कुमार इंदर, जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर खंडपीठ ने जिला कोर्ट के बर्खास्त जज के मामले की सुनवाई में अहम टिप्पणी की है। कहा- हाईकोर्ट और जिला कोर्ट के बीच सामंती और गुलाम जैसे संबंध। हाईकोर्ट और जिला कोर्ट के बीच में स्वर्ण और शूद्र जैसे हालात है।
जाति व्यवस्था की छाया राज्य के न्यायिक ढांचे में भी
जिला कोर्ट के जज हाईकोर्ट के जजों से मिलते हैं तो उनकी हालत बिना रीड की हड्डी वाले गिड़गिड़ाने वाली होती है। हाईकोर्ट ने कहा- जाति व्यवस्था की छाया राज्य के न्यायिक ढांचे में भी दिखती है। हाईकोर्ट के जज खुद को सवर्ण और जिला कोर्ट के जजों को शूद्र समझते हैं। इस व्यवस्था से निचली अदालत निष्पक्षता से फैसला नहीं कर पाती।
जिला कोर्ट के जज को बर्खास्त कर दिया था
दरअसल जिला कोर्ट के बर्खास्त जज के एक मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की है। जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल की बेंच में सुनवाई हुई है। व्यापमं मामले में जमानत देने में दोहरा रवैया अपनाने पर हाईकोर्ट ने जिला कोर्ट के जज को बर्खास्त कर दिया था। हाईकोर्ट ने बर्खास्त जिला कोर्ट के जज को बैकवेजेस के साथ पेंशन देने के आदेश दिए हैं।
हाईकोर्ट प्रशासन ने बर्खास्तगी की कार्रवाई की थी
याचिकाकर्ता जज को 5 लाख का मुआवजा देने के भी निर्देश दिए हैं। विशेष न्यायाधीश के रूप में भोपाल जिला अदालत में कार्यरत रहे जगत मोहन चतुर्वेदी ने याचिका दायर की थी। बर्खास्त जज पर 2015 में व्यापमं मामले में जमानत देने पर पक्षपात के आरोप लगे थे। आरोप के बाद हाईकोर्ट प्रशासन ने बर्खास्तगी की कार्रवाई की थी।
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