Shardiya Navratri 2025: हरसिद्धि माता मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। जहां माता सती की कोहनी गिरी थी। शिवपुराण के अनुसार, शिव जब ने यज्ञ की अग्नि से सती के जलते शरीर को उठाया तो उनकी कोहनी इसी स्थान पर गिरी थी। यहां मंदिर में शक्ति का प्रतीक श्री यंत्र भी स्थापित है।
मंदिर का इतिहास
यूं तो देश में हरसिद्धि देवी के बहुत से मंदिर प्रसिद्ध है, लेकिन उत्तर प्रदेश के वाराणसी और मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित हरसिद्धि मंदिर सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। उज्जैन का यह मंदिर 2000 साल पुराना है, जिसकी चर्चा पुराणों में भी है। हरसिद्धि मंदिर की चार दीवारी के अंदर चार प्रवेश द्वार हैं।

पूर्व द्वार की ओर रुद्रासागर
दक्षिण-पूर्व के कोण में एक बावड़ी बनी हुई है, जिसके अंदर एक स्तंभ है। जहां श्रीयंत्र बना हुआ स्थान है। भगवती अन्नपूर्णा की एक खूबसूरत प्रतिमा है। मंदिर के पूर्व द्वार से लगा हुआ सप्तसागर रुद्रसागर तालाब है। जिसे रुद्रासागर भी कहा जाता है। रुद्रसागर तालाब के सुरम्य तट पर चारों तरफ मजबूत दीवारों के बीच यह मंदिर बना हुआ है। इसके पीछे अगस्तेश्वर का प्राचीन सिद्ध स्थान है, जो महाकालेश्वर के भक्त हैं।
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मंदिर प्रांगण में दीप स्तंभ
मंदिर प्रांगण में दो दीप स्तंभ स्थापित है। जिनकी ऊंची लगभग 51 फीट हैं। इन स्तंभों की स्थापना उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने करवाई थी। नवरात्रि के 9 दिन तक इनमें दीप मालाएं लगाई जाती हैं। भव्य यज्ञ और पाठ के साथ पूजा-अर्चना की जाती है।

सम्राट विक्रमादित्य की तपोभूमि
इस मंदिर को सम्राट विक्रमादित्य की तपोभूमि कहा जाता है। सम्राट विक्रमादित्य माता हरसिद्धि के परम भक्त थे। कहा जाता है कि हर बारह साल में एक बार वे अपना सिर माता के चरणों में अर्पित कर देते थे, लेकिन माता के आशीर्वाद से पुन: नया सिर मिल जाता था।
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11 बार सम्राट विक्रमादित्य ने चढ़ाया सिर
हरसिद्धि माता को खुश करने के लिए सम्राट विक्रमादित्य ने 12 साल कठिन तप किया। हर साल अपने हाथों में अपने मस्तक की बलि दी थी। बलि देने के बाद हर बार उनका मस्तक वापस आ जाता था। लेकिन 12वीं बार जब मस्तक वापस नहीं आया तो समझा गया कि उनका शासन अब पूरा हो चुका है। आज भी मंदिर के एक कोने में 11 सिंदूर लगे मुण्ड पड़े हैं। कहा जाता हैं ये उन्हीं के कटे हुए मुण्ड हैं।

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