प्रदीप मालवीय, उज्जैन। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू हुई माता की 9 दिवसीय आराधना की धूम पूरे देश में देखी जा रही है। चैत्र नवरात्रि के शुरू होने के साथ माता के भक्तों की चहल-पहल मंदिरो में बढ़ने लगी है। नवरात्रि (Chaitra Navratri) के दौरान सभी देवी मंदिरों में विशेष तैयारी की गई है। इसी कड़ी में 52 शक्तिपीठ में से एक उज्जैन के हरसिद्धि माता मंदिर पर भी नवरात्रि के दौरान विशेष तैयारियां की गई है। नवरात्रि के शुरू में माता हरसिद्धि का विशेष श्रृंगार किया गया। सुबह 9 बजे घट स्थापना की गई, इसके बाद माता हरसिद्धि की महाआरती की गई।
मंदिर में आरती के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन करने के लिए मौजूद थे। इसके बाद भक्तों ने कतार में लगकर माता के आलोकिक रूप के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। और देश-प्रदेश में खुशहाली की कामना की।
मंदिर का परिचय
हरसिद्धि मंदिर (Shree Harsiddhi Mata Shaktipith Temple) की चारदीवारी के अंदर 4 प्रवेशद्वार हैं। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर है। द्वार पर सुंदर बंगले बने हुए हैं। बंगले के निकट दक्षिण-पूर्व के कोण में एक बावड़ी बनी हुई है, जिसके अंदर एक स्तंभ है। यहां श्रीयंत्र बना हुआ स्थान है। इसी स्थान के पीछे भगवती अन्नपूर्णा की सुंदर प्रतिमा है। मंदिर के पूर्व द्वार से लगा हुआ सप्तसागर रुद्रसागर तालाब है। जिसे रुद्रासागर भी कहते हैं।
रुद्रसागर तालाब के सुरम्य तट पर चारों ओर मजबूत प्रस्तर दीवारों के बीच यह सुंदर मंदिर बना हुआ है। मंदिर के ठीक सामने दो बड़े दीप-स्तंभ खड़े हुए हैं। प्रतिवर्ष नवरात्र के दिनों में इन पर दीप मालाएं लगाई जाती हैं। मंदिर के पीछे अगस्तेश्वर का प्राचीन सिद्ध स्थान है जो महाकालेश्वर के भक्त हैं। मंदिर का सिंहस्थ 2004 के समय पुन: जीर्णोद्धार किया गया है।
माता हरसिद्धि मंदिर का इतिहास
देशभर में हरसिद्धि देवी के कई प्रसिद्ध मंदिर है, लेकिन वाराणसी और उज्जैन स्थित हरसिद्धि मंदिर सबसे प्राचीन है। उज्जैन की माता हरसिद्धि, राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी और आराध्य देवी होने के कारण भी देशवासियों के लिए इस स्थान का प्रमुख महत्व है। 52 शक्तिपीठ में से हरसिद्धि माता मंदिर भी एक शक्तिपीठ है, जहां माता सती की कोहनी गिरने से शक्तिपीठ का निर्माण हुआ है। इस देवी मंदिर का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है।
उज्जैन में दो शक्तिपीठ माने गए हैं पहला हरसिद्धि माता और दूसरा गढ़कालिका माता का शक्तिपीठ। पुराणों में वर्णन मिलता है कि उज्जैन में शिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे।
चण्ड और मुण्ड नामक दो दैत्यों ने अपना आतंक मचा रखा था। एक बार दोनों ने कैलाश पर कब्जा करने की योजना बनाई और दोनों वहां पहुंच गए। इस दौरान माता पार्वती और भगवान शंकर द्यूत-क्रीड़ा में लीन थे। दोनों जबरन अंदर प्रवेश करने लगे, तो द्वार पर ही शिव के नंदीगण ने उन्हें रोका दिया। दोनों दैत्यों ने नंदीगण को शस्त्र से घायल कर दिया। जब शिवजी को यह पता चला तो उन्होंने तुरंत चंडीदेवी का स्मरण किया। देवी ने आज्ञा पाकर तत्क्षण दोनों दैत्यों का वध कर दिया। उन्होंने शंकरजी के निकट आकर विनम्रता से वध का वृतांत सुनाया। शंकरजी ने प्रसन्नता से कहा कि हे चण्डी, आपने दुष्टों का वध किया है अत: लोक-ख्याति में आपना नाम हरसिद्धि नाम से प्रसिद्ध होगा।
मंदिर का महत्व
उज्जैन की माता हरसिद्धि, राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी और आराध्य देवी होने के कारण भी देशवासियों के लिए इस स्थान का प्रमुख महत्व है। इस मंदिर का महत्व शक्तिपीठ होने के वजह से और बढ़ जाता है। जो भी श्रद्धालु यहां आता है उसकी मनोकामना पूरी होती है। नवरात्रि में यहां उत्सव का महौल रहता है। यहां की देवी का तांत्रिक महत्व भी है। यहां श्रीसूक्त और वेदोक्त मंत्रों के साथ पूजा होती है। मान्यता के अनुसार यहां पर स्तंभ दीप जलाने का सौभाग्य हर किसी को प्राप्त नहीं होता। कहा जाता हैं कि स्तंभ दीप जलाते वक्त बोली गई मनोकामना पूरी हो जाती है।
देशभर से पहुंचते हैं श्रद्धालु
नवरात्रि में देशभर से श्रद्धालु माता के दर्शन करने पहुंचते है। मान्यता है की यहां माता के दर्शन करने मात्र से सभी दुःख: और तकलीफों से निजात मिल जाती है। मंदिर में नवरात्रि के दौरान विशेष हवन और पूजन भी किया जाता है।
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