प्रदीप मालवीय, उज्जैन। उज्जैन स्थित सिंहपुरी क्षेत्र में आज अलसुबह 5100 कंडों (उपलों) से होली बनाकर दहन किया। यहां 20 फीट ऊंची होली बनाई गई और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ प्राकृतिक रूप से चकमक पत्थरों के घर्षण से निकली आग से तड़के होलिका का दहन किया गया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सिंहपुरी की होली जलाने राजा भृतहरि खुद आते थे, तब से यह परंपरा निभाई जा रही है। होलिका में प्रह्लाद के रूप में एक ध्वजा भी लगाई जाती है और बताया जाता है दहन के बावजूद यह ध्वजा नहीं जलती है।
धार्मिक नगरी उज्जैन में महाकाल मंदिर के बाद सिंहपुरी में प्राचीनतम और प्रसिद्ध होलिका दहन किया जाता है। सिंहपुरी में जलने वाली होली अपने आप में खास है। यहां होली जलाने की वर्षों पुरानी वैदिक परंपरा है। सिंहपुरी के निवासी वेद मंत्रों के माध्यम से कंडे बनाते है, फिर इन्हीं कंडों के जरिए से होलिका को तैयार किया जाता है। इसमें खास बात यह है कि इसमें लकड़ी का बिल्कुल भी उपयोग नहीं किया जाता है। इस पर रंग-गुलाल और आकर्षक रंगोली की सजावट की जाती है।
यहां प्रदोष काल में चारों वेदों के ब्राह्मण मिलकर अलग-अलग मंत्रों से होलिका की पूजी की। यहां प्राकृतिक रूप से चकमक पत्थर से अग्नि प्रज्वलित कर होलिका दहन किया गया। बताया जाता है कि धार्मिक मान्यता के अनुसार सिंहपुरी की होली का दहन राजा भृतहरि स्वयं आकर करते थे, तभी से यह परंपरा चली आ रही है। होलिका में प्रह्लाद के रूप में एक ध्वजा भी लगाई जाती है, जो होलिका के जलने के बाद भी नहीं जलती है।
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