कुंदन कुमार/ पटना। छठ पूजा, सूर्य उपासना का महापर्व, बिहार सहित पूरे भारत में अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी बन चुका है। जैसे-जैसे यह पर्व नजदीक आता है, वैसे-वैसे इसकी तैयारियों में भी तेजी आ जाती है। बाजार सजने लगते हैं, घाटों की सफाई शुरू हो जाती है और छठ व्रती पूजा के लिए आवश्यक सामग्रियों का प्रबंध करने लगते हैं, लेकिन इस बार पटना की सड़कों पर एक अलग ही दृश्य देखने को मिल रहा है जहां मुस्लिम महिलाएं मिट्टी के पारंपरिक चूल्हे बनाती नजर आ रही हैं, जिन्हें छठ व्रती अपने व्रत के दौरान प्रसाद पकाने के लिए उपयोग में लाते हैं। यह दृश्य न सिर्फ धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि आस्था और परंपरा की डोर इतनी मजबूत होती है कि वह मजहब की दीवारों को भी पार कर जाती है।
महिलाएं सालों से यह काम करती आ रही
राजधानी पटना के कुछ हिस्सों में मुस्लिम समुदाय की महिलाएं सालों से यह काम करती आ रही हैं। इन्हीं में से एक हैं उमेदा खातून बताती हैं हम कई सालों से छठ व्रत के लिए मिट्टी का चूल्हा बना रहे हैं। यह हिंदुओं का बहुत बड़ा पर्व है और इसे बहुत नियम-कायदे से मनाया जाता है। जब हम चूल्हा बनाते हैं तो खुद भी नहा-धोकर और पूरी तरह से स्वच्छ होकर काम करते हैं। उस दौरान केवल शाकाहारी भोजन करते हैं ताकि हमारे बनाए चूल्हे में कोई अपवित्रता न आए।
मिट्टी के चूल्हों का विशेष महत्व होता
छठ पर्व में मिट्टी के चूल्हों का विशेष महत्व होता है। यह न केवल पारंपरिक मान्यता है बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी बेहतर विकल्प है। छठ व्रती इन चूल्हों पर ही प्रसाद जैसे ठेकुआ, कद्दू-भात और अन्य पकवान बनाते हैं और सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
मुनाफा नहीं मिलता
एक और मुस्लिम महिला, फूलों खातून वर्षों से इस काम में लगी हैं, कहती हैं, पहले मेरी सास यह काम करती थीं, अब हम इसे पूरी श्रद्धा और भक्ति से करते हैं। छठ पूजा हमारे लिए केवल कमाई का जरिया नहीं, बल्कि सम्मान की बात है। हालांकि अब मिट्टी, मजदूरी और अन्य चीजों की लागत बहुत बढ़ गई है लेकिन उतना मुनाफा नहीं मिलता। हम चाहते हैं कि सरकार या प्रशासन इस पर ध्यान दे और हमें उचित मूल्य दिलवाए।
विविधता और आपसी सौहार्द में है
इस तरह की कहानियां यह दिखाती हैं कि भारत की असली ताकत इसकी विविधता और आपसी सौहार्द में है। जब धर्म के नाम पर समाज में कटुता फैलाने की कोशिश की जाती है, तब ऐसे उदाहरण यह सिखाते हैं कि आस्था हमें जोड़ती है तोड़ती नहीं।
कोई भेदभाव नहीं होता
पटना की ये मुस्लिम महिलाएं यह साबित कर रही हैं कि भक्ति और सेवा में कोई भेदभाव नहीं होता। छठ केवल एक पर्व नहीं यह सामाजिक समरसता और मानवता का उत्सव भी है। आज जब हम प्रगति की ओर बढ़ रहे हैं ऐसे उदाहरण हमें हमारी सांस्कृतिक जड़ों की याद दिलाते हैं कि हम एक हैं, और यही हमारी असली पहचान है।
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