गोरखपुर. शहर में वैसे तो बहुत से मंदिर हैं, लेकिन ऐसे कई मंदिर भी हैं जिनको लेकर लोगों के बीच अलग ही महत्व है. लोग दूर-दूर से दर्शन करने के लिए आते हैं. उनमें से एक कालीबाड़ी मंदिर भी है. मंदिर 234 वर्ष पुराना है. मंदिर की स्थापना मुगल वंश में की गई थी. माता रानी का दर्शन करने जिले से बस नहीं बाहर से भी लोग दर्शन करने आते हैं. पूर्वांचल के अलग-अलग जगहों से भक्त आकर माता की अराधना करते हैं. जहां भक्त माता से मनोकमना पूरी करने की प्रार्थना करते हैं, जो पूरी भी होती है.
मुगल काल से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
कालीबाड़ी मंदिर की स्थापना मुगल फौज के सिपहसालार फणींद्र नाथ सान्याल ने 18वीं सदी के उत्तरार्ध में की. फणींद्र जब गोरखपुर में बतौर सिपहसालार नियुक्त हुए तो अपनी ड्यूटी के दौरान एक बार उनकी नजर एक पाकड़ के पेड़ के नीचे मां काली की प्राचीन मूर्ति पर पड़ी. जिसके बाद उन्होंने वहीं अगर मंदिर में स्थापित प्रतिमा की बात करें तो वह पाल वंश के समय की मानी जाती है.
काले पत्थर से निर्मित मूर्ति की जीवंतता ने उनके मन पर ऐसा प्रभाव डाला कि उन्होंने उसकी पूजा-अर्चना शुरू कर दी. बाद में मां काली की मूर्ति की पूजा-अर्चना में फणींद्र इतने लीन हुए कि उन्होंने नौकरी त्याग दी. पुस्तक ‘आइने गोरखपुर’ के मुताबिक उन्होंने पाकड़ के पेड़ के पास ही 1786 में कालीबाड़ी मंदिर का निर्माण कराया और वहां मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा कर दी. पुरातत्वविदों के मुताबिक मंदिर में स्थापित मां काली की मूर्ति पाल वंश के शासनकाल की है.
नवरात्र में होती है जबरदस्त भीड़
गोरखपुर के रेती चौक पर मौजूद कालीबाड़ी मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है. मंदिर में मुख्य रूप से माता काली विराजमान है. साथ ही कई देवी-देवताओं का यहां वास है. लेकिन नवरात्र के महीनों में यहां जबरदस्त भीड़ होती है और श्रद्धालुओं की सुबह से शाम तक लाइने लगी रहती है.
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