रायपुर। अविभाजित मध्य प्रदेश में गुरुघासी दास बाबा की जयंती 18 दिसंबर 1938 में हुआ. इसके बाद बाबा के जन्म स्थान गिरौदपुरी में तीन दिवसीय मेले की शुरुआत की गई. वहीं पृथम छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की मांग को लेकर 1972 में जेल गया. ये तीनों ऐतिहासिक कार्य पूर्व मंत्री नकुलदेव ढीढी ने की थी. माना जाता है कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की मांग को लेकर जेल जाने वाले वे पहले छत्तीसगढिया थे. इन ऐतिहासिक कार्यों के लिए नकुलदेव ढीढी को याद किया जाता है.

नकुलदेव ढीढी का जन्म महासमुंद जिले के ग्राम भोरिंग में हुआ था. आज 16 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि है. आज पूरा प्रदेश व सतनामी समाज नकुलदेव ढीढी की दूरदर्शिता को याद कर रहे हैं.

सत- जीवन व्यवहार

नकुल देव ढीढी ने कहा था कि सत्य को जानो,  छानो, तब मानों. अर्थात विज्ञान पर आधारित बात को मानना चाहिए. समाज में  अंधविश्वास व रूढ़ीवाद के लिए कोई स्थान नहीं हैं.

प्रेम, दया, करूणा, क्षमा, विनय और शील सभी मानवीय गुण हैं. मानवीय गुणों का असर सदैव एक जैसा होता है, कभी बदलता नहीं. अनादि काल से मानवतावादियों द्वारा सत्य व सत की प्रक्रिया जारी है. यही सतनाम मिशन है. सामाजिक व आर्थिक गैर बराबरी मिटना जरूरी है.

जन्म, जीवन व मरण कटु सत्य है. सतनाम मिशन के लिये रिले रेश जरूरी है. सत्य व सत के वाहक  क्रमशः अपनी-अपनी पारी खेल कर जाते रहे हैं. छत्तीसगढ की धरती में बाबा गु्रू घासीदास जी 18 दिसंबर 1756 से 20 फरवरी 1820 तक  सतनाम मिशन को आगे बढ़ाते रहे. 1820 से 1830 तक उनका बौद्धिक क्रान्ति ( Intellectual War ) का व्यापक असर पड़ा.

रावटी के माध्यम से जन चेतना  व सतनाम का प्रचार-प्रसार

प्रथम रावटी, चिरई पदर – बस्तर जिला, दूसरा रावटी-कांकेर, तीसरा रवटी- पानाबरस मोहला – राजनांदगांव जिला. चौथा रावटी, डोंगरगढ – राजनांदगांव जिला, पांचवा रावटी, गंडई के भंवरदाह जंगल – राजनांदगांव जिला. छठवां रावटी-भोरमदेव – कवर्धा जिला. सांतवा रावटी- दलहा पोडी – बिलासपुर जिला.

मिशन का संकल्पना ( पहाड़ी में चढ़ने की प्रक्रिया ) होती है. चढ़ते वक्त,  ढलान में खड़े रहने के लिये भी ताकत लगाना होता है. मिशन को अपने स्थान पर बनाये रखने के लिये भी ताकत लगाना होता है.  मिशन को निरंतर आगे बढ़ाने के लिए केन्द्र बिन्दुओं की जरूरत होती है. यह वैज्ञानिक अनुसंधान प्रमाणित है. सतनाम मिशन को गति प्रदान करने के लिए मंत्री नकुल देव ढीढी ने छत्तीसगढ में दो सशक्त केंद्र बिंदु सृजन किए हैं.

प्रथम केंद्र बिंदु-

18 दिसंबर गुरू घासीदास बाबा जयंती की शुरुआत की. उन्होंने जयंती की शुरुआत 18 दिसंबर 1938 को अपने गृहग्राम भोरिंग (महासमुंद) से किए.

द्वितीय केंद्र बिंदु-

तीन दिवसीय गिरौदपुरी मेला प्रारंभ किया. 1961 से फागुन शुक्ल पंचमी, षष्ठी व सप्तमी ( सन् 1935 में एक दिवसीय मेला माघी पुन्नी को गुरु अगमदास जी शुरूआत किए थे.

इन्हीं दो प्रमुख केन्द्र बिन्दुओं के माध्यम से ही सतनाम मिशन आगे बढ़ते नजर आ रहा है, जिसके प्रभाव सबके समक्ष हैं. 1970 में छत्तीसगढ में 18 दिसंबर गुरू घासीदास दास जी की जयंती की छुट्टी मिलनी शुरू हुई. 1972 में पूरे मध्य प्रदेश में 18 दिसंबर को अवकाश घोषित किया गया.

16 जून 1983 को बिलासपुर में विद्यालय की स्थापना की गई. जो आज केंद्रीय विश्वविद्यालय है. गुरू घासीदास बाबा पर शोध टीम का गठन किया गया. शोध के आधार पर डॉ हीरालाल शुक्ल द्वारा : ” गुरु घासीदास – संघर्ष समन्वय और सिद्धांत ” का प्रकाशन ।( महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आई हैं )

1987 गुरू घासीदास जी पर टिकट जारी की गई. गिरौदपुरी में कुतुबमीनार से भी ऊंचा  जैतखाम का निर्माण हुआ है.  अंबेडकरवाद को जानना व समझना जरूरी हो जाता है.

राजनीतिक यात्रा

बहिष्कृत हितकारिणी सभा, डिप्रेस्ड क्लासेज फेडरेशन, लेबर पार्टी  के बाद 1942 में शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन ( SCF) और 1957 में रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया ( RPI ) बना. देश के वंचितों को विशेष अधिकार (सिद्धांत रूप से) प्राप्त हुए हैं.  व्यावहारिकता के लिए संघर्ष करना होगा. पहली लोकसभा के चुनाव में SCF भाग लिया. 1957 के चुनाव में RPI सामने आया.

मंत्री दादा नकुलदेव ढीढी के नेतृत्व में ही लोग जुड़ते गए. 1930 में जंगल बचाओ आंदोलन से जुड़े. 1937 में पथ प्रदर्शक महासभा ( पंजीयन क्र 15 ) का गठन हुआ. उन्होंने 18 दिसंबर 1938 को गुरू घासीदास बाबा की जयंती की शुरुआत की. अनुभवी जनों से प्रेरणा लेकर  प्रामाणिकता के आधार पर गुरू घासीदास का जन्म दिवस 18 दिसंबर 1756 निर्धारित हुआ.

आजादी के बाद SCF से जुड़ गए. 1948 को अखिल भारतीय सतनामी महासभा ( पंजीयन क्र 75 ) का गठन किया. 1951 में सेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन – छत्तीसगढ इकाई का गठन हुआ. 1952 के पहली लोक सभा चुनाव सेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन ( हाथी चुनाव चिह्न ) से लड़े. 1957 के लोक सभा चुनाव आर पी आई ( हाथी चुनाव  ) के बैनर से लड़े. 1961 में आरपीआई छत्तीसगढ इकाई का गठन हुआ, जिसमें अध्यक्ष नियुक्त हुए. 1970 के आरपीआई बंगलोर सम्मेलन में पृथक छत्तीसगढ राज्य का प्रस्ताव पास कराए. अक्टूबर 1972 को पृथक छत्तीसगढ राज्य आंदोलन में जेल गए.