कर्ण मिश्रा, ग्वालियर. एमपी पुलिस विभाग में TI की तर्ज पर क्या अब CSP-DSP-SDOP के जिले में ट्रांसफर किए जाएंगे? इस तरह का प्रस्ताव PHQ ने सरकार को भेजा है. जिसके बाद चर्चाएं है कि CSP समकक्ष अधिकारी वर्ग में इसको लेकर काफी नाराजगी की बात सामने आ रही है. यह बयान MP पुलिस सेवानिवृत्त राज्यपत्रित अधिकारी संघ ग्वालियर इकाई के कोषाध्यक्ष रिटायर्ड SDOP केडी सोनकिया ने दिया है.
रिटायर्ड SDOP केडी सोनकिया ने इसे लेकर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि 1992 में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने डीएसपी के जिले के अंदर स्थानांतरण का अधिकार पुलिस अधीक्षक को दिया था. लेकिन जब इसका विरोध तेज हुआ तो 2000 में यह अधिकार वापस ले लिया गया. लेकिन अब दोबारा यह कदम उठाया जा रहा है. ऐसा कुछ भूतपूर्व और वर्तमान पुलिस कर्मियों का मानना है. वर्तमान में मप्र में डीएसपी की पोस्टिंग अनुभाग स्तर पर गृह विभाग करती है.
कलेक्टर अनुभागों में करते हैं डिप्टी कलेक्टर की पोस्टिंग
उन्होंने कहा कि अब जिस तरह से कलेक्टर जिले के अंतर्गत अनुभागों में डिप्टी कलेक्टर की पोस्टिंग करते हैं, उसी तरह डीएसपी की पोस्टिंग अनुभागों में पुलिस अधीक्षक के द्वारा की जाए. ऐसी व्यवस्था मध्यप्रदेश शासन कर रही है. जो कि मध्य प्रदेश के डीएसपी के बीच असंतोष का कारण बन रहा है. यह बदलाव से पहले डिप्टी कलेक्टर और डीएसपी के स्थानांतरण से संबंधित कानूनी प्रावधानों को समझना चाहिए.
DSP रैंक के अधिकारियों में नाराजगी
केडी सोनकिया का आरोप है कि DSP रैंक के अधिकारियों में यह नाराजगी इसलिए भी है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन होगा. सुप्रीम कोर्ट के पुलिस सुधारों से संबंधित प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ (2006) मामले में निर्देश दिए हैं कि पुलिस अधिकारी को न्यूनतम 2 वर्ष का कार्यकाल दिया जाए. सामान्यत गृह विभाग किसी डीएसपी अधिकारी का 2 वर्ष के कार्यकाल से पहले एक अनुभाग से दूसरे अनुभाग में स्थानांतरण नहीं करता है. क्या कोई पुलिस अधीक्षक वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य को देखते हुए किसी डीएसपी को न्यूनतम 2 वर्ष तक किसी अनुभाग में रख पाएगा. यदि नहीं तो फिर पुलिस अधिकारी कोर्ट की तरफ जाएंगे. जिसके कारण कानूनी टकराव होगा.
मौजूदा पुलिस अधिनियम से असंगति होगी
रिटायर्ड SDOP ने कहा कि मौजूदा पुलिस अधिनियम से असंगति होगी. प्राय सभी विभागों द्वारा राजपत्रित और तृतीय वर्ग के सभी कर्मचारियों की जिले के अंदर अनुभागों में सीधे पोस्टिंग की जाती है. उदाहरण:- जनपद सीईओ, नगर पालिका सीएमओ, सभी विभाओं के एसडीओ इत्यादि. केवल डिप्टी कलेक्टर और तहसीलदार ही अपवाद हैं. पुलिस अधीक्षक के हाथ में डीएसपी की पदस्थापना का कोई नियम नहीं है. महिला अधिकारियों की राजनैतिक दबाव में फील्ड में पदस्थापना कम होने की संभावना रहेगी. जिले स्तर पर पदस्थापना से लिंगभेद, जातिवाद या व्यक्तिगत पसंद ना पसंद जैसी भावनाओं को बढ़ावा मिलने की संभावना भी है.
निष्पक्ष कार्रवाई करने वाले अधिकारियों को बार-बार स्थानांतरण झेलना पड़गा
केडी सोनकिया ने कहा कि कानून व्यवस्था स्थिति निर्मित होने पर प्रायः उप पुलिस अधीक्षक को इसलिए जांच सौंपी जाती है, क्योंकि इनकी पदस्थपना राज्य शासन से होती है. जिले की राजनीति का सीधा हस्तक्षेप नहीं होता. यदि ये पोस्टिंग भी जिले से कि जाने लगी तो उप पुलिस अधीक्षक की कार्रवाई/जांच को राजनीतिक रूप से प्रभावित बताया जाएगा. उप पुलिस अधीक्षक की पोस्टिंग भी जिले से होने पर अधिकारी का अधीनस्थों के ऊपर कोई प्रभावी नियंत्रण नहीं होगा. निष्पक्ष कार्रवाई करने वाले अधिकारियों को बार-बार जिले में स्थानांतरण झेलना पड़गा.
SP-डीएसपी मतभेद से कमांड संरचना बिगड़ेगी
उन्होंने कहा कि निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर प्रभाव: SP के निर्णय में स्थानीय दबाव या पक्षपात बढ़ने की संभावना रहेगी. अनुशासन प्रभावित होगा. SP-डीएसपी मतभेद से कमांड संरचना बिगड़ेगी. भ्रष्टाचार का जोखिम होगा, क्योंकि लंबी तैनाती से सांठगांठ बढ़ सकती है. समन्वय की कमी भी बनेगी, क्योंकि राज्य स्तर पर डीएसपी का असामान वितरण होगा. प्रशासनिक अक्षमता भी एक वजह बनेगी, क्योंकि SP के पास राज्यव्यापी दृष्टिकोण नहीं, निर्णय में देरी होगी. SP डीएसपी को प्रतिशोध में गलत तैनाती दे सकता है. स्थानीय प्रभाव भी देखने मिलेगा. ऐसे में राजनीति और प्रभावशाली लोग हावी हो सकते हैं.
रिटायर्ड ASP ने किया विरोध
केडी सोनकिया का यह भी कहना है कि 33 साल की सेवा के दौरान उनका 66 बार ट्रांसफर हुआ था. इन हालातों से और ज्यादा स्तिथि बिगड़ेगी. इधर, रिटायर्ड ASP यूसी पांडे ने भी इस कदम का विरोध जताया है.
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