतमंदों की सहायता के लिए तत्पर है.
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