कुमार इंदर, जबलपुर। मध्य प्रदेश के जबलपुर का सरकारी एजुकेशन सिस्टम एक महीना बीतने के बाद भी जम नहीं पाया है। विभाग अभी भी ट्रांसफर और प्रमोशन में उलझा हुआ है। अतिथि शिक्षकों की भी जॉइनिंग नहीं हो पाई है। DEO ऑफिस में मेला लगा हुआ है और स्कूली बच्चों को पढ़ाई का नुकसान भुगतना पड़ रहा है। 

सरकारी शिक्षा का स्तर किसी से छुपा नहीं

सरकार भले ही शिक्षा के स्तर को सुधारने की बात कहती रहती है। उस दिशा में प्रयास भी होते हैं और करोड़ों रुपए का बजट भी खर्च होता है। लेकिन सच यह है कि जमीनी स्तर पर इसका असर उस कदर दिखाई नहीं देता। सत्र 2024-25 को शुरू हुए एक क्वार्टर निकल चुका है। लेकिन अभी भी सरकारी स्कूलों का सिस्टम जम नहीं पाया है। अगस्त महीना खत्म होने के बाद भी उच्चपद प्रभार, पोस्टिंग, ट्रांसफर अतिशेष का काम चल रहा है। जिसके चलते जबलपुर जिला शिक्षा कार्यालय में आए दिन सैकड़ो टीचरों का जमावड़ा देखने को मिलता है। 

वहीं दूसरी तरफ स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा है। निजी स्कूलों की बात करें तो बच्चों की अर्धवार्षिक परीक्षा शुरू होने वाले हैं। वहीं सरकारी स्कूलों में अभी यह तय नहीं हो पाया है कि कौन सा शिक्षक कहां पर पढ़ाई कराएगा। लगभग 15 अगस्त तक उच्चपद प्रभार के काम चलने के बाद आप अतिशेष शिक्षकों का काम किया जा रहा है। उनके बाद फिर अतिथि शिक्षकों की नियुक्ती का काम किया जाएगा जिसमें सितंबर का महीना भी निकल जाएगा।

प्रदेशभर का यही हाल

ये आलम सिर्फ जबलपुर जिले का नहीं है। अलबत्ता प्रदेश भर की यही स्थिति है। यहां की बात करें तो यहां पर रेगुलर शिक्षकों में 378 शिक्षकों को अतिशेष की श्रेणी में डाला गया है। जिन्हें उन स्कूलों में भेजा जा रहा है, जहां पर शिक्षकों की कमी है। अतिशेष शिक्षकों के क्राइटेरिया में सरकार ने 30 बच्चों पर एक शिक्षक की नियुक्ति तय की है। इस हिसाब से जिन स्कूलों में बच्चों की दर्ज संख्या कम है, वहां से रेगुलर टीचर को हटाकर वहां शिफ्ट किया जा रहा है, जहां पर टीचरों की कमी है।

अतिथि शिक्षकों का नहीं कोई अता पता

मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले अतिथि शिक्षकों की बात करें तो पूरे प्रदेश भर में 70 हजार की संख्या है, जो पहली से लेकर 12वीं तक के बच्चों को पढ़ाते हैं। जबलपुर की बात करें तो जिले में तकरीबन 2000 अतिथि शिक्षक हैं। ऐसे में अतिथि शिक्षकों का भी अब तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है। शिक्षा विभाग का कहना है कि उच्चपद प्रभार, अतिशेष के काम समाप्त होने के बाद अतिथि शिक्षकों की जॉइनिंग पर काम किया जाएगा। आपको बता दें कि अतिथि शिक्षक का हर साल नया रजिस्ट्रेशन किया जाता है।

लेट लतीफी का छात्रों को भुगतना पड़ेगा खामियाजा

सवाल उठता है कि जो काम स्कूल खुलने के पहले समाप्त या तय कर लिए जाने चाहिए, उसे नए शिक्षण सत्र के शुरू होने पर ही क्यों किया जाता है? ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि सरकारी स्कूलों का शिक्षण सत्र शुरू होने के बाद सारे काम किए जा रहे। अमूमन हर साल यही स्थिति बनती है, जब बच्चों की पढ़ाई शुरू होने के बाद ही सारी प्रक्रिया अपनाई जाती है। जिसका खामियाजा बच्चों को तो भुगतना पड़ता ही है, लेकिन रिजल्ट खराब होने पर इसकी गाज अतिथि शिक्षकों पर भी गिरती है। यह आलम तब है, जब कई सारे स्कूल ऐसे हैं जहां पर बहुतायत में सिर्फ अतिथि शिक्षकों के दम पर बच्चों की पढ़ाई हो रही है।

1789 स्कूलों में 6000 के करीब है शिक्षक

जबलपुर की बात करें तो 1789 स्कूलों में करीब 1 लाख 60 हज़ार स्टूडेंट पहली से लेकर 12वीं तक की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इन छात्रों को पढ़ाने के लिए तकरीबन 6 हज़ार शिक्षक रेगुलर बेस पर काम कर रहे हैं। वहीं 2000 अतिथि शिक्षक भी इस काम में लगे हुए थे जिनका अभी तक कोई अता-पता नहीं है।

हर साल सरकारी स्कूलों में दर्ज छात्रों की संख्या में हो रही कमी

सरकारी स्कूलों की बात करें तो हर साल सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाली बच्चों की संख्या घटती जा रही है, इस साल भी तकरीबन 10 हजार  से ज्यादा बच्चों की संख्या घटने का अनुमान है। हालांकि सरकारी स्कूलों में 30 सितंबर तक एडमिशन की प्रक्रिया चालू रहती है। लेकिन अभी तक के आंकड़ों के अनुसार 10 हजार से ज्यादा छात्र इस साल स्कूल से ड्रॉप आउट हो रहे हैं।

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