ओरछा. निवाड़ी जिले के ओरछा को यूं ही नहीं ‘छोटी अयोध्या’ कहा जाता. रामनवमी के अवसर पर इस पावन नगर में जो उत्साह और आस्था का माहौल देखने को मिलता है, वह किसी भी मायने में अयोध्या से कम नहीं है. बुंदेलखंड की इस ऐतिहासिक नगरी में भगवान श्रीराम को राजा के रूप में पूजा जाता है और रामनवमी उनके राज्याभिषेक का पर्व बन जाता है.
सालों से चली आ रही यह परंपरा
रानी कुंवर गणेशी की अटूट भक्ति और दृढ़ संकल्प से शुरू हुई थी. 16वीं सदी में ओरछा के राजा मधुकर शाह कृष्ण भक्त थे, जबकि उनकी पत्नी रामभक्त. एक दिन जब रानी ने राम पूजा का आग्रह किया, तो राजा ने तंज कसते हुए कहा, “अगर राम में आस्था है तो उन्हें ओरछा ले आओ.”

रानी ने संकल्प लिया
रानी अयोध्या गईं और सरयू किनारे कठोर तपस्या शुरू की. कई दिन उपवास करने के बाद श्रीराम प्रकट हुए और तीन शर्तों पर ओरछा चलने को राजी हुए. वे पैदल चलेंगे, जहां बैठेंगे वहीं रहेंगे और ओरछा में राजा की तरह पूजे जाएंगे. रानी रामलला को ओरछा लाईं और अस्थायी रूप से अपने महल में विराजमान किया. जैसे ही वह उन्हें चतुर्भुज मंदिर ले जाने की तैयारी कर रही थीं, रामलला वहीं स्थायी रूप से स्थापित हो गए. तब से यह महल “राजा राम मंदिर” बन गया और राम, ओरछा के राजा.

लाखों फूलों से सजाया दरबार
रामनवमी 2025 पर राजा राम के दरबार में लाखों श्रद्धालुओं की उमड़ी. मंदिर को दिल्ली से मंगवाए दो ट्रक फूलों से सजाया गया और विशेष झांकियों से नगर राममय हो गया. वहां हर सुबह राजा राम को गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है. क्योंकि यह सिर्फ आस्था नहीं, ‘रामराज्य’ की जीवंत मिसाल है. ओरछा में राम मंदिर नहीं, राम का राज चलता है.
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