हरिश्चंद्र शर्मा, ओंकारेश्वर। पवित्र सावन माह में जहां एक ओर श्रद्धालु बड़ी संख्या में नर्मदा तट पर पुण्य की डुबकी लगाने आ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रशासन की लापरवाही लगातार लोगों की जिंदगियां निगल रही है। ताजा मामला सोमवार 12 बजे ओंकारेश्वर के गौमुख घाट का है, जहां नहाते समय एक युवक की डूबने से मौत हो गई।

नीमच से परिवार सहित ओंकारेश्वर दर्शन के लिए आया 26 वर्षीय पंकज पिता कैलाश नहाने के दौरान नर्मदा की तेज धारा में बह गया। स्थानीय गोताखोर तुकाराम ने होमगार्ड व एसडीईआरएफ के जवानों की मदद से युवक को बाहर निकाला, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। युवक को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डॉक्टर रवि वर्मा ने उसे मृत घोषित कर दिया।

सावन में श्रद्धालुओं की भीड़ और घटती सुरक्षा

श्रावण मास के चलते ओंकारेश्वर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। घाटों पर भारी भीड़ है लेकिन सुरक्षा के इंतजाम न के बराबर है। बीते सात दिनों में यह पांचवीं मौत है, जो नर्मदा में स्नान करते हुए हुई है। हर बार प्रशासन केवल “रेस्क्यू” दिखाकर मामले को शांत कर देता है, लेकिन स्थायी समाधान की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

श्रद्धालुओं का फूटा गुस्सा

घटना के बाद घाट पर मौजूद बिहार से आए श्रद्धालु ने कहा, “इतने बड़े तीर्थ में सुरक्षा का ऐसा अभाव देखकर हम स्तब्ध हैं। यहां हर घाट पर गोताखोर होने चाहिए, चेतावनी बोर्ड लगे होने चाहिए, लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा। यह सीधी घोर लापरवाही है इसके कारण कई श्रद्धालु डूब रहे हैं।

आस्था से जुड़ी सुरक्षा प्रशासन की प्राथमिकता नहीं

घटनास्थल पर मौजूद जिला होमगार्ड कमांडेंट आशीष कुशवाह ने कहा- गोताखोरों को तैनात किया गया है और घाटों पर निगरानी बढ़ाई गई है, लेकिन श्रद्धालुओं को भी सावधानी रखनी चाहिए।” यह बयान जिम्मेदारी को श्रद्धालुओं पर डालने जैसा है, जबकि जमीनी हकीकत यह है कि घाटों पर न तो पर्याप्त सुरक्षाकर्मी है, न ही बचाव के उपकरण। ओंकारेश्वर जैसे अंतरराष्ट्रीय तीर्थ स्थल पर ऐसी घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं। हर मौत एक सवाल है- क्या श्रद्धा से जुड़ी सुरक्षा प्रशासन की प्राथमिकता नहीं है?

श्रद्धालुओं की मांग

हर घाट पर प्रशिक्षित गोताखोर तैनात हो, चेतावनी संकेत और जीवन रक्षक उपकरण अनिवार्य हो, सावन जैसे भीड़ वाले महीनों में अतिरिक्त सुरक्षा बल लगे, घाटों की भौगोलिक स्थिति के अनुसार “जोखिम क्षेत्र” चिन्हित किए जाए। जब तक प्रशासन, मंदिर प्रबंधन और स्थानीय निकाय मिलकर तीर्थक्षेत्रों की सुरक्षा व्यवस्था को प्राथमिकता नहीं देंगे, श्रद्धालुओं की यह डुबकी पुण्य की नहीं, जानलेवा साबित होती रहेगी।

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