संदीप शर्मा, विदिशा। मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में लटेरी तहसील के ग्राम कालादेव में दशहरा पर्व को कई अलग-अलग तरीकों से मनाने की अनोखी परंपरा है। यहां रावण की पूजा की जाती है, तो कहीं पत्थरों से राम-रावण युद्ध का आयोजन होता है। इस युद्ध की खास बात यह है कि राम की सेना को पत्थर नहीं लगते। कहते हैं, यहां अच्छे-अच्छे निशानेबाजों की एक भी गोली नहीं चलती। उड़ती हुई चिड़िया को गोफन चलाने वाले निशानेबाज भी कालादेव में असहाय नजर आते हैं।
भील तथा बंजारा समाज के लोग रावण की सेना बनते हैं
यहां बंदूक से भी तेज निशाना लगाने वाले भील तथा बंजारा समाज के लोग रावण की सेना बनते हैं, जबकि ग्राम कालादेव के निवासी राम की सेना के रूप में मैदान में उतरते हैं। इस युद्ध के दौरान रावण की सेना द्वारा मारा गया पत्थर अपनी दिशा बदल लेता है और किसी भी राम की सेना में शामिल व्यक्ति को नहीं लगता।
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इस आयोजन में दशानन रावण को जलाया नहीं जाता, केवल मारा जाता है। ग्राम कालादेव में हर वर्ष दशहरे पर एक ऐसा आयोजन होता है, जिसे लोग चमत्कार मानते हैं। गांव में रावण की एक विशालकाय प्रतिमा स्थित है, जिसके सामने एक ध्वज स्थापित किया जाता है। यह ध्वजा राम तथा रावण के युद्ध का प्रतीक होती है। इस युद्ध के दौरान एक तरफ कालादेव के लोग रामदल के रूप में आगे बढ़ते हुए इस ध्वजा को छूने का प्रयास करते हैं, तो वहीं दूसरी ओर रावण दल के लोग उन पर गोफन से पत्थरों की बरसात करते हैं। लेकिन चमत्कार की बात यह है कि गोफन से निकले ये पत्थर रामदल के लोगों को नहीं लगते। बल्कि मैदान में अपनी दिशा बदलकर निकल जाते हैं।
पत्थरों की इस बौछार में रामदल का कोई भी व्यक्ति आज तक घायल नहीं हुआ
मध्य प्रदेश के कालादेव में इस तरह के दशहरे की यह परंपरा कब से चली आ रही है, इसके बारे में कोई नहीं जानता। मान्यता है कि पत्थरों की इस बौछार में रामदल का कोई भी व्यक्ति आज तक घायल नहीं हुआ। सदियों पुरानी इस परंपरा में रावण की सेना का प्रतिनिधित्व आसपास के आदिवासी और बंजारा समाज के लोग करते हैं। आयोजन के प्रारंभ होने से पहले ही रावण की प्रतिमा के पास आदिवासियों द्वारा पत्थरों का ढेर लगाकर अपनी गोफन तैयार कर ली जाती हैं। पत्थरों के इस हमले में रामदल का कोई भी व्यक्ति घायल नहीं होता और वे राम की जय-जयकार कर ध्वजा तक पहुंच जाते हैं।
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