अनमोल मिश्रा, सतना। आज विजयदशमी का पावन पर्व है, दशहरा का पर्व देशभर में बड़े ही उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता. आज रावण के पुतले का दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर विजयदशमी मनाई जाती हैं. लेकिन देश के कई हिस्सों में रावण का दहन नहीं बल्कि पूजा की जाती है। सतना के कोठी कस्बे में विधि विधान से ढोल नगाड़ों के साथ रावण का पूजन किया जाता हैं. और लंकेश की जय-जय कार की जाती है. यहां के लोगों का मानना है कि रावण महान ज्ञानी थे उनकी एक भूल की वजह से उनको सारी अच्छाइयों को भुलाया नहीं जा सकता. इसलिए हम उन्हे अपना वंशज मानते हैं और उनका पूजन करते हैं।
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क्या है रावण पूजा की कहानी ?
पुजारी रमेश मिश्रा बताते हैं कि यह प्रतिमा वर्षों पुरानी है. 15 वर्ष पहले जब नए थाना भवन का निर्माण होना था, तब उन्हें रात में स्वप्न आया कि कोई प्रतिमा तोड़ रहा है. सुबह वे पहुंचे तो जेसीबी लगी थी. जेसीबी ऑपरेटर ने रावण की प्रतिमा पर प्रहार किया तो वहां एक सांप निकल आया. ऑपरेटर काम छोड़ कर हट गया, मजदूरों में भी भगदड़ मच गई. बाद में थाना भवन का निर्माण स्थल परिवर्तित किया गया, रावण का पूजन करने वाले रमेश मिश्रा ने कहा कि रावण महाविद्वान थे. तीन लोक के स्वामी रावण संपूर्ण विधाओं में पारंगत थे.
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यहां लोग लंकेश को मानते है अपना रिश्तेदार
रावण वैदिक पूजा सहित भगवान भोलेनाथ की स्तुति में कई कृतियां लिखीं वह ब्रम्हा, विष्णु, महेश तीनों को अपनी साधना से प्रसन्न किया। वह भगवान शिव के अनन्य भक्त थे. महान पंडित थे इसीलिए हम उन्हें अपना रिश्तेदार मानते हैं. उनकी एक बुराई की वजह से हम उनके अंदर की लाखों, करोड़ों अच्छाइयों , ज्ञान, तप, को भूला नहीं सकते. पुजारी रमेश मिश्रा ने कहा भगवान ब्रह्मा ने 4 वेद और 6 पुराणों के बखान के लिए लंकेश को चुना, क्यों कि इस धरती, आकाश, पाताल, सभी में कोई विद्वान था तो वह महापंडित रावण थे।
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