शुभम नांदेकर, पांढुर्णा. छिंदवाड़ा जिला जेल में पांढुर्णा जिले के रहने वाले भावराव उइके की संदिग्ध मौत ने पुलिस और आबकारी विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. मृतक के परिजनों का आरोप है कि भावराव की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने बेरहमी से मारपीट की. जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई. आक्रोशित ग्रामीणों और परिजनों ने सोमवार को भावराव के शव को शराब दुकान के सामने रखकर जोरदार प्रदर्शन किया.
फटे कपड़े और छाती पर गहरे चोट के निशान
मृतक पांढुर्णा के ग्राम तिगांव का रहने वाला था. मृतक की पत्नी शर्मीला उइके ने बताया कि कुछ दिन पहले जब वह अपने पति से जेल में मिलने गई थीं, तब उसने खुद बताया कि पुलिस ने उनके साथ बुरी तरह मारपीट की है. शर्ट फटी हुई थी और छाती पर गहरे चोट के निशान थे. भावराव ने छाती में लगातार दर्द की शिकायत भी की थी. अचानक मौत की सूचना से पूरा परिवार स्तब्ध है.
गिरफ्तारी और मौत की जानकारी
परिजनों के अनुसार, भावराव उइके को 3 जून को आबकारी एक्ट की धारा 34(2) के तहत गिरफ्तार किया गया था. 4 जून को उसे छिंदवाड़ा जिला जेल में दाखिल किया गया. सोमवार सुबह करीब 9 बजे परिजनों को सूचना मिली कि भावराव को अचानक अटैक आया है. इससे पहले कि वे कुछ समझ पाते, मौत की खबर दे दी गई.
जेल प्रशासन का बयान
जेल अधीक्षक प्रतीक जैन ने कहा कि जब आरोपी को जेल में दाखिल किया गया था, तब उसके शरीर पर कोई चोट या मारपीट के निशान नहीं थे. सुबह लॉकअप खोलने पर वह बेचैन दिखाई दिया, पसीने से लथपथ था, जिसके बाद उसे जिला अस्पताल ले जाया गया. इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. जेल अधीक्षक ने यह भी कहा कि अगर थाने में मारपीट हुई है, तो उस संबंध में जानकारी थाना पुलिस से ही मिल सकेगी.
कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं
परिजनों ने बताया कि भावराव उइके पर पहले कभी कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं था. उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस और आबकारी विभाग ने मिलकर झूठा केस बनाकर उन्हें फंसाया और हिरासत में जानलेवा मारपीट की गई.
परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़
भावराव उइके के परिवार में पत्नी शर्मीला उइके के अलावा तीन बच्चे हैं. 18 साल का बेटा, 16 साल की बेटी और 13 साल का छोटा बेटा है. अब परिवार की पूरी जिम्मेदारी अकेली पत्नी पर आ गई है, जो न्याय की मांग कर रही हैं.
निष्पक्ष जांच और कार्रवाई की मांग
परिजनों और ग्रामीणों ने मांग की है कि मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए. अगर हिरासत में मारपीट की वजह से मौत हुई है, तो दोषी पुलिसकर्मियों और अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाए. यह मामला एक बार फिर पुलिस हिरासत में हो रही घटनाओं पर सवाल उठाता है. परिजन और समाज अब न्याय की राह देख रहे हैं.
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