रवि रायकवार, दतिया। मध्य प्रदेश के दतिया जिले में आधार कार्ड केंद्र अब “जनसेवा केंद्र” नहीं, बल्कि ‘जनशोषण अड्डे’ बन चुके हैं। सरकार की मुफ्त या नाममात्र शुल्क वाली सेवाएं यहां आम जनता की जेब काटने का जरिया बन गई हैं। बच्चों तक को नहीं बख्शा जा रहा, और प्रशासन आंखें मूंदे बैठा है। जहाँ आधार को भारत सरकार ने नागरिकों का मौलिक डिजिटल पहचान प्रमाण पत्र माना है, वहीं दतिया के कई आधार सेवा केंद्रों ने इसे कमाई का स्थायी साधन बना लिया है। ‘फिंगर दो या पैसे दो’ की तर्ज पर यहाँ हर अपडेट अब शुल्क से नहीं, लूट से जुड़ा है।

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नाम, पता, जन्मतिथि या मोबाइल अपडेट करवाने वालों से 50 रुपये की निर्धारित राशि के बजाय 150 रुपये से 300 रुपये तक की वसूली की जा रही है। सबसे शर्मनाक स्थिति तब दिखती है जब 5-15 साल तक के बच्चों के बायोमेट्रिक अपडेट, जो पूरी तरह नि:शुल्क हैं, उसके लिए भी 100 से 200 रुपये मांगे जाते हैं।

इन दिनों सरकार द्वारा स्कूलों, राशन योजनाओं और छात्रवृत्ति आदि में आधार अनिवार्य कर दिया गया है। इसका नतीजा ये है कि हर माता-पिता अपने बच्चे का फिंगरप्रिंट अपडेट करवाने लाइन में लग रहा है, और आधार केंद्र वाले इस मजबूरी का फायदा उठाकर नन्हे हाथों की छाप पर नोट गिन रहे हैं। आधार सुधरवाने केंद्र आई महिला प्रीति ने कहा कि वो फोटो चेंज कराने के लिए यहां आई थी, उससे इसके एवज में सेंटर द्वारा 120 रुपए लिए गए, जबकि रशीद उसे 80 रुपए की दी गई है। 

कहा गया बच्चों के लिए सेवा मुफ्त है, लेकिन ऑपरेटर कहता है कि 200 रुपये नहीं दोगे तो सिस्टम में अपलोड नहीं होगा। नियमों के अनुसार, हर सेवा शुल्क पर UIDAI द्वारा निर्धारित शुल्क की रसीद देना अनिवार्य है, लेकिन दतिया के अधिकांश केंद्रों पर कोई शुल्क सूची नहीं लगी है,ओर अगर शुल्क की रसीद दी जाती है तो उससे बढ़कर पैसे लिए जाते हैं। यदि कोई उपभोक्ता विरोध करे तो जवाब मिलता है
जाना हो तो जाओ, लाइन लम्बी है। 

सबसे बड़ा सवाल यही उठता है, क्या प्रशासन को इसकी खबर नहीं? या फिर मिलीभगत के तहत आँखें मूंदी जा रही हैं? अगर यह सब बिना जानकारी के हो रहा है, तो यह लापरवाही का चरम है। और अगर सब जानते हुए हो रहा है, तो यह भ्रष्टाचार की चुप सहमति।

क्या कहता है नियम

  • किसी भी अपडेट पर सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क से अधिक शुल्क नहीं लिया जा सकता।
  • बच्चों के बायोमेट्रिक अपडेट पूरी तरह मुफ्त हैं।
  • रसीद देना और शुल्क सूची प्रदर्शित करना अनिवार्य है।

लेकिन दतिया में इन नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, और सरकारी पहचान अब निजी वसूली की मुहर बन चुकी है। कई नागरिकों ने बताया कि शिकायत करने के लिए न तो कोई नंबर दिया गया, न ही कोई जिम्मेदार अधिकारी उपलब्ध होता है। UIDAI की हेल्पलाइन 1947 पर कई बार कॉल करने पर भी सिर्फ ‘ऑनलाइन शिकायत करें’ कह दिया जाता है।

आधार’ जिस पर आज सरकारी योजनाओं, शिक्षा, स्वास्थ्य और राशन जैसी बुनियादी ज़रूरतें टिकी हैं, अगर उसी के नाम पर वसूली और अत्याचार होगा, तो फिर आम आदमी की सुरक्षा और गरिमा का क्या अर्थ रह जाएगा? प्रशासन अगर अब भी नहीं जागा, तो आने वाले दिनों में यह लूट सिर्फ बढ़ेगी  और “जनसेवा” की जगह “जनसंत्रास” का नया अध्याय लिखा जाएगा। 

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