कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। जीवाजी विश्विद्यालय की जमीन को फर्जी तरीके से खुर्दबुर्द कर बेचने और अवैध कब्जे का खुलासा हुआ, लेकिन इस जमीन को मुक्त कराने के लिए सिर्फ कागजी लड़ाई लड़ी जा रही है। 1965 में शासन ने भू अर्जन के बाद जीवाजी विश्वविद्यालय को जमीन सौंपी थी। 28 साल पहले एक समिति बनाकर जीवाजी की कीमती जमीन को बेचना शुरू कर दिया गया। यूनिवर्सिटी के अंदर ही 6 बीघा जमीन पर कैलाश नगर कॉलोनी बसा दी गई। यहां 100 करोड रुपए से ज्यादा कीमत के 65 प्लॉट बेचे गए जिनमें 33 प्लॉट पर आलीशान भवन और बंगले बन गए हैं जबकि 32 प्लाट खाली पड़े हैं। शेष खाली जमीन पर अन्य लोगों ने भी कब्जा कर लिया।

साल 2016 में सीमांकन हुआ

विमलेंद्र राठौड़ PRO जीवाजी विश्विद्यालय ने बताया कि साल 2000 में तत्कालीन कुलगुरु प्रोफेसर विनोद प्रकाश और रजिस्ट्रार फनी भूषण ने इस जमीन से कब्जा हटवाने के प्रयास शुरू किया। तब से अब तक जीवाजी में 12 कुलपति 15 रजिस्टर बदल चुके हैं, 25 बार प्रशासन को पत्र लिखे गए हैं। लेकिन नतीजा सिफर रहा। साल 2016 में सीमांकन हुआ जिससे स्पष्ट हुआ की 65 प्लांट जीवाजी यूनिवर्सिटी की भूमि पर है। 2018 में खाली प्लाटों को कब्जामुक्त करने के लिए समिति बनी लेकिन 7 साल बाद भी इन प्लाटों को खाली नहीं कराया गया। अब जीवाजी विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से कब्जा धारकों को धारा 248 के तहत नोटिस दिए गए है।

30 साल बाद नोटिस देना गलत

जीवाजी विश्विद्यालय की जमीन पर बसे कैलाश नगर में मकान बनाने वालों को नोटिस मिलने के बाद हड़कंप मचा है। यहां प्लॉट खरीदकर मकान बनाने वालों का कहना है कि उन्होंने विधिवत तरीके से समिति से प्लॉट खरीदे थे उसकी रजिस्ट्री कराई और उसके बाद विधिवत्त अनुमतियों से मकान बने। अब 30 साल बाद उनको नोटिस देना गलत है। जो कॉलोनाइजर दोषी हैं उन पर एक्शन होना चाहिए, यहां नियमानुसार मकान बनाने वालों का मानवीय पहलू भी देखना चाहिए।

किस तरह की कार्रवाई होती

ऐसे में अब देखना यही है कि जीवाजी विश्वविद्यालय की इस जमीन को किस तरह से कब्जामुक्त किया जाता है और जिन लोगों को प्लॉट और मकान के बहाने ठगा गया है उन ठगों पर किस तरह की कार्रवाई होती है।

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