कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। आज सावन का पांचवा सोमवार (Fifth Sawan Somwar) है और ग्वालियर (Gwalior) में 350 साल प्राचीन भगवान मारकंडेश्वर महादेव मंदिर पर भी भक्तों का सुबह से ही तांता लगा हुआ है। सुबह 4 बजे भगवान मारकंडेश्वर महादेव का विशेष अभिषेक पूजन किया गया। प्रदेश का यह इकलौता ऐसा मंदिर है जहां महादेव के साथ यमराज की प्रतिमा मौजूद है। इस मंदिर में अकाल मृत्यु भय, मार्केश योग सहित गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोग दूरदराज से पूजन अर्चन करने के लिए आते हैं। श्रद्धालुओं जल, फल, फूल, माला, बिल्वपत्र, धतूरा चढ़ाकर भगवान भोलेनाथ की भक्ति करते है।

वेद पुराणों और पौराणिक कथाओं में मारकंडेश्वर महादेव और उनके प्रकट होने के पीछे की वजह को बताया गया है। इस मंदिर की देखरेख और पूजा-अर्चना मनोज शास्त्री कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इससे पहले उनके पूर्वज इस मंदिर की सेवा करते रहे हैं। यह सिलसिला छह पीढिय़ों से चल आ रहा है। पुरातन कथाओं में बताया गया है कि मार्कंडेय ऋषि शिव भक्त मुकुंड ऋषि की संतान हैं। शिव के भक्त मुकुंड ऋषि का जब अंत समय करीब आया तो भगवान शिव ने उन्हें साक्षात दर्शन देकर वर मांगने के लिए कहा।

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उन्होंने शिवजी से संतान प्रदान करने को कहा, तब शिवजी ने उनसे कहा कि आपके भाग्य में संतान सुख नहीं लिखा है। आप कुछ और मांग लीजिए, लेकिन उनकी जिद के कारण भगवान शिव ने उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान दिया। इनकी संतान का नाम ही मार्कंडेय था, वह जब 5 वर्ष के थे तब से ही वन में जाकर पार्थिव शिवलिंग की पूजा करने लगे, चूंकि उनकी आयु मात्र 12 वर्ष ही निर्धारित थी, इसलिए जब यमराज उन्हें लेने पहुंचते हैं तो वह भोलेनाथ की पूजा कर रहे होते हैं।

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जब यमराज उन्हें ले जाने के लिए खींचते हैं तो वह भोलेनाथ की पिंडी पकड़ लेते है, तब अपने भक्त की रक्षा के लिए स्वयं भोलेनाथ पिंडी चीरकर प्रकट होते हैं और त्रिशूल से यमराज को दंडित करते हैं तो यमराज हाथ जोड़कर उनसे क्षमा याचना करते हैं। फूलबाग स्थित इस मंदिर में भगवान महादेव, यमराज और मार्कण्डेय ऋषि की मूर्तियों को स्थापित कर यहीं दर्शाया गया है।

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