योगेश पाराशर, मुरैना। गर्मी अपने अंतिम चरण में है। लेकिन जाते-जाते इस मौसम ने मध्य प्रदेश में नेताओं और अफसरों के उन वादों की हकीकत को दिखाता गया जो चुनावी मौसम में किए गए थे। दरअसल, मुरैना से बेहद शर्मनाक तस्वीर सामने आई है जहां ग्रामीण बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। आदिवासी अंचल के लोगों को मटमैला पानी पीकर अपनी प्यास बुझाना पड़ रहा है। इस समस्या ने जलजीवन मिशन के तहत नल जल योजना की जमीनी हकीकत बताई है। 

2 किलोमीटर दूर से लाते हैं मटमैला पानी

दरअसल, सबलगढ़ तहसील के आदिवासी गांव सिंगारदे और बहेरी के बच्चे से लेकर युवा और महिलाएं सुबह से लेकर शाम तक सिर्फ पानी के लिए परेशान हैं। रोजाना करीब 2 किलोमीटर दूरी तय कर पीने के लिए मटमैला पानी जुटा पा रहे हैं। अधिकारी जब तपती गर्मी में ऐसी कमरे में बैठकर चैन फरमा रहे होते हैं। तब यहां के लोग बूंद-बूंद पानी के लिए संघर्ष कर रहे होते हैं। 

आधा दर्जनहैंडपंप बने शो पीस

आदिवासी गांव सिंगारदे और बहेरी में आधा दर्जन के लगभग हेड पंप लगे हुए हैं। लेकिन वह भी वाटर लेवल सूख जाने से बंद हो गए। यहां के आदिवासी परिवारों को पानी के लिए एकमात्र सहारा कुआं है, जो गांव से करीब दो किलोमीटर दूर है। लेकिन कुआं में भी थोड़ा सा दलदल भरा पानी है। उसे छानने के बाद उन्हें पीना पड़ता है।

2 करोड़ 50 लाख का फंड मिला

बता दें कि सरकार ने दोनों गांव के लिए 2023 में नल जल योजना के तहत पेयजल सप्लाई की योजना बनाई थी। 2 करोड़ 50 लाख का फंड भी स्वीकृत हुआ। ठेकेदार ने काम शुरू किया तो लोगों के चेहरे पर खुशी छा गई। गांव वाले ने सोचा अब तो 2 किलोमीटर दूर से पानी नहीं लाना पड़ेगा। लेकिन हुआ उसके उलट। 

टंकी बनी, पाइप बिछी लेकिन नहीं मिला पानी

गांव में टंकी के निर्माण से लेकर पाइप लाइन तक बिछा दी गई। लेकिन 3 साल बीत जाने के बावजूद ग्रामीणों को एक बूंद पानी भी नहीं मिला। पूरी योजना भ्रष्टाचार की वजह से गांव की घर घर नल जल योजना शो पीस बनकर रह गई है। जबकि अधिकारियों नें एक-दो दिन में पानी की समस्या का निदान करने की बात कही।

ग्रामीणों की मानें तो चुनाव के वक्त नेता आते हैं वादे करके चले जाते हैं। जब हमें पानी की जरूरत होती है तो कोई भी उनके गांव में झांकने तक नहीं आता।

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