लखनऊ. समाजवादी पार्टी (सपा) संस्थापक और यूपी के तीन बार के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस दुनिया से अलविदा कह दिया. लेकिन उनके जन्म से लेकर निधन तक ऐसी कई घटनक्रम जिनके कारण वह हमेशा याद किए जाएंगे. वह यूपी की सियासत के हरफनमौला खिलाड़ी थे.
बीते 55 वर्षों से उत्तर प्रदेश की राजनीति में आए हर मोड पर मुलायम सिंह दिखाई दिए, फिर चाहे वो सत्ता में रहे हों या ना रहे हो. मुलायम सिंह के नजदीकी से कवर करने पत्रकारों को पता था कि वह 24 घण्टे चैतन्य रहते थे. बड़े बेबाक थे. पार्टी कार्यकतार्ओं के लिए वह हमेशा ही उपलब्ध रहने वाले देश और यूपी के एकमात्र नेता रहे हैं. जेड प्लस सुरक्षा घेरे में रहते हुए भी वह कार्यकतार्ओं से कभी दूर नहीं हुए. उनकी यह सर्वसुलभता ही उन्हें देश के अन्य नेताओं से अलग कर नेताजी का खिताब दिलाती है.
वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र कुमार ने बताया कि अपने 55 साल के लंबे राजनीतिक करियर में मुलायम सिंह तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. यही नहीं वे सात बार सांसद रहे और आठ बार विधायकी का चुनाव जीता. 1967 में विधायक बनने वाले मुलायम ने फिर मुड़कर नहीं देखा. बीते 55 वर्षो में मुलायम सिंह ने कई सरकारें बनाई और बिगाड़ी.
उन्होंने बताया कि चौधरी चरण सिंह मुलायम सिंह को अपना राजनीतिक वारिस और अपने बेटे अजीत सिंह को अपना कानूनी वारिस कहा करते थे. बाद में परिस्थितियां कुछ ऐसे बनी कि यूपी के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में मुलायम सिंह ने अजीत को पछाड़ा. इसके कुछ वर्षों बाद मंदिर आंदोलन में शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती को गिरफ्तार कराके मुलायम सिंह यादव रातों रात धर्मनिरपेक्षता के नए चैंपियन बन गए थे. मंदिर आंदोलन के दौरान उनकी परिंदा पर नहीं मार सकेगा की टिप्पणी आज भी लोग भूले नहीं है. खांटी राजनेता मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक ह्यदांव-पेच उनके सहयोगियों और विरोधियों दोनों को हतप्रभ कर देते थे. कभी मुलायम के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रखने वाले दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर इसका प्रत्यक्ष उदाहरण रहे हैं.
कुश्ती के शौकीन मुलायम सिंह ने अपनी राजनीति की शुरूआत वर्ष 1967 में की थी. वरिष्ठ पत्रकार सुनीता ऐरन ने अपनी किताब ‘अखिलेश यादव: विंड्स ऑफ चेंज’ में लिखा है कि मुलायम ने अपनी चुनावी राजनीति की शुरूआत 1967 में एसएसपी के टिकट पर जसवंतनगर से मैदान में उतरने के साथ की, जो सीट उन्हें नाथू सिंह ने बतौर गिफ्ट दी थी और चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने.
सपा के संस्थापक सदस्य कुंवर रेवती रमण सिंह कहते हैं, ह्यलोहिया, राज नारायण और फिर चरण सिंह के संगठनों ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोला और इन नेताओं के संरक्षण में ही मुलायम सिंह बतौर राजनेता सियासत की सीढ़ियां चढ़े और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हार की वजह साबित हुए. ऐसे मुलायम सिंह ने कांशीराम के साथ मिलाकर यूपी में नया इतिहास भी बनाया था. लेकिन बाद में कांशीराम और मुलायम सिंह की मेहनत से बनाया गया सपा-बसपा गठबंधन टूट गया.
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1993 की बात है यूपी में पहली बार सपा-बसपा की साझा सरकार बनी थी. वह भी अयोध्या कांड के बाद भाजपा के जो कहा-वह किया नारे को पार पाते हुए. सरकार बनने के कुछ ही समय बाद जिला पंचायत चुनावों की प्रक्रिया शुरू हुई तो दोनों पार्टियों के रिश्तों में कड़वाहट आनी शुरू हो गई.
मुलायम सिंह के राजनीतिक सफर के ऐसे किस्से बहुत है. तमाम किताबें उन्हें लेकर लिखी गई है. यहीं नहीं मुलायम सिंह ये अभिन्न सहयोगी रहे बेनी प्रसाद वर्मा, जनेश्वर मिश्र, मोहन सिंह, अमर सिंह, आजम खान के साथ उन्हें रिश्तों को लेकर यूपी की राजनीति में भूचाल उठता रहा है. भाजपा के वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह जिनके साथ मुलायम सिंह का उनकी राजनीतिक अदावत चलती थी. उन कल्याण सिंह का संकट के समय मुलायम सिंह ने साथ दिया. मुलायम सिंह दोस्ती निभाने वाले नेता थे. हर राजनीतिक दल के मुखिया उनका सम्मान करते रहे है. देश की राजनीति में मुलायम सिंह ऐसा सुलभ नेता दूसरा कोई नहीं है. अब उनका ना होना देश की राजनीति के लिए बड़ा नुकसान है.