अजयारविन्द नामदेव, शहडोल। आदिवासी बाहुल्य इलाकों में जागरूकता की कमी के कारण अंधविश्वास अपनी जड़ें मजबूत किए रहता है। धीरे धीरे वह अंधविश्वास इतना प्रबल हो जाता है कि उसकी जड़ हिलाए नहीं हिलती हैं। ऐसा ही कुछ हाल बुढ़ार जनपद के मुसरा गांव में रहने वाले एक अगरिया परिवार का है।  मुसरा गांव में रहने वाली 7 वर्षीय मासूम इंद्रवती  अगरिया के सिर और बाल में इन्फेक्शन संबधी समस्या है। जिस कारण उसके बाल रूखे और कड़े होकर नारियल जटा के समान हो गए हैं। परिजन उसका इलाज कराने के बजाय अब भगवान शंकर का रूप मानने लगे हैं। पूरा गांव इंद्रवती को “भोले” नाम से भी पुकारने लगा है। वह सिर में जटा मुकुट लिए स्कूल भी जाती है और पूरे गांव में घूमती है।

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आदिवासी बाहुल्य शहडोल संभागीय मुख्यालय से 85 किलोमीटर दूर स्थित मुसरा गांव जो कि जनपद पंचयात बुढार क्षेत्र अंतर्गत आता है।  मुसरा गांव के रहने वाले अगरिया परिवार में उनकी एक 7 वर्षीय मासूम इंद्रवती अगरिया के सिर और बाल में इन्फेक्शन संबधी समस्या है। जिस कारण उसके बाल रूखे और कड़े होकर नारियल जटा के समान हो गए हैं। परिजन उसका इलाज कराने के बजाय अब भगवान शंकर का रूप मानने लगे हैं। पूरा गांव इंद्रवती को भोले नाम से भी पुकारने लगा है। वह सिर में जटा मुकुट लिए स्कूल भी जाती है और पूरे गांव में घूमती है। ये तमाम लोग इंद्रवती को जटा मुकुट लिए दिनभर देखते हैं, किसी भी तंत्र ने इस गंभीर बात को जिम्मेदार अफसरों तक नहीं पहुंचाया। मैदानी अमला भी इंद्रवती को भगवान शंकर का रूप मानकर भोले भोले कहने लगा और उसी अंधविश्वास का साक्षी बन बैठा जिसका शिकार कक्षा 3 में पढ़ने वाली इंद्रवती अगरिया हो चुकी है।

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इंद्रवती की दादी लीलावती अगरिया बताती हैं कि हमने कई साल पहले मुंडन कराने का प्रयास किया था। उसके ठीक बाद इंद्रवती के पूरे सिर में बड़े बड़े फफोले आ गए थे, डॉक्टर ने इलाज किया और वो ठीक हो गई। इसके बाद सबने कहा कि इंद्रवती को भगवान शंकर की सवारी आती है। इस कारण उसके बाल अब नहीं कटवाना है। इस कारण हमने दोबारा कभी उसके बाल कटवाने का प्रयास नहीं किया।

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एक तरफ महिला बाल विकास का तंत्र तो दूसरी तरफ शिक्षा विभाग का। इन दोनों से पहले ग्राम पंचायत के पदाधिकारी और कर्मचारियों पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। यदि इंद्रवती को समुचित इलाज दिया जाता है तो उसके सिर से जटा मुकुट को उतारा जा सकता है जिसके बाद वह सामान्य जीवन जी सकेगी। इस गांव में अंधविश्वास का कुचक्र कुछ ऐसा चला कि गांव तो गांव सरकारी मशीनरी भी अपनी जागरूक आंखों से उस लाड़ली लक्ष्मी का दर्द नहीं देख पा रहे जिसे सूबे के मुखिया अपनी भांजी कहते हैं।

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