Navratri Special, Naina Devi Temple: नैनीताल: उत्तराखंड का नैनीताल अपनी प्राकृतिक सुंदरता, ठंडी हवाओं और झीलों की वजह से पूरी दुनिया में जाना जाता है. झीलों के इस शहर की पहचान केवल पहाड़ों और झीलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यहां का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी उतना ही गहरा है. इन्हीं धार्मिक धरोहरों में से एक है मां नैना देवी मंदिर, जो नैनी झील के उत्तरी छोर पर स्थित है.

यह मंदिर न केवल स्थानीय निवासियों की आस्था का केंद्र है, बल्कि यहां आने वाले हर पर्यटक के लिए भी श्रद्धा और विश्वास का स्थल है. हर साल हजारों श्रद्धालु और पर्यटक इस मंदिर में पहुंचते हैं. कोई यहां मनोकामना पूरी करने आता है, कोई जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति की कामना करता है, तो कोई सिर्फ इस जगह की आध्यात्मिक शांति का अनुभव करने.

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Navratri Special, Naina Devi Temple

Navratri Special, Naina Devi Temple

मंदिर का इतिहास (Navratri Special, Naina Devi Temple)

नैना देवी मंदिर का इतिहास पुराणों और किंवदंतियों से जुड़ा हुआ है. शिव पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में वर्णन है कि जब राजा दक्ष के यज्ञ में माता सती ने अपने प्राण त्याग दिए, तब भगवान शिव दुःख से व्याकुल होकर उनके शरीर को लेकर ब्रह्मांड में विचरण करने लगे. भगवान विष्णु ने सृष्टि की रक्षा के लिए अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के अंगों को खंडित किया.

किंवदंती के अनुसार, माता सती की दोनों आँखें (नयन) इस स्थान पर गिरी थीं. इसी कारण इस स्थल का नाम “नैना देवी” पड़ा. यहां पर सबसे पहले ग्रामीणों ने एक छोटा सा मंदिर बनाया. समय के साथ यह मंदिर श्रद्धालुओं का बड़ा केंद्र बन गया और धीरे-धीरे इसका स्वरूप भव्य होता गया.

सन् 1880 में नैनीताल में जब भयंकर भूकंप आया, तब मंदिर को काफी क्षति पहुँची. बाद में स्थानीय लोगों और प्रशासन के सहयोग से मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया. वर्तमान स्वरूप में मंदिर आकर्षक शिखर, विस्तृत प्रांगण और सुव्यवस्थित पूजा स्थल के रूप में स्थापित है.

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धार्मिक कथा और देवी का स्वरूप (Navratri Special, Naina Devi Temple)

मां नैना देवी को शक्ति और दृढ़ संकल्प की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है. मंदिर में जो मुख्य प्रतिमा स्थापित है, उसमें दो नेत्र देवी के प्रतीक के रूप में पूजित होते हैं. यह प्रतिमा इस बात की स्मृति है कि यहां मां सती के नयन गिरे थे.

भक्तों का विश्वास है कि मां नैना देवी हर उस व्यक्ति की मनोकामना पूरी करती हैं, जो सच्चे भाव से उनके चरणों में प्रार्थना करता है. देवी का स्वरूप करुणा और शक्ति दोनों का संगम है. मंदिर में देवी की मूर्ति के साथ-साथ भगवान गणेश और काली माता की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं, जो इस स्थल को और भी पवित्र बनाती हैं.

धार्मिक मान्यता यह भी है कि मां नैना देवी नगर की संरक्षिका हैं. यह विश्वास इतना गहरा है कि यहां के लोग कहते हैं, जब तक मां की कृपा बनी रहेगी, तब तक नैनीताल पर कोई संकट नहीं आ सकता.

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Navratri Special, Naina Devi Temple
Navratri Special, Naina Devi Temple

देवी के प्रकट होने की कथा (Navratri Special, Naina Devi Temple)

स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, जब माता सती की आँखें इस स्थल पर गिरीं, तो उस क्षण चारों ओर दिव्य प्रकाश फैल गया. उस समय यहां झील के किनारे रह रहे ग्रामीणों ने एक अद्भुत आभा देखी और उन्हें महसूस हुआ कि यह स्थान साधारण नहीं है.

कहा जाता है कि झील से कई दिनों तक तेज़ रोशनी निकलती रही. ग्रामीणों ने इसे देवी का संकेत माना और झील के उत्तरी तट पर एक छोटी-सी वेदी बनाकर पूजा प्रारंभ कर दी. यही पूजा धीरे-धीरे संगठित होकर मंदिर के रूप में विकसित हुई.

आज भी श्रद्धालु मानते हैं कि नैनी झील और नैना देवी मंदिर एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. झील की शांति और मंदिर की आध्यात्मिक ऊर्जा को लोग देवी की उपस्थिति का प्रत्यक्ष प्रमाण मानते हैं.

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स्थानीय विश्वास और आस्था (Navratri Special, Naina Devi Temple)

नैनीताल के स्थानीय निवासियों की आस्था मां नैना देवी में अत्यंत गहरी है. यहां का हर शुभ कार्य मां के दर्शन से प्रारंभ किया जाता है. विवाह, गृहप्रवेश, व्यापार या किसी भी नए काम की शुरुआत से पहले भक्त मंदिर आकर देवी का आशीर्वाद लेते हैं.

नवरात्र के दौरान मंदिर में विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं. इन अवसरों पर मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैं और देवी के भजन-कीर्तन से वातावरण भक्तिमय हो जाता है. स्थानीय लोग मानते हैं कि इस दौरान मां स्वयं जागृत होकर अपने भक्तों की रक्षा करती हैं.

व्यापारी समुदाय के बीच यह विश्वास प्रचलित है कि मंदिर में आशीर्वाद लेने के बाद ही व्यापार में सफलता मिलती है. कई दुकानदार और कारोबारी रोज सुबह दुकान खोलने से पहले मंदिर जाकर मां को प्रणाम करते हैं.

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कैसे पहुंचे (Navratri Special, Naina Devi Temple)

मां नैना देवी मंदिर नैनीताल झील के उत्तरी छोर पर स्थित है. मंदिर तक पहुंचना बेहद आसान है क्योंकि यह नैनीताल नगर के बीचों-बीच स्थित प्रमुख धार्मिक स्थल है.

सड़क मार्ग से: नैनीताल उत्तराखंड के हर बड़े शहर से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है. काठगोदाम सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है, जो लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है. काठगोदाम से टैक्सी, निजी गाड़ियां और बसें आसानी से मिल जाती हैं, जो सीधे नैनीताल लाती हैं.

रेल मार्ग से: जो यात्री ट्रेन से आना चाहते हैं, उनके लिए काठगोदाम स्टेशन सबसे नजदीकी विकल्प है. यहां से रोजाना दिल्ली, देहरादून, लखनऊ और कोलकाता जैसी जगहों के लिए रेल सेवाएं उपलब्ध हैं. काठगोदाम से नैनीताल की दूरी एक घंटे में सड़क मार्ग से तय की जा सकती है.

हवाई मार्ग से: नैनीताल के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा पंतनगर एयरपोर्ट है, जो लगभग 70 किलोमीटर दूर है. पंतनगर से टैक्सी और बस की सुविधा उपलब्ध है. दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी एक प्रमुख विकल्प है, जहां से नैनीताल के लिए सड़क और रेल सेवाएं आसानी से मिल जाती हैं.

शहर के भीतर: नैनीताल पहुंचने के बाद मां नैना देवी मंदिर तक पैदल, ऑटो या टैक्सी से जाया जा सकता है. मंदिर नैनी झील के बिल्कुल किनारे स्थित है, इसलिए यहां तक पहुंचने में किसी तरह की कठिनाई नहीं होती. मुख्य बाजार से मंदिर की दूरी बहुत कम है और पैदल चलकर भी आराम से पहुंचा जा सकता है.

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नैना देवी मंदिर उत्तराखंड के महत्वपूर्ण शक्तिपीठों में से एक है. इसका इतिहास माता सती की कथा से जुड़ा है, इसका स्वरूप शक्ति और करुणा का प्रतीक है, और इसकी आस्था स्थानीय निवासियों के जीवन का आधार है. यह मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि नैनीताल की सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर भी है. यहां की पौराणिक मान्यता, देवी के प्रकट होने की कथा और स्थानीय विश्वास इस मंदिर को अद्वितीय बनाते हैं.

आज भी श्रद्धालु मानते हैं कि झील और मंदिर दोनों में देवी का वास है. मां नैना देवी अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उनके जीवन में सुख-समृद्धि का संचार करती हैं. यही विश्वास इस मंदिर को अमर और चिरस्थायी बनाता है.

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