कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर का इतिहास सदियों पुराना है। सांस्कृतिक धरोहर से लेकर पुरातात्विक स्थलों, समृद्ध और गौरवशाली इतिहास से यह शहर देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान रखता है। इसका उदाहरण है 120 साल पुरानी देश की सबसे पतली नैरोगेज ट्रेन है जो एक जमाने में यहां चला करती थी। उस नैरोगेज ट्रेन को हेरिटेज टूरिस्ट ट्रेन के रूप में चलाने की कवायद अब तेज हो गयी है।
फिर पटरी पर दौड़ेगी देश की सबसे पतली ट्रेन
दरअसल, ग्वालियर के इतिहास को आधुनिकता के साथ संजोया जा रहा है। यही वजह है कि सालों से बंद पड़ी 120 साल पुरानी देश की सबसे पतली नैरोगेज ट्रेन जल्द एक बार फिर ट्रेक पर दौड़ सकती है। इसे हेरिटेज टूरिस्ट ट्रेन के रूप में घोसिपुरा नैरोगेज स्टेशन से बानमौर गांव स्टेशन के बीच 20 किलोमीटर के ट्रेक पर शुरू करने की तैयारी चल रही है। रेलवे बोर्ड के सर्वे और स्थानीय प्रशासन के साथ सामाजिक लोगो के सुझाव पर अमल करते हुए ये कदम उठाया गया है।
200 किलोमीटर का सफर करती थी ट्रेन
बता दें कि नैरोगेज ट्रेन हर दिन दो फेरे लगाकर 200 किलोमीटर का सफर करती थी। यह ग्वालियर से श्योपुर तक चलती थी। लेकिन मार्च 2020 में कोरोना काल के दौरान इसने आखिरी सफर किया और इसके बाद कभी ट्रैक पर नहीं लौटी। लेकिन लंबे इंतजार के बाद अब एक बार फिर ट्रेन के पटरी पर लौटने की उम्मीद जताई जा रही है।
जल्द कर सकेंगे इतिहास की सैर
दरअसल, स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने रेलवे से इसके संचालन की मांग की है। इस मुद्दे को उठाने वाले वरिष्ठ समाज सेवी सुधीर गुप्ता का कहना है, ‘हाल ही में रेलवे बोर्ड की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हेरिटेज आसीमा मेहरोत्रा और डीडी राजेश कुमार ने ग्वालियर में इस महत्वपूर्ण कदम से जुड़ा सर्वे किया है। इसके बाद संभावनाओं को मजबूती मिली है कि देश की सबसे पतली ग्वालियर की यह नैरोगेज ट्रेन जल्द ही इतिहास की सैर कराएगी, जो घोसीपुरा से बानमोर गांव के बीच चल सकती है।’
हैरिटेज टूरिस्ट ट्रेन के रूप में चलाने का प्रस्ताव
‘दो कोच वाली इस ट्रेन को हैरिटेज टूरिस्ट ट्रेन के रूप में चलाने का प्रस्ताव बना है। इसके साथ ही सिंधिया स्टेट टाइम के नैरोगेज म्यूजियम का भी विस्तार नागपुर के नैरोगेज म्यूजियम की तर्ज पर कराया जाए। ताकि यहां पर सिंधिया स्टेट के पुराने रॉयल कोच इंजन को भी डिस्प्ले किया जाए। जिससे यह एक अच्छा पर्यटक स्थल बन सके।’
केंद्रीय मंत्री सिंधिया ने जताई खुशी
ग्वालियर सिंधिया रियासत के महाराज और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने साल 2021 में रेल मंत्री को पत्र लिखकर नैरोगेज को नीलाम ना करते हुए हेरिटेज टूरिस्ट ट्रेन की तरह चलने की मांग की थी। पत्र के बाद रेलवे ने इस दिशा में यह काम तेज किया है। केंद्रीय मंत्री सिंधिया ने रेलवे बोर्ड द्वारा तैयार किए गए प्रस्ताव पर खुशी जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि जल्द ही पर्यटन की दृष्टि से यह सकारात्मक कदम उभर कर आएगा।
रेलवे के पास आज भी नैरोगेज के 38 कोच है, इनमे से 27 कोच काम के हैं। वहीं 7 में से से 4 इंजन चलाने लायक भी हैं। बहरहाल इस पहल ने इस ऐतिहासिक ट्रैक को पर्यटन और सांस्कृतिक संरक्षण का नया जरिया बना दिया है। यह पहल ग्वालियर की ऐतिहासिक विरासत को अगली पीढ़ी तक जीवित रखने का मजबूत जरिया बनेगी। साथ ही पर्यटन, स्थानीय अर्थव्यवस्था को नया जीवन देने का मौका भी साबित होगी। हेरिटेज ट्रेन के जरिए लोग इतिहास के साथ सफर कर पाएंगे और क्षेत्र की पहचान को नई रौशनी मिलेगी।
देखें इसका इतिहास
– 1895 में अंग्रेजों के जमाने में इसकी नींव रखी गई
– ग्वालियर रियासत के तत्कालीन महाराजा माधोराव सिंधिया ने ग्वालियर से भिंड के बीच नैरोगेज रेल लाइन तैयार करवाई
– सिंधिया रियासत काल में 1899 में ग्वालियर लाइट रेलवे यानी GLR के रूप में इसे शुरू किया गया
– मालवाहक ट्रेन के रूप में इसे शुरू किया गया था
– 02 फीट गेज यानी 610 मिलीमीटर वाली नैरोगेज ट्रैन उस दौर में भाप के इंजन से चला करती थी
– देश की सबसे पतली नैरोगेज थी
– इसका ट्रेक ग्वालियर से शिवपुरी, भिंड और श्योपुर कलां तक फैला था
– साल 1900 में महाराज सिंधिया की तरफ से इंडियन मिडलैंड रेलवे कंपनी ने ग्वालियर लाइट रेलवे का संचालन संभाला
– 1909 तक ग्वालियर से जौरा, सबलगढ़, बीरपुर होते हुए श्योपुर तक यह ट्रेन 200 किलोमीटर का सफर तय करने लगी थी
– 1936 में 200 किलोमीटर के ट्रेक के चलते ग्वालियर नैरोगेज रेल को दुनिया की सबसे लंबी नैरोगेज लाइन की पहचान मिली
– 1942 में इसका नाम ग्वालियर लाइट रेलवे से बदलकर सिंधिया स्टेट रेलवे कर दिया गया
– 1951 में सिंधिया स्टेट रेलवे को भारत के सेंट्रल रेलवे ने खरीद लिया और नैरोगेज ट्रेन का संचालन का जिम्मा संभाला था
– ग्वालियर शहर के बीच से गुजरने वाली ये नैरोगेज ट्रेन यात्रियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी
– साल 2020 में यह आखिरी बार ट्रेक पर चली।
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