Colonel Sophia Qureshi: ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद ना की प्रेस कांफ्रेंस में ब्रीफिंग देने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी इन दिनों देश की सनसनी बनी हुई है। ‘कर्नल सोफिया कुरैशी’ का नाम अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में भी गूंजा है। दरअसल महिला सैन्य अधिकारियों के स्थाई कमीशन से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के दौरान कर्नल सोफिया कुरैशी का भी जिक्र किया गया। एक महिला अधिकारी की वकील ने सोफिया कुरैशी का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें भी स्थाई कमीशन के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा था। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा स्थिति में हमें सेना की महिला अधिकारियों का मनोबल नहीं गिराना चाहिए। वे प्रतिभाशाली अधिकारी हैं, आप उनकी सेवाएं कहीं और ले सकते हैं।

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शीर्ष न्यायालय ने महिला अधिकारियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र से कहा कि वह उन अल्प सेवा कमीशन (शॉर्ट सर्विस कमीशन) महिला सैन्य अधिकारियों को सेवा से मुक्त न करें। जिन्होंने उन्हें स्थाई कमीशन (पीसी) देने से इनकार किए जाने के फैसले को चुनौती दी है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने 69 अधिकारियों की ओर से दायर याचिकाओं को अगस्त में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा कि अगली सुनवाई तक उन्हें सेवा से मुक्त नहीं किया जाना चाहिए।
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जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘मौजूदा स्थिति में हमें उनका मनोबल नहीं गिराना चाहिए. वे प्रतिभाशाली अधिकारी हैं, आप उनकी सेवाएं कहीं और ले सकते हैं। यह समय नहीं है कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट में इधर-उधर भटकने के लिए कहा जाए। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि यह सशस्त्र बलों को युवा बनाए रखने की नीति पर आधारित एक प्रशासनिक निर्णय था।

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उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से उन्हें सेवा मुक्त किए जाने पर कोई रोक नहीं लगाने का आग्रह करते हुए कहा कि भारतीय सेना को युवा अधिकारियों की आवश्यकता है और हर साल केवल 250 कर्मियों को स्थायी कमीशन दिया जाना है। कर्नल गीता शर्मा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने कर्नल सोफिया कुरैशी के मामले का उल्लेख किया, जो उन दो महिला अधिकारियों में से एक हैं जिन्होंने सात और आठ मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बारे में मीडिया को जानकारी दी थी।

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गुरुस्वामी ने कहा कि कर्नल कुरैशी को स्थायी कमीशन से संबंधित इसी तरह की राहत के लिए इस अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा था और अब उन्होंने देश को गौरवान्वित किया है। पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जो मामला है, वह पूरी तरह कानूनी है और इसका अधिकारियों की उपलब्धियों से कोई लेना-देना नहीं है।

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सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी, 2020 को कहा था कि सेना में स्टाफ नियुक्तियों को छोड़कर सभी पदों से महिलाओं को पूरी तरह बाहर रखे जाने के कदम का बचाव नहीं किया जा सकता। साथ ही कमांड नियुक्तियों के लिए उन पर बिना किसी औचित्य के कतई विचार न करने का कदम कानून के तहत बरकरार नहीं रखा जा सकता।

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