शुभम जायसवाल, राजगढ़। दशहरे के अवसर पर देशभर में रावण का पुतला दहन किया जाता है। वहीं मध्‍य प्रदेश के राजगढ़ जिले में रावण और कुंभकरण की पूजा कर सुख, शांति और समृद्धि की कामना की जाती है। यहां लगभग डेढ़ सौ साल पुरानी रावण और कुंभकरण की मूर्तियां मौजूद हैं। इन दोनों को लोग इष्टदेव मानते हैं।

यकीनन एक तरफ पूरा देश जश्न के साथ असत्य पर सत्य की जीत के लिए रावण के पुतले का दहन कर रहा होता है, तो राजगढ़ जिले के भाटखेड़ी गांव के लोग गाजे-बाजे के साथ रावण और कुंभकरण को इष्ट देव मानकर पूजा अर्चना करते हैं। मान्यता है कि इनकी पूजा करने से गांव पर कभी भी विपत्ति नहीं आती है और हमेशा गांव में खुशहाली बनी रहती है। गांव वालों का मानना है कि रावण और कुंभकरण दोनों गांव की रक्षा करते हैं।

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दशहरे पर रावण और कुंभकरण का नहीं होता दहन

पूरे देश में दशहरे के दिन रावण के साथ कुंभकरण और मेघनाथ का दहन किया जाता है, लेकिन इस गांव में यह परंपरा नहीं निभाई जाती है। भाटखेड़ी गांव नेशनल हाईवे आगरा-मुंबई पर स्थित है। यहां पर नजदीक एक खेत में रावण और कुंभकरण की मूर्तियां स्थापित हैं। जबकि यहां के लोग बताते हैं कि यह मूर्तियां लगभग डेढ़ सौ साल से भी अधिक पुरानी हैं, जो कि उनके पूर्वजों के द्वारा स्थापित की गई थीं।

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नवरात्रि में होती है रावण और कुंभकरण की पूजा

भाटखेड़ी के ग्रामीण कल्याण सिंह का कहना है कि हम रावण और कुंभकरण को राक्षस नहीं मानते हैं, बल्कि वह हमारे लिए इष्ट देवता हैं। साथ ही बताया कि यहां पर लोग दूर दूर से अपनी मुरादें लेकर आते हैं और उनकी मुराद भी पूरी होती है। वहीं जब भी गांव में विपदा होती है या बारिश के मौसम में सूखे जैसी स्थिति दिखाई देती है, तो गांव के लोग यहां पर इकट्ठा होकर देवता रावण से प्रार्थना करते हैं कि उनके गांव में जल्द से जल्द बारिश हो।

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कल्याण सिंह के मुताबिक, जिस दिन पूजा की जाती है उसी दिन बारिश भी शुरू हो जाती है। वहीं ग्रामीणों का यह भी कहना है कि आसपास के लोग यहां पर संतान प्राप्ति की कामना लेकर भी आते हैं। जबकि दंपत्ति संतान की मनोकामना पूर्ण होने पर नवरात्रि के दौरान रावण और कुंभकरण की पूजा करने पहुंचते हैं।

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