आज 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस (National Handloom Day) मनाया जा रहा है. हमें देश भर में हथकरघा की समृद्ध विरासत और जीवंत परंपरा पर बहुत गर्व है. छत्तीसगढ़ के कोसा सिल्क की चमक अमेरिकी, यूरोपीय और अफ्रीकी देशों तक पहुंच चुकी है. छत्तीसगढ़ ग्रामोद्योग विभाग द्वारा वनोपज आधारित उत्पादों को बढ़ावा देने और उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं. कोसा सिल्क उत्पादों की प्रस्तुतिकरण से ही अफ्रीकी व्यापारिक संस्थान इनके मुरीद हो गए.

चाइनीज और कोरियन धागों के मुकाबले छत्तीसगढ़ का कोसा सिल्क धागा मजबूत और किफायती होता है. जिसकी पूरे विश्व डिमांड है. अनेक देशों में कोसा से निर्मित साड़ी, परदा, गमछा आदि उत्पादों को पसंद किया जा रहा है. छत्तीसगढ़ के कोसा सिल्क धागे आकर्षक, मजबूत और किफायती होने के कारण दूसरे राज्यों के साथ-साथ अन्य देशों में भी इसकी मांग बढ़ी है.पारंपरिक रूप से कोसा से सिर्फ साड़ियां बनाई जाती थीं लेकिन अब इससे लहंगे भी बनाए जाते हैं. विदेशों में कोसा सिल्क के कपड़ों से कई तरह के डिजाइनर वेस्टर्न आउटफिट्स भी तैयार किये जाते हैं. Read More – Ranvir Shorey को खल रही है Sana Makbul की जीत, कहा- कई लोग थे ट्रॉफी के ज्यादा हकदार …

चांपा जिले में निर्मित कोसा सिल्क सबसे अच्छा

आज चाम्पा में निर्मित कोसा का कपड़ा और साड़ी सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि, विदेशों में भी निर्यात होता है. छत्तीसगढ़ का कोसा सिल्क पूरी दुनिया में अपने आरामदायक टेक्स्चर के लिए जाना जाता है. प्रदेश में विदेशी पर्यटकों के आगमन के साथ ही यहां की कोसा सिल्क साड़ियों के निर्यात में दिनों-दिन बढ़ोतरी हो रही है. कोसा सिल्क प्रदेश के कोरबा और चांपा जिले में मुख्य रूप से तैयार किया जाता है. यह बेहद मजबूत होता है. Read More – Anant Ambani और Radhika Merchant की शादी की रस्में हुईं शुरू, मामेरु रस्म में दिखा पूरा परिवार ...

कैसे बनता है कोसा सिल्क…

तितलियों के लार्वा से बने कोकून को जंगलों से इकट्ठा किया जाता है. फिर इनमें से अच्छे कोकूनों को चुन उन्हें उबाला जाता है. उबालने के बाद इनसे रेशम का धागा निकाला जाता है. 7 से 8 कोकून से मिलाकर एक पूरा लम्बा धागा तैयार होता है. फिर धागे में रंग लगाया जाता है. सूखने के बाद धागे को लपेट कर एक गड्डी बनाई जाती है. जिसके बाद इस पूरे धागे से साड़ियों को तैयार किया जाता है.