मध्यप्रदेश के दतिया स्थित मां धूमावती के दरबार से तो हर कोई वाकिफ है, और मां धूमावती के गुणगान की लोग अब गीत भी गाते है. लेकिन छत्तीसगढ़ की माता धूमावती की महिमा भी अपरम्पार है. यहां भक्तों की मुरादों को पूरा करने और उनके कानून प्रकरणों से मुक्ति दिलाने के लिए मां धुंधी दाई घने जंगल में दो चट्टानों के बीच में विराजमान है. यहां संतान प्राप्ति की मन्नतें भी पूरी होती हैं. तो चलिए आज आपको एक ऐसे ही अद्भुत दिव्य दरबार की कहानी से रूबरू कराते हैं.
छत्तीसगढ़ की माता धूमावती को स्थानीय और ग्रामवासियों के धुंधी दाई, धुन्धेश्वरी देवी के नाम के अलावा और भी कई नामों से जानते हैं. यहां देवी मां और भक्तों के अटूट प्रेम का प्रत्यक्ष उदाहरण भी देखने को मिलता है. माता धुंधी दाई ऊँचे पहाड़ों के दरबार को छोड़कर अपने भक्तों के नजदीक रहने के लिए धरती का सीना चिरकर घने जंगलों के बीच वन देवी का रूप लेकर पर्वत के तट में विशाल चट्टान रूपी स्वरुप में प्रकट हुई हैं. आज मंदिर परिसर में उनके प्रत्यक्ष अहसास होने के प्रमाण का भी दावा किया जाता है. इसी वजह से देवी माता अपने भक्तों के दिल पर राज करती है, और पूरे छतीसगढ़ में धुंधी दाई के रूप में प्रचलित हो गई हैं. देवी माता के दर्शन मात्र से मन की मुरादें पूरी हो जाती है और देवी माता से प्रार्थना और वरदान मांगने से गुम हुई वस्तु, जानवर या व्यक्ति वापस लौट आते हैं. साथ ही जिनको संतान नहीं होता, वो अगर सच्चे मन से मां से प्रार्थना करते हैं, तो उनको संतान प्राप्ति हो जाती है. इनकी ख्याति इतनी प्रसिद्ध हो चुकी है कि समूचे छत्तीसगढ़ से लोग देवी मां का दर्शन करने और तीर्थ का अनुभव करने के वास्ते माथा टेकने और पापों से मुक्ति, पूण्य की प्राप्ति करने के लिए भी बड़ी संख्या में यहां आते है. Read More – Bhool Bhulaiyaa 3 का नया पोस्टर आया सामने, दीवाली पर खुलेगा तंत्र और मंत्र के साथ बंधा दरवाजा …
चट्टान से देवी मां की बूढी स्वरुप में हुई है उत्पत्ति
घनों के जंगलो के बीच में पर्वत के तट पर चट्टान से देवी मां धुंधी दाई बूढी (बुजुर्ग) स्वरुप में उत्पन्न हुई है. 5- 7 फीट के करीब देवी मां के विशाल मूर्ति की उत्पति हुई है, लेकिन श्रधालुओं को 3 से साढ़े तीन फीट ही दर्शन कराया जाता है. देवी मां को छत पसंद नहीं है. इसलिए उनके गर्भगुढी में छत नहीं बन सका है और मंदिर के परिक्रम स्थल पर छत बना हुआ है. मंदिर प्रबंधन के लोगो का कहना है कि छत बनाने के लिए कई बार कोशिश की गई, लेकिन कोई ना कोई वजह ऐसी बनी, जिसके कारण छत का निर्माण नहीं हो पाया है.
वहीं, मंदिर के संरक्षक सेतु खुसरो ने जानकारी देते हुए कहा कि मां धुंधी दाई भक्तों के लिए कुलमाता और आराध्य देवी के रूप में पूजी जाती है. इनके शक्ति और महिमा का ही प्रभाव है कि प्रदेशभर से लोग यहां माथा टेकने और दर्शन करने पहुंचते हैं. हर दिन मां के दर्शन और आशीर्वाद लेने के लिए हजारों दर्शनार्थी आते है. इसे रोकने के लिए असमाजिक तत्वों द्वारा मूर्ति को उखाड़ने की भी कोशिश की गई, लेकिन देवी मां हिली ही नहीं और बदमाश नाकाम होकर फरार हो गए. मां धुंधी दाई महामाया देवी का दरबार आस्था, भक्ति और शान्ति का संगम है. ये तीर्थ धाम बिलासपुर जिले के कोटा से लोरमी मुख्य राज्यमार्ग पर ग्राम बांसाझाल में स्थित है. तखतपुर से 21 किलोमीटर और कोटा से करीब 19 किलोमीटर और लोरमी से 16 किलोमीटर की दुरी पर है. Read More – 1 साल बाद Honey Singh को आई बहन की याद, सरप्राइज देने मेलबर्न पहुंचे सिंगर …
दो चट्टानों के सीने से उद्गम हुआ है धार्मिक ऐतिहासिक कुंड
मां धुंधी दाई की कृपा और उनके महिमा की अपार प्रमाणित उदाहरण आपको बांसाझाल दरबार में देखने को मिल जाएगा. मंदिर के पुजारी दल्लुराम छेदहिया ने बताया कि ऐसा ही एक प्रणाम ऊँचे पर्वत के बीच दो चट्टानों के सीने से उद्गम धार्मिक ऐतिहासिक कुंड है. देवी माता के दर्शन के बाद कुंड के दर्शन से पुन्य की प्राप्ति की मान्यता है. इस कुंड की खासियत ये है कि ग्राम बांसाझाल में 100 फीट नीचे तक वाटर लेबल डाउन रहता है. लेकिन पहाड़ के उपरी सतह पर कुंड आदिशक्ति के साक्षात होने का प्रमाण प्रस्तुत कर रहा है. कुंड की चौड़ाई दो फीट और करीब 10-12 फीट लम्बी है. इसकी गहराई भी ढाई से तीन फीट है. लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि इस कुंड में पानी कहाँ से आता है. इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है और कुंड में बारहों महीने अविरल जल और अमृत की तरह रहता है. इसी कुंड से देवी मां के ज्योतिकलश के लिए जल लाया जाता है और उसी जल से देवी माता धुंधी दाई का आचमन किया जाता है.
मन्नत पूरी होने पर देवी को करते हैं भेंट
मान्यता ऐसी है कि देवी मां धुंधी दाई से मांगी हुई मुराद पूरी होने पर श्रद्धालु माता को मन्नत की भेंट अर्पित करने अपने पुरे परिवार के साथ आते है. यहाँ माता को पूर्ण श्रृंगार-साडी, चांवल, श्रीफल-प्रसाद तथा बलि की भी मानता की जाती है. यहां सबकी मुरादें पूरी होती है और पूरे छत्तीसगढ़ से लोग अपनी मनोकामनाओं को लेकर आते है और जिनके वरदान पुरे हो जाते है. वे अपने वचन को पूरा करने भी आते है. देवी मां के प्रसिद्धि की चर्चा अब लोगो में काफी प्रचलित होने लगी है, और आस्था का केंद्र बिंदु है.
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