शब्बीर अहमद, भोपाल। कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रमों में मंच पर नहीं बैठने के निर्णय के संबंध में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का बयान सामने आया है। दिग्विजय ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए कहा कि कांग्रेस को कार्यकर्ताओं के बीच रहना होगा। मेरा मंच पर न बैठने का निर्णय केवल व्यक्तिगत विनम्रता नहीं बल्कि संगठन को विचारधारात्मक रूप से सशक्त करने की सोच को लेकर उठाया गया कदम है। यह निर्णय कांग्रेस की मूल विचारधारा—“समता, अनुशासन और सेवा” का प्रतीक है। आज कांग्रेस का कार्य करते हुए कार्यकर्ताओं को नया विश्वास और हौसला चाहिए। इसके लिए संगठन में जितनी सादगी होगी उतनी सुदृढ़ता आएगी।
राहुल गांधी जी खुद दे चुके मिसाल
दिग्विजय ने कहा मैंने मध्यप्रदेश में 2018 में *पंगत में संगत* और 2023 में *समन्वय यात्रा* के दौरान भी मंच से परहेज किया, जिसका एकमात्र उद्देश्य रहा है कि कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच कोई दूरी न रहे और भेदभाव पैदा करने वालों को सामंजस्य की सीख दी जा सके। खुद राहुल गांधी जी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहते हुए ऐसी मिसाल प्रस्तुत कर चुके हैं। 17 मार्च 2018 को दिल्ली में तीन दिवसीय कांग्रेस का पूर्ण राष्ट्रीय अधिवेशन इस बात का गवाह रहा है। उस अधिवेशन में राहुल जी, सोनिया गांधी जी सहित सभी वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता मंच से नीचे दीर्घा में ही बैठे थे। यहाँ तक कि स्वागत-सत्कार भी मंच से नीचे उनके बैठने के स्थान पर ही हुआ। मैं समझता हूँ, वह फैसला कांग्रेस पार्टी का सबसे सफलतम प्रयोग था।
दिग्विजय ने गांधी जी के असहयोग आंदोलन का किया जिक्र
कांग्रेस अपनी शुरुआत से ही ऐसे उदाहरणों से भरी हुई है। महात्मा गांधी से लेकर राहुल गांधी तक अनेक मौकों पर नेताओं का जनता के बीच में रहना और उनके साथ बैठना मिसाल बनता रहा है। असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी प्रायः मंच पर न बैठकर जमीन पर आमलोगों के साथ ही बैठा करते थे। एक प्रसिद्ध घटना में जब वे किसी सभा में बोलने गए तो आयोजकों ने उनके लिए मंच पर कुर्सी रखी थी, लेकिन गांधी जी ने उसे ठुकरा दिया और जमीन पर चटाई बिछाकर बैठ गए। उनका कहना था कि वे लोगों के बीच कोई भेदभाव नहीं चाहते और सभी के साथ एक समान व्यवहार करना चाहते हैं। इससे उनकी विनम्रता और समानता के प्रति प्रतिबद्धता स्पष्ट होती थी। गांधी जी का यह व्यवहार उनकी जीवनशैली और दर्शन का हिस्सा था जो सादगी और समानता पर आधारित था।
मंच पर नहीं बैठने का निर्णय नया नहीं है
पूर्व सीएम ने कहा कि 28 अप्रैल 2025 को ग्वालियर में कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रमों में मंच पर नहीं बैठने का निर्णय न तो मेरे लिए नया है और न ही कांग्रेस पार्टी के लिए। कांग्रेस पार्टी सदैव कार्यकर्ताओं की पार्टी रही है। केंद्र या राज्यों में जब-जब भी कांग्रेस पार्टी सत्ता में रही है तो वह कार्यकर्ताओं के ही बल पर रही है। संगठन के बल पर रही है। जब नेतृत्व को कार्यकर्ताओं का समर्थन मिला है तभी पार्टी सत्ता में आई है। लेकिन पिछले कुछ सालों में मैंने अनुभव किया है कि जिन्हें मंच मिलना चाहिए वे उससे वंचित रह जाते हैं और नेताओं के समर्थक मंच पर अतिक्रमण कर लेते हैं। जिससे बेवजह मंच पर भीड़ होती है, अव्यवस्था फैलती है और कई बार मंच टूटने जैसी अप्रिय घटनाएँ भी हो जाती हैं।
कांग्रेस पार्टी का जन्म स्वतंत्रता आंदोलन से हुआ है। इसके मूल विचार में सदैव समानता, स्वतंत्रता, न्याय, सहयोग और आम आदमी से जुड़ने की भावना और उसका कल्याण रहा है। कांग्रेस के लिए विचार प्रथम और सत्ता द्वितीय स्थान पर रही है। मंच पर नहीं बैठने के निर्णय के पीछे निम्नलिखित भावनाएँ हैं:
1) समानता की भावना को बढ़ावा: कांग्रेस पार्टी में कार्यकर्ताओं की शिकायत बढ़ती जा रही है कि बड़े नेता उन्हें अपने समान नहीं समझते और उन्हें उतना महत्व नहीं देते। पार्टी में कोई छोटा या बड़ा नहीं है। जब वरिष्ठ नेता स्वयं मंच पर बैठने से परहेज़ करते हैं तब यह संदेश जाता है कि पार्टी के लिए काम करनेवाले सभी कांग्रेसजन एक समान महत्व रखते हैं। इससे संगठनात्मक एकता और सामूहिकता को बल मिलता है।
2)पद के प्रभाव की बजाय कार्य को प्राथमिकता: कांग्रेस पार्टी ने पद की बजाय काम के महत्व के आधार पर ही स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया था। पार्टी में सदैव पद की बजाय कार्यकुशलता अधिक महत्वपूर्ण रहा है। इससे जमीनी कार्यकर्ताओं में यह सोच विकसित होती है कि पार्टी में पहचान अच्छे कार्य करने से बनेगी, न कि केवल मंच पर उपस्थिति से।
3) अनुशासन और स्पष्ट संरचना का निर्माण: मंच पर केवल मुख्य अतिथि, प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष को बैठाने की नीति से कार्यक्रमों में स्पष्टता और अनुशासन आएगा। इससे अव्यवस्था, असमंजस और आंतरिक प्रतिस्पर्धा जैसी समस्याएँ दूर होंगी। मंच टूटने जैसी घटनाओं से बचा जा सकेगा।
4)सम्मान की एक जैसी प्रक्रिया: गुलदस्ता और सम्मान केवल ज़िला अध्यक्ष द्वारा किए जाने की व्यवस्था से कार्यक्रमों की गरिमा बनी रहेगी और कार्यकर्ता अपने वरिष्ठों को सामूहिक रूप से सम्मान देने का अवसर पाएंगे। यह व्यक्तिगत प्रभाव के प्रदर्शन के बजाय सामूहिकता का प्रतीक होगा।
5)नेतृत्व की सादगी से कार्यकर्ताओं को प्रेरणा: जब बड़े नेता सादगी और समानता का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं तो कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा और समर्पण की भावना जागृत होती है। वे अपने नेताओं को दूर या अभिजात्य वर्ग का नहीं मानते बल्कि संघर्षशील और सच्चा नेतृत्व मानते हैं। इससे पार्टी को वास्तविक शक्ति मिलती है। मेरी यही भावना है।
6) संगठनात्मक मजबूती और दीर्घकालिक प्रभाव: इस निर्णय में कांग्रेस पार्टी में विलुप्त होते जा रहे अपने मूल विचारों को पुनर्जीवित करने का भाव है, जो पद और दिखावे की राजनीति से हटकर सेवा और कार्य आधारित राजनीति को महत्व देता है। इससे पार्टी की जड़ें मज़बूत होंगी।
अंत में इतना ही कहना चाहूंगा कि मंच पर न बैठने का मेरा फ़ैसला केवल व्यक्तिगत विनम्रता नहीं बल्कि संगठनात्मक ज़रूरत भी है। कांग्रेस को विचारधारात्मक रूप से सशक्त करने की सोच और अनुशासन की सीख से ही समानता और सेवा का उद्देश्य प्राप्त होगा। कार्यकर्ताओं में नया विश्वास और नई मंजिल को पाने की ललक ही हम सबको आगे ले जाएगी।
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