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अमित पाण्डेय, सीधी. राज्य सरकार बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था का दावा करती है, लेकिन ये दावे झूठे साबित हो रहे हैं. सच्चाई तो यही है कि मध्य प्रदेश का हेल्थ सिस्टम कभी ठेले पर तो कभी चारपाई तो कभी चादर और बांस-बल्ली के सहारे है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि एक परिवार को शव ले जाने के लिए शव वाहन नहीं मिला. उन्हें मजबूरन चादर और बांस-बल्ली के सहारे लाश को ले जाना पड़ा.
दरअसल, यह पूरा मामला सीधी जिले के सिटी कोतवाली थाना क्षेत्र के ऊंची हवेली का है. बताया जा रहा है कि छोटे लाल टीबी की बीमारी से ग्रसित था. परिजनों ने उसे जिला अस्पताल में भर्ती करवाया था. बीती रात उसकी इलाज के दौरान मौत हो गई. जिसके बाद परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन से शव वाहन की मांग की. जिसके बाद कर्मचारी ने उन्हें शव वाहन के ड्राइवर का मोबाइल नंबर दिया. लेकिन करीब 1 बजे रात तक शव वाहन नहीं आया.
परिजन कॉल पर कॉल करते रहे. लेकिन घंटों इंतजार के बाद भी शव वाहन नहीं आया. ऐसे में परेशान परिजन बांस पर चादर बांधकर शव को घर ले गए. देर रात शव को कंधे पर लेकर करीब तीन किमी पैदल सफर तय कर वो घर पहुंचे. बता दें कि जिला अस्पताल में तीन शव वाहन की उपलब्धता है. जिसमें से एक खराब पड़ा है, जबकि दो चालू हालत में है.
अस्पताल में एक वाहन दिन में तो दूसरा वाहन रात में शव ले जाने के लिए है. लेकिन ड्राइवर नहीं होने के कारण परिजनों को परेशानियों का सामने करना पड़ता है. मृतक के परिजनों को कहना था कि शव वाहन अस्पताल परिसर में खड़ा था, लेकिन ड्राइवर नहीं था. क्या ड्राइवर उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी मरीजों के परिजनों की है? क्या अस्पताल प्रबंधन की जिम्मेदारी नहीं की वो ड्राइवर उपलब्ध कराए? आखिर जिम्मेदारों की लापरवाही पर कब तब उच्च अधिकारी पर्दा डालते रहेंगे? ऐसे मामले कई बार सामने आ चुके हैं, लेकिन स्वास्थ्य मंत्री जी इस पर गंभीरता क्यों नहीं दिखाते?
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