पवन दुर्गम, बीजापुर। बस्तर यूं तो नक्सली वारदातों की वजह से सुर्खियों में रहता है. लेकिन घने वनों से भरा यह पहाड़ी, नदी और नालों का इलाका बस्तर को अलग पहचान दिलाता है. चित्रकोट जलप्रपात को छत्तीसगढ़ का नियाग्रा कहा जाता है. वहीं पांडवकालीन दुर्गम गुट्टा हो या गुफा में छिपी शिवलिंग की कहानी को बहुत कम लोग जानते हैं. इसके साथ ही बीजापुर जिले के अतिनक्सल प्रभावित उसूर की कोह में भी नियाग्रा की झलक नजर आती है.

दुर्गम गुट्टा ( कठिन पहाड़ी)

राजधानी से करीब 523 किमी और तेलांगाना की सीमा से कुछ किमी दूर बसा पुजारीकांकेर गांव है. माना जाता है कि कौरवों के शर्त हार कर अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने यहां विशाल पहाड़ी पर कुछ समय गुजारा था. तब से यहां स्थानीय भाषा बोली में इसे दुर्गम गुट्टा या पाण्डव पहाड़ी भी कहा जाता है. ग्रामीणों के अनुसार पहाड़ी के ऊपर भी एक मंदिर है. पुजारीकांकेर एक ऐसा गांव है, जहां आज भी पांचों पाण्डव भाइयों की पूजा भी होती है. यह सरहद पर ग्रामीणों ने धर्मराज ( युधिष्ठिर) का मंदिर भी बनाया गया है, जहां हर दो वर्षों में मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें क्षेत्र के करीब 2 दर्जन से ज्यादा गांवों के स्थानीय देवीदेवता सम्मिलित होते हैं.

मंदिर पुजारियों की माने तो जुए में अपना सब कुछ हारकर अज्ञातवास पर निकले पांडवों ने यहां दुर्गम गुट्टा ( दुर्गम पहाड़ी) में उन्होंने ने समय व्यतीत किया. दंडकारण्य के इस जंगलों में पांड़वों का बसेरा था आज वही जगह पुजारीकांकेर के नाम से जाना जाता है. दंडकारण्य के इस दुर्गम गुट्टा( पहाड़ी) से होकर बाद में पांडवो ने भोपालपट्टनम क्षेत्र का रुख किया जो सुरंग के रास्ते सकलनारायन पहाड़ी तक पहुंचता है जहां श्रीकृष्ण भगवान की मूर्ति पांडवों द्वारा किया गया था. जहां सकलनाराय मेला लगता है. किवदंती है कि इसी सकलनारायन की पहाड़ी में श्रीकृष्ण और जामवन्त युद्ध हुआ था.

पुजारी कहते हैं कि उनके पूर्वजों द्वारा पांडव पर्वत में पांडवों के नाम पर मंदिर का निर्माण भी किया है. कोई भी व्यक्ति वहां नहीं पहुंच पाता है, इसलिए गांव के सरहद पर धर्मराज युधिष्ठिर के नाम का मंदिर बनाया गया है और पांचों पांडवों की पूजा के लिए अलगअलग पुजारी नियुक्त किए गए हैं. अर्जुन की पूजा के लिए राममूर्ति दादी, भीम के लिए दादी अनिल, युधिष्ठिर के लिए कनपुजारी, नकुल के लिए दादी रमेश व सहदेव के लिए संतोष उड़तल को पुजारी बनाया गया है. पूजा पाठ और पुजारियों का गांव होने के कारण ही उनके गांव का नाम पुजारी कांकेर रखा गया है

नीलम सर्री ( नीला झरना)

राजधानी से करीब 500 किमी दूर नक्सलियों की पैठ वाला इलाका है उसूर. इसके आगे तेलांगाना की सड़क लगभग दो दशकों से दहशत का पर्याय बनी हुई है. हम जिस नीलम सर्री की बात कर रहे हैं, उसके लिए उसूर से आपको पैदल करीब 10 किमी और कई घंटों का सफर करना पड़ेगा. कठिन चढाई और पहाड़ी की वजह से सफर थोड़ी मुश्किल हो जाता है, लेकिन बस्तर की सबसे ऊंचाई से गिरने वाली जलधारा को देखने के उत्साह के आगे मुश्किल रास्ता भी आसान लगने लगता है. बारिश के वक्त नीलम सर्री अपने पूरे शबाब पर होती है. 200 मीटर की ऊंचाई और करीब 100 मीटर की चौड़ाई आपको रोमांच से भर देगी.

नीलम सर्री अब गुमनामी से बाहर आ रहा है जिसके पीछे सबसे बड़ी वजह उसूर के युवा हैं, जिन्होंने नीलम सर्री तक ट्रैकिंग की और अब सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों तक नीलम सर्री जलधारा के महत्व को बता रहे हैं.

 

दोबे गुफा

बोमरेल

बोमरेल गुफा नीलम सर्री से करीब 5 किमी की दूरी पर स्थित है. स्थानीय ग्रामीणों की माने तो बोमरेल गुफ़ा तक कि चढ़ाई बहुत कठिन और खड़ी पहाड़ी से होकर गुजरती है जहां तक पहुंचने में बहुत ज्यादा खतरा होता है. ग्रामीण वहां तक पहुंचे हैं मगर वहां की तस्वीरें संसाधनों के अभाव में कैमरे में कभी कैद नही कर पाए.

दोबे गुफा

नीलम सर्री से लगकर एक गुफा है जिसे बोमरेल गुफा के नाम दिया गया है. खड़ी गुम्बद आकार के चट्टानों के बीच एक गुफ़ा दिखाई देती है. लोगों के मुताबिक इस गुफ़ा में अब तक किसी ने प्रवेश नहीं किया है जिसकी वजह से इसके बारे कोई भी तथ्य और जानकारी नही है.

नडपल्ली गुफा

बीजापुर जिले से 43 किमी दूर पहाड़ियों से घिरा उसूर है. माओवादी क्षेत्र होने की वजह से शाम ढलते यहां आवाजाही थमने लगती है. उसूर से तेलांगाना को जाने वाली 41 किमी की सड़क है, जो माओवादी आधार वाला इलाका है. उसूर से 4 किमी दूर नाडपल्ली गांव हैं. जहां आदिवासियों की जीविका जंगल पर निर्भर रहती है. नडपल्ली गांव से 2-3 किमी के कठिन पैदल सफर के बाद दंडक वन के जंगलों में नडपल्ली गुफ़ा मौजूद है. बाहर से छोटे से गुफा की तरह दिखने वाले इस गुफा में प्रवेश करते ही इसकी विशालता दिखाई पड़ती है.

किवदंती है कि भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान यहां गुफ़ा में शरण ली थी. गुफ़ा में कुछ दूर चलने के बाद पहाड़ों से रिसते ठंडे पानी की बूंदे शिवलिंग पर गिरने लगती हैं. ग्रामीणों की माने तो गुफ़ा में कई गुप्त द्वारा हैं लेकिन कभी किसी ने इन्हें लांघने की कभी हिम्मत नही जुटाई. जैसे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उंगली में उठाई थी वैसे ही पहाड़ों के पूरा भर इस गुफ़ा में मौजूद शिवलिंग पर है.

लंकापल्ली जलप्रपात

नक्सलियों के गढ़ के रूप में पहचाने जाने वाले बस्तर को कुदरत ने बहुत खूबसूरती बख्सी है. यहां बीजापुर जिले में एक ऐसा जलप्रपात है जिसके बारे में लोग कम ही जानते हैं, लेकिन इस जलप्रपात की खूबसूरती देखते ही बनती है. बीजापुर जिले के लंकापल्ली गांव से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस जलप्रपात को लंका जलप्रपातके नाम से पहचाना जाता है.

बारिश के इस मौसम में इस जलप्रपात की खूबसूरती निखर आई है. इस जलप्रपात तक पहुंचने का रास्ता काफी कठिन है, लेकिन हमारे संवाददाता ने तमाम मुश्किलों को पार कर लंकाप्रपात की खूबसूरती को अपने कैमरे में कैद कर ही लिया. लंकापल्ली पहुंचने के लिए आवापल्ली से इलमिडी तक 10 किमी का सफर तय कर पहुंचा जा सकता है. इलमिडी से करीब 3 किमी लंकापल्ली गांव है जहाँ से 2 किमी की दूरी पर लंकापल्ली का मनोरम जलप्रपात बोगतुल जलधारा मौजूद है. लंकापल्ली कि यह जलधारा आसपास गांव के लिए लाइफ लाइन मानी जाती है.

नम्बी जलधारा

छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर संभाग मे बीजापुर जिले के उसूर जनपद के नम्बी गांव में स्थित है. यह जिला मुख्यालय से लगभग 64 किलोमीटर की दूरी पर तेलंगाना सीमा पर स्थित है. उसूर जनपद से नम्बी महज 12 किमी की दूरी पर स्थित है. यह बस्तर संभाग की सर्वाधिक ऊंचाई से गिरने वाला जलप्रपात है. इसकी ऊंचाई लगभग 180 मीटर है. वर्ष 2001 में अविभाजित आंध्रप्रदेश सरकार ने अपने तरफ से पर्यटन रास्ता बनाने का प्रयास किया था. परंतु नक्सल समस्या की वजह से यह प्रयास असफल रहा.

नम्बी जलप्रपात नक्सलियों के उस इलाके में मौजूद है जहां नक्सलियों की हुक़ूमत चलती है. यहाँ पहुंचना जान को जोखिम में डालने से कम नहीं है. वर्ष 2017 में तत्कालीन कलेक्टर अय्याज तम्बोली, दंतेवाड़ा कलेक्टर सौरभ कुमार, बस्तर आईजी विवेकानंद सिन्हा और एसपी के एल ध्रुव यहां सुरक्षा के बीच बाइक से सफर तय कर नम्बी पहुंचे थे. जिसके बाद किसी बड़ी शख्सियत ने नम्बी का रुख अब तक नही किया है.

पहुंच मार्गबीजापुरआवापल्लीउसूरगलगमनडपल्लीइत्तागुडा होकर बीजापुर से उसूर तक चार पहिया वाहन में पहुंचा जा सकता है. उसूर से दोपहिया वाहन में नम्बी गाँव तक पहुँचकर वहाँ से 3 किमी पैदल पहाड़ी रास्ता तय करना होगा.