कुमार इन्दर, जबलपुर। एमपी में निजी स्कूल एसोसिएशन की हड़ताल का मामला अब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट पहुंच गया है. स्कूलों की हड़ताल से प्रदेश के बच्चों को नुकसान हो रहा है, जिसको लेकर नागरिक उपभोक्ता मंच की तरफ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें स्कूलों की हड़ताल को अवैध घोषित करने की मांग की है.
निजी स्कूलों की हड़ताल को चुनौती देते हुए नागरिक उपभोक्ता मंच ने कहा कि बच्चों को नुकसान हो रहा है. कोर्ट से मांग की है कि इस हड़ताल को रोका जाए और इसे अवैध घोषित किया जाए. हालांकि इसके पहले मंच ने निजी स्कूल एसोसिएशन को 48 घंटे का नोटिस भेजकर हड़ताल वापस लेने को कहा था. बावजूद इसके हड़ताल जारी है.
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बता दें कि नागरिक उपभोक्ता मंच की ओर दायर की याचिका में दलील गई कि यह हड़ताल हाईकोर्ट के पूर्व आदेशों के खिलाफ है, क्यों कि 4 दिसंबर 2020 को हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट निर्देश दिया था कि जबतक कोरोना महामारी खत्म नहीं हो जाता, तबतक ट्यूशन फीस के अतिरिक्त किसी भी तरह की फीस वृद्धि पर रोक लगाई थी. हालांकि स्कूल संचालकों ने मंगवार से ऑनलाइन क्लास जारी रखने का फैसला ले चुके हैं.
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एसोसिएशन की ये है आठ सूत्रीय मांग-
- कोरोना की तीसरी लहर की सिर्फ संभावना के आधार पर स्कूल बंद करने का निर्णय तत्काल वापस लें.
- निजी स्कूलों को आर्थिक पैकेज, बिजली के अनुसार बिल लेने व पुराने बिल को समायोजित किया जाए, संपत्ति कर, स्कूल वाहनों का रोड टैक्स, परमिट आदि में राहत प्रदान की जाए. वहीं आरटीई के तहत प्रवेश लेने वाले बच्चों के एवज में बकाया राशि का भुगतान किया जाए.
- केंद्र सरकार के जारी एसओपी के अनुसार 9 से 12वीं के स्कूल को तुंरत खोले जाए.
- अभिभावक नियमित फीस न दे तो विलंब शुल्क देने के लिए बाध्य किया जाए.
- मप्र शिक्षा विभाग ने आदेश जारी किया था कि बिना टीसी कोई विद्यालय प्रवेश न दें, पर कई विद्यालय ऐसा नहीं कर रहे हैं। उन पर कार्रवाई की जाए.
- शिक्षण शुल्क न देने वाले बच्चों को अगली कक्षा में प्रमोट न किया जाए.
- सरकार निजी स्कूल संचालकों के साथ मिलकर बैठक करें और निजी स्कूलों के बारे में कोई भी निर्णय में एसोसिएशन को भी शामिल करे.
- माध्यमिक शिक्षा मंडल से संबद्धता प्राप्त स्कूलों की मान्यता का नवीनीकरण 5 वर्ष के लिए कर दिया जाए.यह भी पढ़ें : स्कूल ‘ओपन’ को लेकर बढ़ी तकरार, सरकार की दो टूक- ‘नहीं खुलेंगे स्कूल’! निजी स्कूलों ने कहा- ‘जाएंगे हाईकोर्ट’