हरिश्चंद्र शर्मा, ओंकारेश्वर। ओंकारेश्वर महादेव की पवित्र नगरी में स्थित भगवान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर जितना पौराणिक है, उतनी ही रहस्यमयी इसकी गोद में स्थित एक छोटी-सी देवगृह नाग देवता का मंदिर भी है। यह मंदिर आम दिनों में भक्तों के लिए बंद रहता है और वर्ष में केवल एक बार, नाग पंचमी के पावन पर्व पर दोपहर 12 बजे के विशेष मुहूर्त में ही खुलता है।
रहस्य और मान्यता
यह मंदिर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के मुख्य गर्भगृह के ठीक सामने साधारण द्वार के नीचे स्थित है। जनमान्यता है कि नाग देवता कभी इस स्थान से प्रकट होकर स्वयं मंदिर में प्रवेश करते थे, और उन्हीं के चरणों के चिन्ह आज भी पत्थरों पर अंकित हैं। यही कारण है कि इस स्थान को अत्यन्त पवित्र माना जाता और यहां विशेष सावधानीपूर्वक पूजा की जाती है।
जिस प्रकार उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में नागचंद्रेश्वर मंदिर केवल नाग पंचमी पर दर्शन हेतु खोला जाता है, उसी परंपरा का अनुसरण ओंकारेश्वर मंदिर में भी होता है। अंतर केवल इतना है कि उज्जैन में नागचंद्रेश्वर मंदिर ऊपरी तल पर है, जबकि ओंकारेश्वर में नाग देवता का यह मंदिर परिसर के भीतर भूमि तल पर स्थित है।
विशेष अनुष्ठान और दर्शनों की व्यवस्था
नाग पंचमी पर दोपहर आरती के समय मंदिर का पट खोला जाता है। यह संपूर्ण अनुष्ठान मंदिर ट्रस्ट की देखरेख में संपन्न होता है। केवल आधे घंटे के लिए मंदिर के पट खुलते और श्रद्धालुओं को पंक्तिबद्ध दर्शन का अवसर मिलता है। मंदिर के पुजारी विधिवत पूजन, दुग्धाभिषेक और नाग देवता की आराधना करते हैं। लोग इस अवसर का पूरे वर्ष इंतजार करते और नाग पंचमी के दिन विशेष व्रत रख दर्शन के लिए ओंकारेश्वर पहुंचते हैं। दर्शन के उपरांत मंदिर को पुनः बंद कर दिया जाता है और अगली नाग पंचमी तक इसे फिर से नहीं खोला जाता।
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आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र
यह छोटा लेकिन शक्तिशाली मंदिर ओंकार पर्वत की ऊर्जा और श्रद्धा का केंद्र बन गया है। मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से यहां नाग देवता की आराधना करता है, उसे सर्प दोष, काल सर्प योग जैसी बाधाओं से मुक्ति मिलती है तथा जीवन में समृद्धि और शांति प्राप्त होती है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग जहां एक ओर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, वहीं इसके परिसर में स्थित नाग देवता का यह मंदिर लोक विश्वास, पौराणिकता और आस्था का अद्वितीय संगम है।
हमारी आस्था पीढ़ियों से जीवित
नाग पंचमी पर जब यह मंदिर खुलता है, तो न केवल श्रद्धालुओं की आस्था जागृत होती है, बल्कि हमें अपने समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की भी गहराई का बोध होता है। ओंकारेश्वर तीर्थ की भूमि पर स्थित यह रहस्यमयी मंदिर न केवल नाग देवता की शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि हमारी आस्था किस प्रकार से पीढ़ियों से जीवित है और हर वर्ष उसे नया रूप मिलता है।

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