शुभम नांदेकर, पांढुर्णा। त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण वनवास पर थे, तब वे छिंदवाड़ा और पांढुर्णा क्षेत्र से होकर गुजरे थे। धार्मिक और ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार यह क्षेत्र उस समय दंडकारण्य का हिस्सा था। श्रीराम रामाकोना, रामटेक होते हुए पंचवटी (नाशिक) की ओर प्रस्थान कर चुके थे।

रामाकोना: श्रीराम के नाम पर बसा एक ऐतिहासिक गांव
रामाकोना गांव, जो आज पांढुर्णा जिले की सौंसर तहसील में स्थित है, का नामकरण स्वयं भगवान श्रीराम के नाम पर हुआ है। मान्यता है कि यहां से होकर कन्हान नदी के किनारे-किनारे श्रीराम आगे बढ़े थे। माता सीता ने भी यहीं स्थित गौमुख कुंड में स्नान किया था, जो एक प्रमुख धार्मिक स्थल माना जाता है।

वनगमन मार्ग में शामिल गांव
श्रीराम वनगमन मार्ग में रामपायली (बालाघाट) से होते हुए श्रीराम ने चौरई के नीलकंठ गांव में भगवान शिव की पूजा की थी। इसके बाद वे सीतापार, रामपुरी, सायरा, परतापुर होते हुए महाराष्ट्र के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल रामटेक की ओर बढ़े। सौंसर नगर की पंचवी टेकड़ी पर स्थित प्राचीन मंदिर यह दर्शाता है कि श्रीराम यहां ठहरे थे।

पुरातात्विक साक्ष्य और ऐतिहासिक उल्लेख
1907 के गजेटियर में श्रीराम वनगमन मार्ग का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। साथ ही चौरई के नीलकंठ गांव में भगवान शिव की पूजा करते हुए प्राचीन शिलालेख भी उपलब्ध हैं, जो इस ऐतिहासिक यात्रा के साक्ष्य प्रदान करते हैं। श्री एकनाथ षष्ठी कन्हान नदी महोत्सव समिति के दिनकर पातुरकर बताते हैं कि उनके पूर्वजों की मान्यताओं में यह जानकारी प्रमुखता से रही है।

गांवों के नाम श्रीराम से जुड़े हुए
रामाकोना, रामेपठ, सीतापार, रामपुरी जैसे गांवों के नाम सीधे-सीधे भगवान श्रीराम, माता सीता और उनके वनवास काल से जुड़े हैं। इन क्षेत्रों के निवासियों का विश्वास है कि उनके गांव श्रीराम की यात्रा के साक्षी रहे हैं।

वनवास में श्रीराम की भूमिका और योगदान

श्रीराम का 14 वर्षों का वनवास केवल संघर्ष नहीं था, बल्कि भारतीय समाज के लिए एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण भी था। उन्होंने विभिन्न ऋषि-मुनियों से ज्ञान प्राप्त किया, तपस्या की और भारत के वनवासी, आदिवासी समाज को संगठित कर धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उनके इस प्रयास ने समस्त भारत को एक विचारधारा में पिरोया।

प्रशासनिक स्तर पर प्रयास
बीते वर्ष पांढुर्णा कलेक्टर द्वारा संभागीय आयुक्त को पत्र भेजकर श्रीराम वनगमन पथ से जुड़े गांवों की जानकारी उपलब्ध कराई गई थी, जिससे इन क्षेत्रों को धार्मिक पर्यटन से जोड़ा जा सके और इन स्थलों का संरक्षण हो सके।

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