अनमोल मिश्रा, सतना। Sawan 2025: आपने देश भर के कई शिवालयों में शिवलिंग को देखा होगा, जहां पर भगवान भोलेनाथ पूजा अर्चना की जाती है। लेकिन सतना जिले के बिरसिंहपुर में खंडित शिवलिंग की पूजा की जाती है। ये स्थान सतना जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर बिरसिंहपुर कस्बे में है। यहां की शिवलिंग को उज्जैन महाकाल के दूसरे उपलिंग के रूप में माना जाता है। यहां सावन माह, महाशिवरात्रि के अलावा हर 3 साल में आने वाले पुरुषोत्तम माह के महीने में लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं।
स्वयंभू स्थापित हैं भगवान भोलेनाथ
लोगों की मान्यता है कि यहां पर भगवान भोलेनाथ स्वयंभू स्थापित हैं। यानि ये मूर्ति की स्थापना किसी व्यक्ति के द्वारा नहीं की गई है। बल्कि ये शिवलिंग खुद जमीन से निकली है। यहां भक्त अपनी-अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और भोले बाबा उन सभी की मनोकामनाओं को पूरी करते हैं। इस मंदिर का वर्णन पद्म पुराण के पाताल खंड में भी मिलता है।
गैवीनाथ में जल चढ़ाने से मिलता है चारों धाम के दर्शन से ज्यादा पुण्य
सावन के सोमवार को यहां हर साल लाखों भक्त भगवान भोलेनाथ के दर्शन कर जल चढ़ाते हैं। भगवान भोलेनाथ के इस मंदिर को गैवीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जितना चारों धाम का दर्शन लाभ का पुण्य मिलता है। उससे कहीं ज्यादा गैवीनाथ में जल चढ़ाने से मिलता है. पूर्वज बताते हैं कि चारों धाम का जल अगर यहां नहीं चढ़ा तो चारों धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है।
हर रोज बाबा महाकाल को जल चढ़ाने उज्जैन जाते थे राजा वीर सिंह
इस क्षेत्र का नाम पहले देवपुर हुआ करता था। यहां के राजा का नाम वीर सिंह था। राजा वीर सिंह उज्जैन महाकाल बाबा को जल चढ़ाने के लिए रोज जाया करते थे। लेकिन जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती गई और वृद्धावस्था में उन्हें जल चढ़ाने में दिक्कत आने लगी। ऐसे में उन्होंने भगवान महाकाल से अपने गृह ग्राम में दर्शन देने के लिए आग्रह किया ताकि वह जल चढ़ाकर रोज उनकी पूजा अर्चना कर सके।
चूल्हे में प्रकट होते थे शिवलिंग
इसके बाद बिरसिंहपुर निवासी गैवी यादव नामक व्यक्ति के चूल्हे में भगवान शिवलिंग के रूप में प्रकट होते थे। लेकिन उनकी मां मूसल से ठोककर अंदर कर देती थी। यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा। एक दिन महाकाल फिर राजा के स्वप्न में आए और कहा, “मैं तुम्हारी पूजा और निष्ठा से प्रसन्न होकर तुम्हारे नगर में प्रकट हो चुका हूं, लेकिन गैवी यादव की मां मुझे निकलने नहीं दे रही।”
जिस शख्स के चूल्हे से निकले, उसी के नाम पर बना मंदिर
ऐसे में राजा ने गैवी यादव को अपने महल में बुलाकर पूरी बात बताई। इसके बाद गैवी के घर की जगह को खाली कराया गया। राजा ने उस स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया। भगवान महाकाल के कहने पर शिवलिंग का नाम गैवीनाथ धाम रख दिया गया। तब से भगवान भोलेनाथ को गैवीनाथ के नाम से जाना जाने लगा।
औरंगजेब ने किया था शिवलिंग को खंडित
पुजारी विनोद गोस्वामी ने बताया कि ”यहां की खंडित शिवलिंग के बारे में लोगों का मानना है कि इस शिवलिंग को मुगल शासक औरंगजेब ने खंडित किया था। कहते हैं कि मुगल शासक औरंगजेब हिंदू धर्म के देवी-देवताओं की मूर्तियों को खंडित करता था। ऐसे में एक बार औरंगजेब बिरसिंहपुर कस्बे में पहुंचा और अपनी सेना के साथ मंदिर के अंदर शिवलिंग को खंडित कर उसे नष्ट करने का प्रयास करने लगा।”
3 बार लोहे की जंजीर मारने के बाद औरंगजेब ने भोलेनाथ से मांगी माफी
“औरंगजेब ने यहां पर इस शिवलिंग में 3 टाकियां (लोहे का औजार) लगाईं थी, जिसमें पहली टाकी में शिवलिंग से जल निकला था। दूसरी टाकी मारने से दूध, तीसरी में मधुमक्खियां निकली। इसके बाद औरंगजेब को वहां से भागना पड़ा। इसके बाद औरंगजेब ने भगवान भोलेनाथ से क्षमा मांगकर प्रण किया था कि अब देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को खंडित नहीं करूंगा। तब से यहां पर खंडित शिवलिंग की पूजा की जाती है।”
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