
आकाश श्रीवास्तव, नीमच. पूरे जिले में मुहूर्त के हिसाब से गुरुवार की रात होलिका दहन किया गया. वहीं एक तरफ जिले का एक ऐसा गांव भी है. जहां करीब 100 साल पहले बनी होलिका आज तक दहन नहीं हुआ. जहां होली के लिए लगाया एक डंडा आज एक विशाल वृक्ष बन गया है. रंगों के त्यौहार को करीब 100 साल पूर्व खूनी रंग दे दिया गया था.
दरसल, सिंगोली तहसील का धनगांव में बडा पेड़ है. मान्यता है कि करीब 100 वर्ष पूर्व वहां होली का डंडा रोपा गया था. लेकिन मुहुर्त का समय निकलने और विवाद के चलते होली का दहन नहीं हो पाया. तब से आज तक यह होली नहीं जली. ग्रामीणों के अनुसार, 100 वर्ष पूर्व वहां एक विवाद हुआ. जिसके बाद दो गुटों में खूनी संघर्ष हो गया था. इस खूनी संघर्ष में कई जाने गई और रंगों के त्योहार पर खून की नदियां बह गई थी.
इसे भी पढ़ें- महाकाल मंदिर में सबसे पहले मनाई गई होली: भगवान महाकालेश्वर को एक किलो हर्बल गुलाल अर्पित, पूजा के बाद होलिका दहन

इसे भी पढ़ें- एक ऐसा गांव जहां नहीं जलाई जाती होली: जिक्र आते ही थर-थर कांपने लगते है लोग, होलिका दहन को लेकर न उत्साह न उमंग, जानें वजह
विवाद के बीच होली के दहन का मुहुर्त भी निकल गया. वहीं साथ रोपे गए डंडे में अचानक से हरी पत्तियां भी निकल आई थी. इसके बाद इस होलिका को नहीं जलाने का निर्णय लिया गया. तब से लेकर आज तक वो होली नहीं जली. आज के दिन पेड़ की पूजा की जाती है और उसके बाद सभी ग्रामीण गांव से दूसरे स्थान पर होली जलाते हैं.
एक डंडे के रूप मे रोपी गई होलिका ने आज एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुकी है. इस पड़े के पास ही एक मंदिर है. जहां मां चामुंडा विराजमान हैं. होली के दिन ग्रामीण माता की भी पूजा करते हैं. लेकिन करीब 100 पूर्व बनाई इस होलिका दहन नहीं करते है.
Lalluram.Com के व्हाट्सएप चैनल को Follow करना न भूलें.
https://whatsapp.com/channel/0029Va9ikmL6RGJ8hkYEFC2H
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की बड़ी खबरें पढ़ने के लिए करें