आशुतोष तिवारी, रीवा। नगरीय निकाय के चुनाव की रणभूमि तैयार हो रही है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही चुनावी मुद्दे तैयार करने की रणनीति में जुटे हुए हैं। देश के प्राचीन शहरों में शुमार रीवा नगर निगम में पिछले 20 वर्ष से भाजपा का राज है। बावजूद इसके जनता को लगता है शहर विकास से कोसो दूर है और रीवा को स्मार्ट सिटी बनाने का सपना महज ख्वाब बनकर रह गया है। पेश है नगर निगम की सफलता और असफलता की कहानी…

रीवा शहर में कुल 45 वार्ड है, जिसमे 6 अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए वार्ड 28, 38, 39, 40 आरक्षित है। मतदाताओं की संख्या 3,11, 274 है। जिसमें पुरुष 161490, महिला 149770 और अन्य 13 शामिल हैं। वहीं जेंडर रेशियों 945 है।

इतिहास

रीवा नगर पालिका की शुरुआत 1920 में हुई थी, जिसके बाद 1922 में रीवा राज्य सेनिटेशन लॉ बना। रीवा नगर की बढ़ती आबादी को देखते हुए 11 अक्टूबर 1946 में रीवा स्टेट म्यूनिसीपल एक्ट लागू किया गया था। 1 जनवरी 1981 को रीवा नगर पालिका को नगर निगम का दर्जा दिया गया, उसके 15 वर्ष तक नगर निगम के चुनाव नहीं हुए। 1994 में पंचायती राज व्यवस्था लागू होने पर प्रथम महापौर पार्षदों द्वारा निर्वाचित हुआ। अभी भाजपा की ममता गुप्ता महापौर है।

शहर की समस्याएं

विंध्य क्षेत्र की राजधानी का गौरव हासिल कर चुका रीवा नगर, रीवा रियासत की राजधानी रहा और फिर इसे संभागीय मुख्यालय का दर्जा मिला। तब से अब तक शहर में विकास का पहिया चलता ही जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। जनता सड़क, पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं से महरूम है। विकास के नाम पर करोड़ों रूपए की योजनाएं बनाई। अमली जामा भी पहनाया गया, लेकिन जनता हलाकान परेशान और हताश है।

शहर के लगभग सभी वार्डों के विकास के लिए करोड़ों रूपए खर्च किए गए हैं। हकीकत यह है कि शहर को विकसित करने की योजनाएं तो बनाई गई, लेकिन मास्टर प्लान को ताक में रखकर। एक ही सड़क को कई बार बनाया गया और फिर तोड़ा गया, पानी की किल्लत बरकरार है। जल निकासी की सुलभ व्यवस्था आज भी कॉलोनियों में नहीं है। नगर निगम से नगर के लोगों की अपनी-अपनी उम्मीद है। कोई पानी की समस्या से जूझ रहा है तो कोई जल निकासी से परेशान है, कई वार्डों में तो सड़कों का अभाव है, तो कहीं गंदगी का ढेर लगा हुआ है।

रीवा नगर को प्रकृति से वरदान मिला है। बीहर बिछिया नदी शहर के बीच से गुजरती है। बाणसागर परियोजना से साल भर मीठा पानी गुजरता है, बावजूद इसके तीन लाख जनता मीठे पानी के लिए मोहताज है। मुख्यमंत्री पेयजल योजना के तहत नगर में दो फिल्टर प्लांट लगाए गए हैं। लेकिन नजीता सिफर है। प्रदेश का सबसे महंगा कचरा संयंत्र होने के बावजूद कचरे का ढेर नगर निगम की उदासीनता को उजागर करने के लिए काफी है। आइए जानते हैं जनता की क्या राय है?…

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