रवि गोयल, जांजगीर. जांजगीर-चाम्पा जिला मुख्यालय से 120  किमी दूर चित्रोत्पला गंगा महानदी के तट पर बसे नगर चंद्रपुर की पहाड़ी पर विराजमान माँ चंद्रहासिनी माता व नदी के बीच स्थित माँ नाथलदाई श्रद्धालुओं एवं भक्तों का आकर्षण केंद्र है.

माँ चंद्रहासिनी मंदिर में चैत नवरात्र एवं क्वांर नवरात्र में प्रतिवर्ष मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित की जाती है. इस दौरान माँ चंद्रहासिनी मंदिर से कलश यात्रा निकाली जाती है, जिसमें राज्य एवं अन्य प्रान्त के बहुत सारे श्रद्धालु पहुंचते हैं. मंदिर के बारे में कहा जाता है कि एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया उसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जानबूझकर शिव जी को नहीं बुलाया. जब देवी पार्वती ने अपने पिता दक्ष से इसका कारण पूछा तो उन्होंने शिवजी को भला-बुरा कहा, जिससे माँ सती बहुत आहत हुई और यज्ञ कुंड में कूदकर प्राणों की आहुति दे दी.

टापू में माँ नाथलदाई के नाम से मंदिर

भगवान शिव को जब इस घटना के बारे में पता चला तो क्रोध में तीसरा नेत्र खोले जिससे पूरा संसार में खलबली मच गया और सती के शव को कंधे में लेकर पूरे ब्रम्हांड में घूमने लगे, जिसे देख विष्णु जी ने ब्रह्माण की भलाई के अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के कई टुकड़े किए और जहां-जहां सती का टुकड़ा गिरा, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ बन गया. माना जाता है कि माँ का वामकपोल (वामगण्ड) महानदी के पास स्थित पहाड़ी में गिरा, जो बाराही माँ चंद्रहासिनी का मंदिर बना और माँ की नथनी नदी के बीच टापू में गिरी, जिससे माँ नाथलदाई के नाम से मंदिर बना.

महानदी में बाढ़ आने के बाद भी नहीं डूबा मंदिर

एक अन्य कथा अनुसार कहा जाता है कि एक बार संबलपुर के राजा चन्द्रहास यहाँ जंगल में आखेट करने आए और एक बराही का पीछा करते-करते जंगल के बहुत दूर तक आ गए और जैसे ही राजा चन्द्रहास ने बराही को मारने के लिए धनुष उठाये तब बराही ने देवी रूप धारण कर वहां से अंतर्ध्यान हो गई. फिर रात को वह देवी स्वप्न में आकर राजा से बोली, हे राजन तू मेरा यहाँ पर मंदिर बनवा और अपना यश कीर्ति बढ़ा. इसके बाद राजा चन्द्रहास ने महानदी के तट पर बने पहाड़ी पर माँ चंद्रहासिनी के मंदिर का निर्माण कराया और माँ की छोटी बहन माँ नाथलदाई का मंदिर नदी के बीच बने टापू में कराया. कहा जाता है कि महानदी में कितनों बार बाढ़ आए, लेकिन माता का मंदिर कभी नहीं डूबा.