प्राचीन नगरी काशी, जिसे मोक्ष की नगरी कहा जाता है, हर कोने में आध्यात्मिक रहस्यों से भरी हुई है. यहां हजारों मंदिर हैं, लेकिन कुछ ऐसे दिव्य स्थल भी हैं, जो कम प्रसिद्ध होने के बावजूद अत्यंत चमत्कारी और शक्तिशाली माने जाते हैं. ऐसा ही एक मंदिर है देवी वाराही का, जो दशाश्वमेध क्षेत्र के मानमंदिर घाट के समीप स्थित है.

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स्वयंभू देवी को समर्पित यह मंदिर

यह मंदिर स्वयंभू देवी वाराही को समर्पित है, जिनकी प्रतिमा स्वयं प्रकट हुई मानी जाती है. इस मंदिर के निर्माणकर्ता के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है, जिससे इसका रहस्य और भी गहरा हो जाता है. यह मंदिर जमीन के एक तल नीचे स्थित है. ऊपर बनी एक झरोखी (खिड़की) से ही भक्त देवी के दर्शन करते हैं. मंदिर का गर्भगृह केवल पुजारी के लिए ही खुलता है.

मंदिर की अनूठी विशेषता

इस मंदिर की सबसे अनोखी बात है इसका दर्शन समय. यह मंदिर प्रातः 5 बजे खुलता है और केवल सुबह 8:30 बजे तक ही दर्शन के लिए खुला रहता है. यानी, केवल साढ़े तीन घंटे के लिए ही भक्तों को देवी के दर्शन होते हैं. ऐसा विश्वास है कि इतने सीमित समय में दर्शन करने मात्र से ही भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है.

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देवी वाराही का स्वरूप और महत्व

देवी वाराही, चौसठ योगिनियों में से एक हैं और उनका स्थान 28वां माना जाता है. वे भगवान विष्णु के वराह अवतार की शक्ति रूपा हैं. उनका मुख वराह (सूअर) का होता है, जो उनके उग्र रूप को दर्शाता है. मान्यता है कि जब देवी दुर्गा असुरों से युद्ध कर रही थीं, तब देवी वाराही ने सेना की सेनापति बनकर असुरों का संहार किया था.

काशी की क्षेत्रपाल देवी

काशी में यह विश्वास प्रचलित है कि देवी वाराही नगर की क्षेत्रपालिका हैं, अर्थात् यह नगर उन्हीं की रक्षा में सुरक्षित है. कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह भी माना जाता है कि इसी स्थान पर सती का एक दांत गिरा था, जिससे यह स्थल शक्तिपीठ के रूप में भी पूजनीय है.

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