शिखिल ब्यौहार, भोपाल। धर्म, सनातन, शास्त्र और इन पर विवाद। देश-प्रदेश में धर्म नीति पर एक के बाद एक मतभेद अब मनभेद में तब्दील होते जा रहे हैं। विरोध के अलग-अलग स्वर के बीच साधु सन्यासियों ने इस विषय पर गंभीर चिंतन के लिए बड़ा निर्णय लिया है। ऐसे मामलों को हिंदू विभाजन षड्यंत्र मानते हुए राजधानी भोपाल में राष्ट्रीय धर्म संसद का आयोजन किया जाएगा। 

प्रयागराज महाकुंभ 2025 में हुआ था पिछली धर्म संसद का आयोजन

धर्म संसद के मंच पर सभी तेरह अखाड़ों के प्रतिनिधि, प्रमुख साधु-संत-सन्यासी समेत कई राष्ट्रीय कथावाचक शामिल होंगे। सभी पीठों के शंकराचार्यों को भी आमंत्रित किया गया है। बता दें कि पिछली धर्म संसद का आयोजन प्रयागराज महाकुंभ 2025 में किया गया था।  

सनातन धर्म और शास्त्र को लेकर सियासी पारा हाई

सनातन धर्म और शास्त्र को लेकर एक के बाद एक मामले सामने आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में किसी न किसी मामले को लेकर पहले विवाद तो फिर सियासी पारा चढ़ा। इटावा में कथावाचक का मामला, भोपाल में सनातन के महत्वपूर्ण ग्रंथ मनुस्मृति को जलाना, महाराष्ट्र में ऋषि श्री वाल्मीकि के जाति पर विवाद तो सुंदरकांड की उस चौपाई पर चरम राजनीति जिसमें ढोल, गवार, शुद्र, पशु, नारी का उल्लेख किया गया। 

13 अखाड़ों समेत देश के प्रमुख कथावाचक, प्रमुख साधु – संत – सन्यासी होंगे शामिल 

अखिल भारतीय संत समिति मध्यप्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष और महामंडलेश्वर स्वामी अनिलानंद महाराज जी ने बताया कि यह सनातन विरोधी ताकतों का प्रपंच ही है। जो जाति वर्ग में संघर्ष कर सनातन को तोड़ने का नाकाम प्रयास करना चाहता है। लिहाजा देश को अखंड भारत के सनातनियों को एक सूत्र में बांधे रखने के लिए धर्म संसद का आयोजन किया जाएगा। इसमें देश भर से प्रमुख साधु संत समेत 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। इसके अलावा देवकीनंदन ठाकुर समेत सभी शंकराचार्यों को भी आमंत्रित किया जाएगा।

हिंदू अब विभाजन के संकट की ओर, यह देश के लिए ठीक नहीं

अखिल भारतीय संत समिति मध्यप्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष ने बताया कि हिंदू विभाजन का षडयंत्र सदियों से चला रहा है। श्री आदि शंकराचार्य ने चारों धाम की स्थापना भी सनातन को एक रखने की ही की थी। कुंभ जैसे कई परम पवित्र आयोजन में भी सनातन एकता के साथ समरसता के लिए ही आयोजित किए जाते रहे हैं। लेकिन, अब कहीं गंथ्रों तो कही चौपाई पर विरोध हो रहा है। उन्होंने कहा कि यह विधर्मियों का प्रहार है। जिसमें विदेशी ताकतों के शामिल होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। हिंदू को वर्ण-जाति के विवादों में विभाजित कर स्वार्थ सिद्धी की जा रही है। यह कौन लोग हैं यह बड़ा सवाल है। जरूरी यह भी है कि सनातन वृक्ष की सभी शाखाएं मजबूती से एक रहें। इसके लिए धर्म संसद के आयोजन से सभी जाति, वर्ण और वर्गों को एक मंच पर लाया जाएगा।

जाति वर्ग संघर्ष का कारण बीजेपी, ऐसे आयोजन भी आरएसएस की मानसिकता- कांग्रेस

मामले पर कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग प्रदेशाध्यक्ष प्रदीप अहिरवार ने बताया कि जाति वर्ग संघर्ष का कारण बीजेपी की गलत नीति और आरएसएस की मानसिकता है। देश और प्रदेश में संवैधानिक अधिकारों से एक वर्ग को क्यों वंचित किया जा रहा है। संविधान में सभी को समान अधिकार दिया है। इटावा में कथावाचक के साथ हुई जैसी कई अन्य घटनाएं जो संविधान का उल्लंघन करती हैं। सभी को अपने विवेकानुसार कथा, शास्त्र, पुराणों के वाचन का अधिकार है। इसमें बीजेपी समेत ऐसे संतों की आपत्ति होती है जो संविधान को नहीं मानते। अहिरवार ने यह भी कहा कि ऐसे आयोजन आरएसएस की मानसिकता के कारण है। आरोप लगाया कि बीजेपी और आरएसएस ही देश में जाति वर्ग विघटन का बड़ा कारण है।

धर्म और सनातन शब्द से ही कांग्रेस को नफरत, तुष्टिकरण ही इनका आधार- बीजेपी

बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता अजय सिंह यादव ने बताया कि धर्म, सनातन, नीति और धार्मिक निर्णय के लिए साधु-संतों का काम है। बीजेपी भी साधु-संतों का सम्मान कर सनातन के रास्ते पर चल लोक कल्याण के लिए काम कर रही है। केंद्र हो या बीजेपी शासित राज्यों में संविधान और सनातन सर्वोपरि हैं। कांग्रेस न तो सनातन और न ही संविधान का सम्मान करती है। सनातन, साधु-संत, सन्यासी, धर्म संसद जैसे शब्दों से ही कांग्रेस को आपत्ति होती है। कांग्रेस सिर्फ तुष्टिकरण के लिए राजनीति करती है। उन्होंने यह भी कहा कि राम राज्य की स्थापना के लिए ऐसे आयोजन से कांग्रेस को आपत्ति आखिर क्यों।

महाकुंभ में हुई थी पिछली धर्म संसद, कई प्रस्तावों पर लगी थी मोहर

बता दें कि प्रयागराज में महाकुंभ 2025 के दौरान धर्म संसद का आयोजन किया गया था। तब वक्फ बोर्ड की तर्ज पर सनातन बोर्ड का गठन समेत कई प्रस्तावों पर एक मंच से मोहर लगी थी। इसमें हिंदू धर्म के विभिन्न पंथों और परंपराओं को एकजुट करना, सनातन धर्म के सिद्धांतों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाना, प्राचीन मंदिरों और तीर्थ स्थलों की सुरक्षा और संवर्धन जैसे कई प्रस्तावों पर गहन मंथन पर बाद मोहर लगाई गई। इन प्रस्तावों पर वर्तमान में अलग-अलग धार्मिक संस्थान काम कर रहे हैं।

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