आरिफ कुरैशी, श्योपुर. केंद्र सरकार का शहर से लेकर गांव-गांव के हर घर तक नल के माध्यम से पीने का पानी उपलब्ध कराने के उद्देश्य है. इसके लिए ‘नल जल’ योजना लाया गया, लेकिन श्योपुर में केंद्र सरकार की यह योजना दम तोड़ती नजर आ रही है. स्थिति यह है कि लाखों रुपये खर्च करके पानी की टंकियां और पाइप लाइनें तो बिछा दी गई, लेकिन नलों की टोंटी से पानी नहीं आ रहा है. लोगों को पीने के पानी के लिए पहले की ही तरह हैंडपंप पर लाइन लगानी पड़ रही है. कई गांव तो ऐसे भी हैं, जहां पर पानी भरने के लिए लोगों को कई किलोमीटर तक पैदल भी जाना पड़ता है.
नल-जल योजना की जमीनी हकीकत की बात करें तो ज्यादातर नल-जल योजनाएं या तो बंद पड़ी हुई है या फिर नलों से पानी नहीं आ रहा है. शहर से सटे हुए कलारना गांव और आदिवासी बस्तियों में नल-जल योजनाएं शुरू होते ही बंद हो गई. ग्रामीणों का आरोप है कि नलों से सिर्फ एक बार पानी आया था. उसके बाद करीब चार-चार महीने का वक्त बीत गया, लेकिन नलों से पानी नहीं आ रहा है. ऐसे में ग्रामीणों को पहले की ही तरह हैंडपंपों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.
सवालों के घेरे में दिव्यांग अस्सिटेंट इंजीनियर
अब बात टेक्निकल फाल्ट की करें तो विभाग ने जिस अधिकारी को यह जिम्मेदारी दी है, वह एई ओमप्रकाश नागर शारीरिक रूप से 75% दिव्यांग है. बैसाखी के सहारे वह बड़ी मुश्किल से चल-फिर पाते हैं और वह 45 फीट ऊंची टंकी और 15-15 किलोमीटर लंबी लाइन का मूल्यांकन कागजों में एक-एक दिन में पूरा कर देते हैं. अब सवाल यह खड़ा होता है कि पानी की इतनी ऊंची टंकी पर यह दिव्यांग अधिकारी कैसे चल पाते होंगे.
इलेक्ट्रीशियन के डिप्लोमा से बने इंजीनियर
टंकियां के निर्माण के बाद सीढ़ियां बनाई जाती हैं. बिना सीढ़ी के कोई सामान्य स्थिति वाला इंसान टंकी पर नहीं चढ़ सकता, फिर यह दिव्यांग अधिकारी इतनी ऊंची टंकी पर चढ़कर बार-बार मूल्यांकन कैसे करते होंगे? इसके अलावा यह इलेक्ट्रीशियन के डिप्लोमा से इंजीनियर बने थे, लेकिन पीएचई विभाग ने उन्हें सिविल इंजीनियर बना रखा है. अब यह भी सवाल खड़ा होता है कि इलेक्ट्रीशियन से डिग्री लेने वाला अधिकारी सिविल इंजिनियर का काम कैसे कर सकता है?
नल है, लेकिन पानी नहीं
कलारना गांव में घर-घर नल और पाइपलाइन बिछी हुई है, लेकिन पानी एक भी नल से नहीं आता है. अकेला कलारना गांव ही नहीं है, बल्कि इसके आसपास के गांव से लेकर दूर-दराज के इलाकों की स्थिति भी ठीक इसी तरह की है. इन हालातों में लोगों को पानी के लिए किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. कलारना गांव और आदिवासी बस्ती के लोगों का कहना है कि नलों से पानी नहीं निकलता.
अस्सिटेंट इंजीनियर ने कही ये बात
उन्होंने बताया कि शुरुआत में सिर्फ एक बार नलों से पानी आया था, उसके बाद नलों से पानी आना बंद हो गया. करीब 4 से 5 महीने हो गए, लेकिन कोई देखने तक नहीं आया. हैंडपंप पर जाकर पानी भरते हैं. इस मामले में पीएचई विभाग के अस्सिटेंट इंजीनियर ओमप्रकाश नागर का कहना है कि वह टंकी ऊपर चढ़कर वैल्यूएशन कर लेते हैं. उनके पास डिप्लोमा इलेक्ट्रिशियन का है, लेकिन वह सिविल इंजीनियर का काम लंबे समय से कर रहे हैं, यह उनके विभाग का ही दूसरा पार्ट है.
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