कोलकाता। महान कवि, लेखक, चित्रकार, दार्शनिक और लघु कथाकार रवींद्रनाथ टैगोर ने देश व बंगाली साहित्य के परिदृश्य पर अपने कार्यों से एक अमिट छाप छोड़ी है. एक नहीं बल्कि दो-दो देशों के राष्ट्रगान के रचियता और बांग्ला महाकाव्य ‘गीतांजलि’ के लिए वर्ष 1913 में नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले गैर यूरोपियन रवींद्रनाथ टैगोर की 7 मई को जयंती मनाई जाएगी. इस अवसर पर आइए हम जानते हैं उनके जीवन के सफर को…

रविंद्रनाथ टैगोर का जीवन

रविंद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के घर जोरासंको हवेली में हुआ था. बचपन में ही उनकी मां की मृत्यु होने की वजह से उनका पालन-पोषण ज्यादातर नौकरों के हाथों हुआ था. टैगोर ने अपने घर पर ही बड़े भाई से विज्ञान, भूगोल, इतिहास, साहित्य, गणित, संस्कृत और अंग्रेजी की शिक्षा ली. 11 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने पिता के साथ भारत भ्रमण किया था.

1882 में उन्होंने अपनी पहली बंगाली लघुकथा ‘भिखारिणी’ लिखी.

1878 में टैगोर को बैरिस्टर बनने के लिए लंदन भेजा गया. वहां उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से कानून की पढ़ाई की, लेकिन उन्हें औपचारिक शिक्षा पद्धति रास नहीं आई तो वह स्वतंत्र रूप से शेक्सपियर एंटनी और क्लियोपेट्रा और थॉमस ब्राउन का अध्ययन किया. 1880 में वे बिना किसी डिग्री के बंगाल लौट आए. बंगाल में उन्होंने कविता कहानियों और उपन्यासों का प्रकाशन शुरू किया. कुछ समय में ही वे पूरे बंगाल में मशहूर हो गए.

1913 में रविंद्रनाथ टैगोर को उनके साहित्य में महान योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यह पुरस्कार उन्हें उनके द्वारा लिखी हुई ‘गीतांजलि’ के लिए मिला था. गीतांजलि बंगाली गीतों का संग्रह है. 1915 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘नाइट’ की उपाधि दी, लेकिन जलियांवाला हत्याकांड के बाद उन्होंने यह उपाधि ब्रिटिश सरकार को वापस कर दी थी.

गांधी जी को दिया ‘महात्मा’ का नाम

रवींद्रनाथ टैगोर ने सबसे पहले मोहनचंद करमचंद गांधी के लिए ‘महात्मा’ शब्द का प्रयोग किया था. वह एक नेता और व्यक्ति के रूप में गांधीजी के प्रशंसक थे. उन्होंने व्यक्तिगत रूप से कभी भी गांधी जी की आलोचना नहीं की, लेकिन उनके विचार गांधीजी से पूरी तरह अलग थे. 1934 में जब बिहार भूकंप में हजारों लोगों की मृत्यु हुई थी, उस समय गांधीजी ने उस वाकये को लोगों का कर्मफल कहा था. इस पर रवींद्रनाथ टैगोर ने नाराजगी जताते हुए गांधी जी को इस टिप्पणी के लिए फटकार लगाई थी.

शांति निकेतन की स्थापना

1883 में रविंद्र नाथ टैगोर की शादी मृणालिनी देवी से हुई थी. उस समय वह मात्र 10 वर्ष की थी, आगे चलकर इस दंपति के 5 बच्चे हुए. 1901 में रविंद्र नाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन में प्रारंभिक स्कूल की स्थापना की, जो आगे चलकर विश्व भारती विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ. वे गुरु-शिष्य परंपरा और शिक्षा की गुरुकुल पद्धति के समर्थक थे. वह भारत में गुरुकुल या आश्रम पद्धति की शिक्षा का विकास करना चाहते थे.

शांतिनिकेतन में पेड़ के नीचे कक्षाएं चलतीं थीं. गुरुदेव सुबह कक्षाओं में पढ़ाते थे और दोपहर और शाम को पाठ्य पुस्तकें लिखते थे. वहां बगीचे और पुस्तकालय भी थे. शांतिनिकेतन में हर प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था है. उन्होंने नोबेल पुरस्कार से मिले पैसों से इस व्यवस्था को आगे बढ़ाया था. वर्तमान में भी शांतिनिकेतन शिक्षा का ऐसा केंद्र है, जहां साहित्य, नाट्य, पेंटिंग, समेत हर प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था है.

2230 गीतों की रचना की

रवींद्रनाथ टैगोर ने लगभग 2230 गीतों की रचना की. और अधिकतर को संगीत भी दिया. इन गीतों को रविंद्र संगीत के नाम से जाना जाता है. 1905 में उन्होंने बंगाल विभाजन के विरोध स्वरूप ‘अमार सोनार बांग्ला’ गीत की रचना की, जो वर्तमान में बांग्लादेश का राष्ट्रगान है. उन्होंने भारत के राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ की रचना 1911 में की. इसे राष्ट्रगान के रूप में 1950 में अपनाया गया. उनके द्वारा रचित ‘गीतांजलि’ बांग्ला महाकाव्य के रूप में अमर है.

रोका बंगाल का विभाजन

19वीं शताब्दी की शुरुआत में बंगाल में राष्ट्रवादी आंदोलन अपने पूरे उफान पर था, और राष्ट्र के लिए यह एकता ब्रिटिश शासन के लिए खतरे की घंटी थी. इससे बचने के लिए अंग्रेजों ने ‘फूट डालो और राज करो की’ नीति अपनाते हुए धर्म के आधार पर बंगाल के विभाजन का फैसला 1905 को पारित कर दिया. इसके खिलाफ रवींद्रनाथ टैगोर के आह्वान पर कोलकाता, ढाका और सिलहट में बड़ी संख्या में हिंदू और मुसलमान राखी बांधने और बंधवाने के लिए आगे आए. 6 साल के कड़े विरोध के बाद अंग्रेजों ने 1911 में बंगाल विभाजन का आदेश वापस ले लिया था.

कोमा में हुआ निधन

रवींद्र नाथ टैगोर 1937 में लंबी बीमारी के बाद कोमा में चले गए थे. कुछ समय के लिए होश में आने के बाद वे 1940 में फिर से कोमा में चले गए. उसके बाद फिर कभी उन्हें होश नहीं आया. आखिरकार 80 वर्ष की आयु में टैगोर का निधन 7 अगस्त 1941 को जोरासंको हवेली में हो गया. इसी हवेली में उनका जन्म और पालन-पोषण भी हुआ था.

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