अनिल मालवीय, सीहोर। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में जहरीली कफ सिरप ने कई मासूम बच्चों की जान ले ली। लेकिन सीहोर में इस घटना के बाद भी सबक नहीं लिया जा रहा है। शहर में बेहद लापरवाही सामने आई है, जहां मेडिकल स्टोर को 9वीं पास बच्चे चला रहे हैं। लेकिन प्रशासन इन पर कार्रवाई करना तो दूर, पूछताछ तक नहीं कर रहा और अपनी ज़िम्मेदारियों से बचते नजर आ रहे हैं।
गली-गली में खुली हुई हैं मेडिकल स्टोर
दरअसल, जिले भर की गली-गली में मेडिकल स्टोर खुली हुई हैं। जिनमें नियमों की खुली अवहेलना मिल रही है। यहां पर एक दवा दुकान को कुछ बच्चे संभाल रहे थे। जिन्होंने न इसकी पढ़ाई की है और न ही इसकी जानकारी है। दसवीं और कॉलेज पढ़ने वाले रिश्तेदार या अन्य किसी के नाम से लाइसें लेकर मरीजों को दवाइयां दे रहे हैं। लेकिन प्रशासन इसकी जांच तक नहीं कर रहा है।
मेडिकल दुकानें डॉक्टरों के अड्डे!
बताया जा रहा है कि शहर से लेकर गांव तक मेडिकल संचालक और डॉक्टरों का गठजोड़ हो गया है। बाहर से डॉक्टर यहां आते हैं और मेडिकल दुकानों पर मरीजों का उपचार होता है। ज्यादातर डॉक्टरों का सीएमएचओ कार्यालय में पंजीयन ही नहीं होता है।
विभाग की अनदेखी से पनपता कारोबार
इस घटना के बाद ड्रग इंस्पेक्टर की खामी भी उजागर हुई है। छिंदवाड़ा घटना के बाद भी जिले में दवा दुकानों की जांच नहीं की जा रही है। वहीं स्वास्थ्य विभाग भी इसकी अनदेखी कर रहा है।
इस संबंध में ड्रग इंस्पेक्टर किरन मगरे का कहना है कि समय-समय पर दवा दुकानों का निरीक्षण किया जाता है। अनियमितता मिलने पर कार्रवाई भी होती है। अभी छिंदवाड़ा की घटना की जांच टीम में शामिल हूं, यहां से समय निकालकर जिले के मेडिकल स्टोरों की जांच की जाएगी।
वहीं सीएमएचओ डॉ सुधीर कुमार डहेरिया का कहना है कि दवा की दुकानों की जांच का काम ड्रग इंस्पेक्टर का है। ड्रग इंस्पेक्टर को दवा दुकानों की जांच के निर्देश दिए हैं, वह अभी जांच दल में है।
अब सवाल यह उठता है कि छिंदवाड़ा में बच्चों की कफ सिरप से मौत के बाद सीहोर में इस मामले को लेकर कार्रवाई क्यों नहीं की गई? नाबालिग दवा का पर्चा देखकर, उसी के अनुसार या मिलती-जुलती फॉर्मूला में मरीजों को दवाई थमा देते हैं। अगर ऐसे में छिंदवाड़ा जैसी घटना हुई तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?
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