रायपुर-  नक्सल हमले को लेकर फेसबुक पर टिप्पणी करने के आरोप में निलंबन का दंश झेल रही रायपुर सेंट्रल जेल की डिप्टी जेलर वर्षा डोंगरे के पक्ष में बीजेपी के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय खड़े नजर आ रहे हैं। आय़ोग की जिम्मेदारी मिलने के बाद पहली बार छत्तीसगढ़ में बैठक लेने पहुंचे साय ने लल्लूराम.काॅम से विशेष बातचीत में डोंगरे का पक्ष लेते हुए कहा- सरकार को कड़ा रूख अपनाने से पहले इसके बारे में सोचना चाहिए था।
वर्षा डोंगरे की तरह ही नंदकुमार साय ये मानते हैं कि बस्तर में आदिवासियों की स्थिति अच्छी नहीं है और उन पर अत्याचार के मामले बढ़ते जा रहे हैं। पुलिस की बर्बरता भी कई मौकों पर सामने आती है, जिसकी वजह से नक्सलवाद को खत्म कर पाना आसान नहीं दिख रहा है। ऐसे में जरूरी है कि आदिवासियों का भरोसा जीतकर नक्सलवाद के खात्मे की दिशा में आगे बढ़ा जाए। उन्होंने ये भी माना कि पुलिस और सेना नक्सल समस्या का समाधान नहीं हो सकता।

इधर वर्षा डोंगरे एक बार फिर से फेसबुक पर सक्रिय हो गई है। उन्होंने कथि बुद्धिजीवियों पर निशाना साधते हुए क्या कुछ लिखा हैं, पढ़िए उनके फेसबुक पोस्ट पर-

#कुछ#छद्म#देशभक्तों#द्वारा#हमें#न्यायपथ#से#भटकाने#की#पूरजोर#कोशिश #की #जा#रही#है

#इसी#परिपेक्ष्य#में#एक#कड़ी….।

 

राष्ट्रीय एकता में बाधक तत्व… नक्सलवाद, आतंकवाद, जातिवाद, वर्गवाद सभी का अंत होना चाहिए…क्योंकि इनके आड़ में फर्जीकरण कर निर्दोषों को ही बलि का बकरा बनाया गया है ।
सी.बी.आई.रिपोर्ट तो पढ़ लेते तभी तो सच्चाई जान पाओगे की आदिवासियों के पूरे गाँव के गाँव को फोर्स ने जलाया था । राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग नई दिल्ली का रिपोर्ट पढ़ लेते तो नक्सलवाद के नाम पर फर्जी मुठभेड़ की सच्चाई सामने आ जाती । माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा नंदनी सुन्दर व अन्य बनाम छत्तीसगढ़ शासन का निर्णय पढ़ लेते तो आदिवासी अत्याचार के लिए जिम्मेदार लोगों की पूरी सच्चाई जान पाते की किस तरह आदिवासियों के द्वारा आदिवासियों को खत्म करने के लिए निर्मित SPO को गैरकानूनी घोषित कर प्रतिबंधित कर दिया गया ।


बिना प्रमाण…बिना आधार… के वैचारिक बहस में कुदना बुद्धिजीवी वर्ग को शोभा नहीं देता है ।
यदि आप लोगों के पास पढ़ने के लिए उपरोक्त दस्तावेज ना हो तो कृपया जेल प्रशासन से सूचना का अधिकार के तहत् प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि अपने 376 पेज के जवाब में ये सारे प्रमाणिक दस्तावेज जेल प्रशासन को मुहैया करा दिए हैं ।


हाईकोर्ट में in person की लड़ाई वो भी शासन के विरूद्ध सिनीयर एडवोकेट के साथ आसान नहीं होती ।
संभवतः आपको ज्ञात नहीं होगा कि संतोष जी के सुप्रीम कोर्ट में एक hearing मात्र के लिए श्री प्रशांत भूषण जी की फीस 75000 रूपये देना पड़ा है । आप तो कल्पना भी नहीं कर सकते कि एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति के लिए इतनी बड़ी कीमत चुकाना कितना श्रमसाध्य कार्य है ।


शासन प्रशासन ने भरपूर कोशिश की हमें तोड़ने की यहाँ तक की माननीय हाईकोर्ट बिलासपुर के समक्ष अपनी सारी गलती को स्वीकार करते हुए हमें उचित योग्य पद प्रदाय करने का प्रलोभन देकर case खत्म करने की बात कही । इस बाबत् हाईकोर्ट के निर्णय क्र. पैरा 69 स्वयं देख सकते हैं ।


मैं बेहद आश्चर्यचकित थी कि माननीय हाईकोर्ट के समक्ष वो रिश्वत देने की बात कर रहे थे…बेहद गुस्सा आया था कि 11 वर्षों के अथक संघर्ष के बाद जब हम स्वयं कोर्ट में प्रमाणित कर चुके तब वह यह बात कह रहे हैं । सवाल केवल हमारा नहीं था बल्कि भ्रष्टाचार का दंश झेल रहे समस्त अभ्यर्थियों का था इसलिए ठुकरा दिया…


जहाँ तक बात है श्री प्रशांत भूषण सर द्वारा हमारे case में पैसे नहीं लेने का तो यह उनका अपना व्यक्तिगत फैसला है हमने किसी पर कोई दबाव नहीं दिया…बल्कि सर स्वयं भ्रष्टाचार के विरूद्ध हमारे इस लड़ाई से बेहद खुश थे… शंभवतः इसलिए अभी तक कोई फीस नहीं लिए हैं ।


#कृपया #कोर्ट #में #बहस #के #लिए #सादर #आमंत्रित #हैं #क्योंकि #हम #संविधान #सम्मत #तरीके #से #लड़ना #पसंद #करते #हैं ।
जय जोहार…

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