स्पोर्ट्स डेस्क– भारतीय क्रिकेट टीम में जिस तरह से सौरव गांगुली ने अपनी कप्तानी में विदेशी सरजमीं पर लड़ना सिखाया, टीम को जीतना सिखाया, मौजूदा समय में विराट कोहली की कप्तानी का कमाल देखने को मिल रहा है । उम्मीद की जा रही है कि कोहली अपनी कप्तानी में साउथ अफ्रीका का इतिहास बदलेंगे। उसी तरह इससे पहले ही टीम इंडिया के एक कप्तान ऐसे थे, जिनके रग-रग में क्रिकेट था, जब वो खेलते थे तो दुनिया उनकी खेल को देखते ही रह जाती थी। बहुत पहले ही इन्होंने विदेशी धरती पर भारतीय टीम को जीत दिला दी थी। ये कोई और नहीं बल्कि मंसूर अली खान पटौदी थे। और लोग इन्हें टाइगर के नाम से पुकारते थे।
मंसूर अली खान पटौदी
मंसूर अली खान पटौदी का जन्म आज के ही दिन 5 जनवरी 1941 को भोपाल में हुआ था।
रग-रग में था क्रिकेट
मंसूर अली खान पटौदी बचपन से ही बेहतरीन क्रिकेटर रहे हैं। जब वो स्कूल के समय में टीम की कप्तानी करते थे तो उन्हें देख सब हैरान रह जाते थे। इसके बाद उन्होंने 16 साल की उम्र में ही फर्स्ट क्लास क्रिकेट में ससेक्स के खिलाफ डेब्यू किया था।
जब बने भारतीय टीम के कप्तान
भारतीय क्रिकेट में टीम के लिए सबसे कम उम्र में कप्तानी करने वाले मंसूर अली खान पटौदी ही थे। नवाब ऑफ पटौदी ने 21 साल की उम्र में ही कप्तानी संभाल ली थी। सबसे कम उम्र में कप्तानी करने का ये रिकॉर्ड नवाब ऑफ पटौदी के नाम 40 साल तक रहा।
जब विदेशी धरती पर मिली पहली जीत
भारतीय टीम ने विदेश में अपना पहला टेस्ट मैच और टेस्ट सीरीज मंसूर अली की कप्तानी में ही जीती थी। भारतीय टीम 4 टेस्ट मैच की सीरीज के लिए न्यूजीलैंड दौर पर गई थी। जहां टीम ने 3-1 से सीरीज पर अपना कब्जा जमा लिया था। इसी के बाद से मंसूर अली खान पटौदी को लोग टाइगर के नाम से पुकारने लगे थे।
नवाब ऑफ पटौदी का क्रिकेट करियर
मंसूर अली खान पटौदी ने 1961 से लेकर 1975 तक 46 इंटरनेशनल टेस्ट मैच खेलते हुए 34.91 की औसत से 2,793 रन बनाए, पटौदी साहब ने 46 मैच में से 40 में कप्तानी की, जिसमें से 9 मैच में जीत, 19 में हार और 19 मैच ही ड्रा रहे। बात फर्स्ट क्लास क्रिकेट की करें तो 310 मैच में 15,425 रन बनाए। जिसमें 33 शतक जड़े।
एक आंख से खेलते थे क्रिकेट
1961 में एक कार एक्सीडेंट में मंसूर अली खान पटौदी की दाहिनी आंख चली गई थी। उनकी आंख में कांच का टुकड़ा घुसा था। ऐसा लगने लगा कि अब वो क्रिकेट नहीं खेल पाएंगे। लेकिन ऐसे ही उन्हें टाइगर थोड़ी ना कहा जाता था। वो तो सचमुच टाइगर थे। और इस बात को उन्होंने ने कई मर्तबा साबित भी किया। दुर्घटना के 6 महीने बाद फिर से टीम में शानदार वापसी की, पटौदी साहब एक आंख से ही बैटिंग, बॉलिंग और फील्डिंग किया करते थे।
जाते-जाते दूसरी आंख भी कर गए दान
मंसूर अली खान पटौदी 22 सितंबर 2011 को इस दुनिया को अलविदा कह गए। और उन्होंने अपनी दूसरी आंख भी पहले ही दान कर दी थी।