अजयारविंद नामदेव, शहडोल। जब उम्मीदें दम तोड़ने लगती हैं, तब डॉक्टरों की मेहनत चमत्कार बन जाती है। कुछ ऐसा ही हुआ जिला चिकित्सालय शहडोल के SNCU (स्पेशल न्यूबोर्न केयर यूनिट) में, जहाँ एक मात्र 7 महीने में जन्मी 1.08 किलोग्राम वजन की बेहद कमजोर बच्ची को न सिर्फ ज़िंदा रखा गया, बल्कि 45 दिनों की अथक लड़ाई के बाद अब वह माँ की गोद में मुस्कराते हुए घर लौट चुकी है। यह सिर्फ एक बच्ची को बचाने की कहानी नहीं, बल्कि हर सरकारी स्वास्थ्यकर्मी की कर्तव्यनिष्ठा, सेवा और जन सेवा ही सर्वोपरि के मंत्र की जीवंत मिसाल है।
7 माह में हो गया बच्ची का जन्म
यह बच्ची सोना बाई पाव (पति मोहे लाल पाव), निवासी ग्राम सिंधली, जिला शहडोल की संतान है, जिसे 16 अप्रैल 2025 को अत्यधिक गंभीर अवस्था में जिला चिकित्सालय शहडोल रेफर किया गया था। जब मां अस्पताल पहुंची, उसी समय प्रसव हो गया और एक अत्यंत कमजोर और समयपूर्व (प्रीमैच्योर) बच्ची ने जन्म लिया। जन्म के साथ ही बच्ची को सांस लेने में गंभीर तकलीफ होने लगी। तुरंत ही SNCU में उसे ऑक्सीजन सपोर्ट पर भर्ती किया गया और सपोर्टिव ट्रीटमेंट की शुरुआत हुई। कम समय में जन्मे नवजातों में जानलेवा समस्याएं ,जैसे साँस रुकना, फेफड़ों और पेट से खून आना, ब्रेन हैमरेज, इन्फेक्शन और खून की कमी होना आम है। इस बच्ची में भी ये सभी समस्याएँ एक-एक कर सामने आती रहीं। लेकिन डॉक्टरों की टीम ने हिम्मत नहीं हारी, तीसरे दिन बच्ची की हालत और बिगड़ गई। उसे CPAP मशीन (साँस लेने में सहायता करने वाली प्रणाली) पर रखा गया। फेफड़ों को मजबूत करने के लिए सरफेक्टेंट दिया गया और साथ ही एंटीबायोटिक दवाएं भी शुरू की गईं।
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इसके बावजूद भी सुधार न आने पर उसे इंवेसिव वेंटिलेटर पर रखा गया। बच्ची को दौरे (seizures) आने लगे और पेट से खून बहना शुरू हो गया। लेकिन SNCU की टीम ने FFP (फ्रेश फ्रोजन प्लाज्मा) देकर स्थिति को नियंत्रित किया और संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबायोटिक को अपग्रेड किया गया। और अंततः 45वें दिन, बच्ची का वजन 1.440 किलोग्राम पहुँच चुका था और उसे टीकाकरण कर SNCU से डिस्चार्ज कर दिया गया।
डॉक्टरों की टीम ने किया चमत्कार
इस संजीवनी जैसी सेवा के नायक रहे SNCU के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील कुमार हथगेल (इंचार्ज SNCU),डॉ. दीपशिखा नामदेव,डॉ. बृजेश पटेल,डॉ. सुप्रिया, साथ ही सभी नर्सिंग ऑफिसर और सपोर्ट स्टाफ , जिन्होंने चौबीसों घंटे माँ और बच्ची की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी।
डॉक्टरों का कहना है कि यदि यही इलाज किसी प्राइवेट सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में कराया जाता तो परिजनों को 5-7 लाख रुपये से अधिक खर्च करना पड़ता, वह भी बचने की गारंटी के बिना। लेकिन शहडोल के SNCU ने यह इलाज सरकारी योजना के अंतर्गत निःशुल्क करते हुए एक बच्ची को नया जीवन दिया , और यह साबित किया कि यदि इच्छाशक्ति हो, तो सरकारी अस्पताल भी चमत्कार कर सकते हैं।
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