संदीप शर्मा, विदिशा। मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के शमशाबाद विकासखंड अंतर्गत आने वाला ग्राम पंचायत बरोदिया के रहवासी नारकीय जीवन जीने को मजबूर है। मूलभूत सुविधाओं से वंचित इस पंचायत के लोग आजादी के 75 वर्ष बाद भी इस उम्मीद के साथ जी रहे हैं कि कभी न कभी तो विकास की किरण पहुंचेगी।
विदिशा जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर इस पंचायत में बरोदिया के अलावा 8 गांव और भी आते हैं। इन सभी गांवों को भी बरोदिया की तरह ही उम्मीद है कि कभी तरक्की हम तक जरूर पहुंचेगी। ग्राम पंचायत बरोदिया के 9 गांव और 400 परिवार आज भी संजय सागर बांध के डूब क्षेत्र में बसे हुए हैं। बांध बनने से आसपास के कुछ क्षेत्रों को सुख समृद्धि मिली भी, लेकिन किसी कारणवश स्थिति ऐसी बनी कि बरोदिया ग्राम पंचायत के 9 गांव पूरी तरह से विकास की मुख्यधारा से कट गए।
वन भूमि की खेत डुबान में आने के कारण नहीं मिला मुआवजा
इस गांव तक जाने के लिए भोपाल जिले की सीमा से होकर जाना पड़ता है। बरोदिया पंचायत के अंतर्गत तीन राजस्व गांव और छह छोटे-छोटे मजरे आते हैं। यहां अधिकतर बंजारा, गुर्जर समुदाय और शहरी आदिवासी के लोग रहते हैं। 10 वर्ष पहले संजय सागर बांध का निर्माण किया गया था। यह बांध इस गांव के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है। बांध बनने से खेती का अधिकतर हिस्सा (वन जमीन) डूब में आने के कारण मुआवजा भी नहीं मिल सका, क्योंकि उस जमीन का इनके पास पट्टा भी नहीं था।
केंद्र और राज्य की सरकारी योजना सिर्फ कागजों में
अनुविभागीय अधिकारी बरोदिया पंचायत पहुंचे को बदहाली देखकर दंग रह गए। उन्होंने पाया कि यहां के लोगों को बिजली, पानी, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। अधिकारियों ने गांव वालों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने का भरोसा दिलाया। केंद्र से लेकर राज्य सरकार तमाम योजनाओं का ढिंढोरा भी पीटा। हकीकत कुछ अलग ही है। बच्चों को आज भी शिक्षा के लिए जान जोखिम में डालकर नदी से तैरकर स्कूल तक जाना पड़ता है। बारिश में सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। गर्भवती महिलाओं को खाट पर रखकर अस्पताल तक पहुंचाया जाता है।
गांव की लड़कियां हाई स्कूल की पढ़ाई नहीं कर पाती
सामाजिक पेंशन मुफ्त इलाज आंगनवाड़ी पोषण आहार जैसी सुविधाएं यहां सिर्फ कागजों में है। जर्जर मिडिल में शिक्षक आ गए तो पढ़ लिया वरना छुट्टी। कक्षा 9वीं के छात्र माखन सिंह और लक्ष्मण ने बताया कि हम तैरकर नदी पार करते हैं और दूसरी छोर पर पहुंचते हैं। गांव की लड़कियां हाई स्कूल की पढ़ाई नहीं कर पाती। शिक्षक जगदीश दांगी बताते हैं कि भवन मरम्मत के लिए कई बार विभागीय अधिकारियों को पत्र लिखे लेकिन अब तक कुछ नहीं हो सका।
जनप्रतिनिधियों ने भी मुंह मोड़ा
अब तक ग्रामीणों ने छह विधायक चुने हैं जिनमें से 2 मंत्री भी बने। सभी ने वादों की मीठी झप्पी देकर झूठे अश्वासन दिए। जिले के 5 विधानसभा क्षेत्रों में से एक शमशाबाद विधानसभा क्षेत्र वर्ष 1977 में यहां विधानसभा क्षेत्र बना था, तब से लेकर अब तक अधिकांश समय बीजेपी के विधायक चुने गए। इसी तरह सागर और विदिशा संसदीय क्षेत्र में सांसद भी बीजेपी के रहे। पिछले 18 वर्षों तक राज्य में बीजेपी की सरकार के बाद भी 9 गांवों में विकास को रोशनी नहीं पहुंच पाई है। चुनाव के बाद विधायक और सांसद ग्रामीणों की सुध नहीं लेते है।
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